रोहतक के गांव पारा में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कानूनी रूप से सही ठहराया है। यह फैसला हरियाणा सरकार और एचएसवीपी के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। कोर्ट ने इस अधिग्रहण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए रोहतक के सेक्टर-6 के विकास को गति देने का रास्ता साफ कर दिया। आइए, इस मामले को और करीब से समझते हैं कि यह फैसला क्यों और कैसे महत्वपूर्ण है।
मामला क्या था?
रोहतक के निवासी राजबीर सिंह ने एचएसवीपी के भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि रोहतक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का हिस्सा होने के नाते, यहां किसी भी विकास योजना को लागू करने से पहले एनसीआर योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) से मंजूरी लेना जरूरी है।
राजबीर ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मिली जानकारी के आधार पर दावा किया कि एचएसवीपी ने ऐसी कोई मंजूरी नहीं ली थी। इस वजह से उन्होंने इस अधिग्रहण को अवैध करार देने की मांग की थी। यह भूमि सेक्टर-6 के विकास के लिए अधिग्रहित की गई थी, जिसमें आवासीय और व्यावसायिक परियोजनाओं की योजना है।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने इस मामले में सभी पक्षों की बातें ध्यान से सुनीं। कोर्ट ने अपने फैसले में कई अहम बातों को रेखांकित किया। सबसे पहले, कोर्ट ने साफ किया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 और एनसीआर योजना बोर्ड अधिनियम, 1985 के उद्देश्य अलग-अलग हैं। जहां भूमि अधिग्रहण का कानून सार्वजनिक हित के लिए जमीन लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, वहीं एनसीआरपीबी का कानून क्षेत्रीय नियोजन को बढ़ावा देता है। कोर्ट ने कहा कि ये दोनों कानून एक-दूसरे के ऊपर हावी नहीं हो सकते।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन किया गया। प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा देने की प्रक्रिया भी पूरी की गई। इन तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने राजबीर सिंह की याचिका को खारिज कर दिया और एचएसवीपी के इस कदम को वैध ठहराया।
इस फैसले का क्या असर होगा?
यह फैसला रोहतक के विकास को नई दिशा देगा। सेक्टर-6 में प्रस्तावित आवासीय, व्यावसायिक और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाएं अब तेजी से आगे बढ़ सकेंगी। यह क्षेत्र एनसीआर का हिस्सा है, जहां आधुनिक सुविधाओं और बेहतर कनेक्टिविटी की जरूरत लगातार बढ़ रही है। इस फैसले से न केवल हरियाणा सरकार और एचएसवीपी को राहत मिली है, बल्कि एनसीआर क्षेत्र में भविष्य के भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कानूनी स्पष्टता आई है।
जिन लोगों की जमीन अधिग्रहित की गई है, उनके लिए मुआवजे का रास्ता भी साफ रहेगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रभावित पक्षों के हितों का ध्यान रखा जाए। साथ ही, इस फैसले ने यह भी दिखाया कि विकास और कानूनी प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है।
क्यों है यह फैसला खास?
यह मामला सिर्फ रोहतक तक सीमित नहीं है। एनसीआर जैसे तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण और नियोजन से जुड़े नियमों को समझने के लिए यह फैसला एक मिसाल बन सकता है। कोर्ट ने यह साफ किया कि विकास योजनाओं को लागू करने के लिए जरूरी मंजूरी और प्रक्रियाएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन इन्हें एक-दूसरे के खिलाफ नहीं देखा जा सकता।
रोहतक के लोगों के लिए यह फैसला नई उम्मीद लेकर आया है। सेक्टर-6 के विकास से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यह क्षेत्र भविष्य में एनसीआर के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर सकता है।
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