रामगढ़, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) . छठ पर्व के दूसरे दिन व्रतियों ने खरना पूजा किया. इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो गया. रामगढ़ जिले के सभी छठ घाट सज गए हैं. घरों में पूजा की तैयारी जोरों पर है. महिलाएं व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार की भलाई की प्रार्थना करेंगी. खरना का यह दिन छठ के सबसे पवित्र और भावनात्मक दिनों में से एक है. निर्जला व्रत खरना को आत्मशुद्धि का दिन कहा जाता है. यह दिन संयम, तपस्या और भक्ति का प्रतीक है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती अपने परिवार की सुख-शांति और संतान की लंबी उम्र के लिए सूर्य देव और छठी माई की पूजा करती हैं. खरना के दिन व्रती पूरे दिन कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं. शाम के समय सूर्य देव को अर्घ्य देकर पूजा करती हैं. खरना का मतलब होता है मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि. इस दिन का उपवास बहुत कठिन माना जाता है, क्योंकि पूरे दिन बिना पानी पिए रहना होता है.
लोगों में बंटा खीर, रोटी और फल का प्रसाद
खरना करने के लिए व्रतियों ने sunday की शाम स्नान के बाद प्रसाद बनाया. खरना के प्रसाद में गुड़ की खीर, रोटी और फल होते हैं. सूर्यास्त के बाद व्रती सबसे पहले खुद प्रसाद खाती हैं, उसके बाद परिवार और आस-पड़ोस के लोगों को प्रसाद देती हैं. इस दिन का प्रसाद बहुत पवित्र माना जाता है. कोई भी व्यक्ति तब तक प्रसाद नहीं खाता जब तक व्रती उसे न दे. खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं. यानी बिना पानी पिए तीसरे दिन शाम तक उपवास करती हैं.
सूर्य उपासना का सबसे प्राचीन पर्व है छठ
छठ पूजा को सूर्य देव की उपासना का सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है. माना जाता है कि सूर्य देव स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि के दाता हैं. छठ माई यानी सूर्य की बहन की पूजा करने से परिवार में खुशहाली आती है.
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(Udaipur Kiran) / अमितेश प्रकाश
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