हर साल की तरह इस बार भी नोबेल पुरस्कारों का ऐलान जोर-शोर से हो रहा है। साहित्य, विज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे क्षेत्रों में पुरस्कारों की घोषणा के बाद अब सबकी नजरें नोबेल शांति पुरस्कार पर टिकी हैं। इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उन्हें यह सम्मान मिलना चाहिए। उनकी इस मांग ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार की चर्चा को और हवा दे दी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शांति और अहिंसा के प्रतीक माने जाने वाले महात्मा गांधी को यह पुरस्कार कभी नहीं मिला, भले ही उन्हें पांच बार इसके लिए नामांकित किया गया था? आइए, जानते हैं कि आखिर क्यों गांधी जी को यह सम्मान नहीं मिला और इसके पीछे की वजहें क्या थीं।
नोबेल शांति पुरस्कार और विवादों का पुराना नातानोबेल पुरस्कार को दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है, लेकिन यह कई बार विवादों के घेरे में भी रहा है। खास तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर सवाल उठते रहे हैं। साल 1973 में अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को यह पुरस्कार दिया गया था, जिस पर जमकर हंगामा हुआ। वजह थी उनके विवादास्पद फैसले, जैसे साउथ अमेरिका में तानाशाही का समर्थन और कंबोडिया में बमबारी का आदेश। इसी तरह, जब 2009 में बराक ओबामा को यह पुरस्कार मिला, तो कई लोग हैरान रह गए। इन विवादों ने नोबेल पुरस्कार की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तब खड़ा हुआ, जब शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा गांधी को यह सम्मान नहीं मिला।
गांधी जी का नामांकन, फिर भी अधूरी रही उम्मीदमहात्मा गांधी को दुनिया अहिंसा और शांति के पुजारी के रूप में जानती है। उनके विचारों ने न केवल भारत को आजादी दिलाई, बल्कि अल्बर्ट आइंस्टीन, नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जैसे दिग्गजों को भी प्रेरित किया। इसके बावजूद, गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला। उन्हें 1937, 1938, 1939, 1947 और 1948 में पांच बार इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन हर बार वे इस सम्मान से वंचित रहे। नोबेल कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और इतिहासकार गेयर लुंडेस्टाड ने भी माना कि गांधी जी को यह पुरस्कार न देना नोबेल इतिहास की सबसे बड़ी भूल थी। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि गांधी जी को यह सम्मान नहीं मिला?
नोबेल न मिलने की वजह क्या थी?महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने की कई वजहें थीं। नोबेल कमेटी के कुछ सदस्यों का मानना था कि भले ही गांधी जी के आंदोलन अहिंसक थे, लेकिन कई बार इनके परिणामस्वरूप हिंसा और अशांति की स्थिति पैदा हुई। उदाहरण के लिए, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुछ जगहों पर हिंसक घटनाएं हुईं, जिन्हें कमेटी ने गांधी जी के आंदोलनों से जोड़ा। इसके अलावा, कुछ सदस्यों का यह भी तर्क था कि गांधी जी ने मुख्य रूप से भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, जबकि उस समय दुनिया में अश्वेतों और अन्य समुदायों के खिलाफ भी अत्याचार हो रहे थे। इन तर्कों के चलते हर बार गांधी जी का नाम पुरस्कार की दौड़ से बाहर कर दिया गया।
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