मुगल हरम में किन्नरों की मौजूदगी किसी रहस्य से कम नहीं थी। उनकी जिम्मेदारी थी हरम में आने-जाने वालों पर नजर रखना। कोई बाहरी शख्स, जैसे चिकित्सक, जब हरम में दाखिल होता था, तो किन्नर उसका सिर ढक देते थे। इससे वो हरम का माहौल न देख सके। इलाज के बाद भी उसे उसी तरह बाहर ले जाया जाता था। लेकिन इतालवी चिकित्सक निकोलाओ मनूची की आपबीती कुछ और ही कहती है। उनकी किताब मुगल इंडिया में लिखा है कि जब उनका हरम में आना-जाना बढ़ा, तो किन्नरों का उन पर भरोसा बढ़ गया और सख्ती कम हो गई।
एक बार शहजादा दारा शिकोह की नजर मनूची पर पड़ी, जब वो हरम में जा रहे थे। शहजादे ने तुरंत किन्नरों को आदेश दिया कि मनूची की आंखों पर कपड़ा न बांधा जाए। भविष्य में भी उन्हें बिना किसी पाबंदी के हरम में आने-जाने की इजाजत दी गई। इसके पीछे दारा शिकोह की खास सोच थी। उनका मानना था कि ईसाई लोग मुस्लिमों की तरह अश्लील या गलत सोच नहीं रखते। इस वजह से मनूची को हरम में खुली छूट मिली।
औरतों की चालाकी: बीमारी का बहानामनूची लिखते हैं कि हरम की औरतों को अपने पति के अलावा किसी पुरुष से मिलने की इजाजत नहीं थी। लेकिन वो चालाकी से काम लेती थीं। कई बार वो जानबूझकर बीमारी का बहाना बनाती थीं, ताकि चिकित्सक आए और नब्ज टटोलने के बहाने उनका स्पर्श हो सके। ये मुलाकातें खुली जगह पर नहीं होती थीं। चिकित्सक और औरत के बीच एक पर्दा रहता था। चिकित्सक पर्दे के पीछे से नब्ज देखने के लिए हाथ बढ़ाता था। इस दौरान कई औरतें चिकित्सक का हाथ चूम लेती थीं। कुछ तो प्यार में हल्के से काट भी लेती थीं, और कुछ अपना सीना उनके हाथ से छुआ देती थीं।
मनूची के मुताबिक, उनके साथ भी ऐसा कई बार हुआ। लेकिन वो ऐसा व्यवहार करते थे जैसे कुछ हुआ ही न हो, ताकि पास बैठे किन्नरों को भनक न लगे।
हरम का मतलब क्या है?‘हरम’ शब्द अरबी भाषा से आया है, जिसका मतलब है ‘पवित्र’ या ‘वर्जित’। मुगल साम्राज्य में हरम की शुरुआत बाबर के समय से हुई, लेकिन उसने सिर्फ चार साल राज किया और ज्यादातर वक्त जंग में बिताया। इस वजह से उसके दौर में हरम ज्यादा विकसित नहीं हुआ। असली कमाल अकबर ने किया, जिसने हरम को व्यवस्थित और भव्य बनाया। अकबर के हरम में अलग-अलग देशों, धर्मों और संस्कृतियों की औरतें थीं। इनमें बादशाह की पत्नियां, रिश्तेदार और दासियां शामिल थीं।
हरम में औरतों की मौजूदगी का तरीका अलग-अलग था। कुछ पत्नियां थीं, कुछ को जबरन लाया जाता था क्योंकि बादशाह का दिल उन पर आ गया था। कुछ औरतें दूसरी सल्तनतों से उपहार के तौर पर मिलती थीं।
हरम बनाने की जरूरत क्यों?मनूची के मुताबिक, हरम बनाने के पीछे मुगलों की मानसिकता थी। उन्हें औरतों के बीच सुकून मिलता था। लेकिन हरम का मकसद सिर्फ शारीरिक सुख नहीं था। हरम में बच्चों की परवरिश होती थी। वहां हम्माम, स्कूल, खेल के मैदान, रसोई और स्नानघर भी थे। शाही खजाना, गुप्त दस्तावेज और शाही मुहर भी हरम में रखे जाते थे। ये सब इसलिए था ताकि बादशाह बिना किसी परेशानी के अपने सारे काम हरम से ही कर सके।
हरम में औरतों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि कई दासियां ऐसी थीं, जिन्हें पूरी उम्र बादशाह की एक झलक भी नसीब नहीं होती थी।
हरम की आलीशान जिंदगीहरम की औरतों की जिंदगी बेहद शाही थी। हर सुबह उनके लिए नए कपड़े आते थे। एक बार पहना कपड़ा दोबारा नहीं पहना जाता था और उसे दासियों में बांट दिया जाता था। शाही औरतें फव्वारों के पास आराम करती थीं, रात में आतिशबाजी का मजा लेती थीं। मुर्गों की लड़ाई, गजलें सुनना, तीरंदाजी और किस्से-कहानियां उनके रोजमर्रा के शौक थे।
अकबर के हरम में 5,000 औरतेंअकबर का हरम सबसे भव्य था। उसमें 5,000 औरतें थीं। अकबर ने इसे कई हिस्सों में बांट रखा था। कलह से बचने के लिए दरोगा नियुक्त किए गए थे। कुछ औरतों को गुप्तचर की तरह भी रखा जाता था। अकबर के बनाए नियम बाद की पीढ़ियों में भी माने गए। नई लड़की के हरम में आने पर उससे बाहरी दुनिया से कोई रिश्ता न रखने की शपथ ली जाती थी। बादशाह की मौत के बाद भी हरम छोड़ने की इजाजत नहीं थी।
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