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प्रभाष जोशी के 88वें जन्मदिन पर 'प्रभाष प्रसंग': इमरजेंसी और लोकतंत्र पर हुआ विमर्श, दो पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

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नई दिल्ली, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) । हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा और ‘जनसत्ता’ के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी की 88वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली स्थित गांधी स्मृति दर्शन परिसर के सत्याग्रह मंडप में ‘प्रभाष परंपरा न्यास’ द्वारा 16वां ‘प्रभाष प्रसंग’ स्मारक व्याख्यान आयोजित किया गया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार और पद्म भूषण से सम्मानित रामबहादुर राय ने मुख्य व्याख्यान देते हुए कहा, “लोकतंत्र की लक्ष्मण रेखा लांघकर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू की थी। यह सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि दमनात्मक शासन का प्रयोग था, जिसे जनता ने अस्वीकार कर लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया।”

रामबहादुर राय ने अपने संबोधन में जयप्रकाश नारायण की डायरी का उल्लेख करते हुए कहा कि इमरजेंसी के समय देश में भ्रांति और क्रांति दोनों जन्मीं, जिन्हें सही ढंग से समझना आज की आवश्यकता है। उन्होंने प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे की भूतहा कहानियों की तुलना इमरजेंसी से करते हुए कहा कि यह “शुरुआत में डरावनी और अंत में आनंदमयी” प्रतीत होती है। राय ने यह भी कहा कि इमरजेंसी के लिए अकेली इंदिरा गांधी नहीं, बल्कि कुछ हद तक जेपी को भी जिम्मेदार ठहराया गया, जो एक बौद्धिक प्रपंच था। उन्होंने ‘संविधान हत्या दिवस’ जैसे शब्दों को सही ठहराते हुए कहा कि “गहरी निंद्रा को तोड़ने के लिए कठोर शब्द जरूरी होते हैं।”

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “प्रभाष जोशी ने आपातकाल के अंधकार में निर्भीक पत्रकारिता की मशाल जलाए रखी। उन्होंने न केवल पत्रकारिता को नई ऊंचाइयां दीं, बल्कि उसे जनसरोकारों से भी जोड़ा।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आपातकाल की 50वीं बरसी के मौके पर देशभर में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

मध्यप्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए 25 जून 1975 को “राजनीतिक अपराध” बताया, जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरी ठेस पहुंचाई। उन्होंने प्रभाष जोशी की पत्रकारिता में नैतिकता और सुचिता की प्रशंसा करते हुए उनकी रिपोर्टिंग शैली को विनोबा भावे की यात्राओं के उदाहरण से जोड़ा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री जवाहरलाल कौल ने कहा, “प्रभाष जी विचारों में हमसे भले भिन्न हों, लेकिन उनके विराट व्यक्तित्व और पत्रकारिता की स्पष्ट दृष्टि ने उन्हें विशेष बना दिया।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर प्रभाष जी आज होते तो लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति को और गहराई से समझते और उस पर विचार रखते।

इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने ‘प्रभाष परंपरा न्यास’ की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान दो पुस्तकों “जनसत्ता के प्रभाष जोशी” और “इमरजेंसी के पचास साल” का लोकार्पण भी किया गया।

कार्यक्रम का समापन प्रसिद्ध लोकगायक प्रहलाद सिंह टिपाणिया के कबीर गायन से हुआ, जिसने सभा को आध्यात्मिक और विचारशील वातावरण में डुबो दिया।

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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