कोलकाता, 7 नवंबर . पश्चिम बंगाल में छठ महापर्व की भव्य शुरुआत श्रद्धा और आस्था के साथ हुई. इस पर्व के तीसरे दिन गुरुवार को कोलकाता, हावड़ा, हुगली, उत्तर एवं दक्षिण 24 परगना समेत राज्य के तमाम गंगा घाटों पर लाखों की संख्या में छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया. घाटों पर सुहागन महिलाएं रंग-बिरंगी साड़ियों में नाक से लेकर सिर के मध्य हिस्से तक सिंदूर लगाकर, शूप में फल जैसे केला, सेव, नारियल, नारंगी, नाशपाती आदि सजाए हुए अर्घ्य देने के लिए पानी में उतरीं.
शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन होगा. इस अवसर पर छठ व्रतियों ने नहाय खाय के बाद उपवास रखा है और 36 घंटे से अधिक भूखे रहकर सूर्य की पूजा कर रही हैं. कोलकाता के विभिन्न गंगा घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं को अर्घ्य दिलवाने के लिए बड़ी संख्या में पुरोहित भी मौजूद थे. पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं, वहीं नगर निगम ने घाटों पर लाइट, सफाई और माइकिंग जैसी आवश्यक व्यवस्थाएं की हैं.
गुरुवार अपराह्न मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी गंगा घाट पर छठ व्रतियों के बीच पहुंचीं और उन्होंने सबको शुभकामनाएं दीं. मुख्यमंत्री ने सभी से शांतिपूर्ण तरीके से पर्व संपन्न होने की कामना की. कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषी इलाकों को सजाया गया है. सड़कों की सफाई की गई है और क्लबों तथा स्थानीय संगठनों ने व्रतियों की सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा है. गंगा घाटों तक छठ व्रतियों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है, जबकि कोलकाता पुलिस की रिवर पेट्रोलिंग टीम ने नदी में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया है ताकि कोई अप्रिय घटना ना हो.
उल्लेखनीय है कि छठ महापर्व, जिसे कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है, सूर्योपासना का अनुपम लोक पर्व है. मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाए जाने वाला यह पर्व अब प्रवासी भारतीयों के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो चुका है. छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित होती है, जिसमें कोई मूर्ति पूजा नहीं होती और व्रती महिलाएं 36 घंटे का कठोर उपवास रखती हैं, बिना अन्न और जल ग्रहण किए. इसे आस्था का महापर्व कहा जाता है क्योंकि व्रतियों का विश्वास है कि इस उपवास से हर मनोकामना पूरी होती है.
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/ ओम पराशर
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