भारत, जो दुनिया में कच्चे तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, अब एक ऐसी राह पर है, जहां वह अपने आयात खर्च में भारी कमी ला सकता है। रेटिंग एजेंसी इक्रा की ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत अगले वित्त वर्ष में कच्चे तेल और एलएनजी के आयात पर करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। यह खबर न केवल आम लोगों के लिए, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन क्या यह बचत वाकई में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के रूप में आम जनता तक पहुंच पाएगी? आइए, इस खबर को गहराई से समझते हैं।
भारत की तेल आयात पर निर्भरता
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करता है। वित्त वर्ष 2024-25 में, देश ने कच्चे तेल के आयात पर 242.4 बिलियन डॉलर और एलएनजी के आयात पर 15.2 बिलियन डॉलर खर्च किए। दूसरी ओर, देश में एलएनजी की मांग का लगभग आधा हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। फिर भी, आयात पर निर्भरता के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार दबाव में रहता है। ऐसे में, तेल की कीमतों में कमी और आयात पर बचत की संभावना एक बड़ा अवसर लेकर आई है।
वैश्विक तेल की कीमतों में क्यों आई गिरावट?
हाल ही में वैश्विक स्तर पर तेल की मांग में अनिश्चितता और आपूर्ति को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच कच्चे तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर 60.23 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। इक्रा का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहेगी। इस गिरावट का मुख्य कारण वैश्विक मांग में कमी और कुछ प्रमुख तेल उत्पादक देशों में आपूर्ति की अधिकता है। यह स्थिति भारत जैसे आयातक देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
कितनी और कैसे होगी बचत?
इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में कमी के कारण भारत अगले वित्त वर्ष में कच्चे तेल के आयात पर 1.8 लाख करोड़ रुपये और एलएनजी के आयात पर 6,000 करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। यह बचत न केवल सरकारी खजाने को मजबूत करेगी, बल्कि देश की ऊर्जा नीतियों को और प्रभावी बनाने में भी मदद कर सकती है। हालांकि, इस बचत का सीधा असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा या नहीं, यह कई कारकों पर निर्भर करता है।
चुनौतियां भी हैं सामने
तेल की कीमतों में कमी से जहां बचत की उम्मीद जगी है, वहीं कुछ चुनौतियां भी सामने हैं। रिफाइनरियों को इन्वेंट्री घाटे का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि पहले से खरीदा गया महंगा तेल अब सस्ते में बिकेगा। इसके अलावा, सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की संभावना भी बनी हुई है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस बचत का उपयोग आम जनता को राहत देने के लिए करती है या इसे अन्य क्षेत्रों में निवेश करती है।
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