देहरादून, 15 जुलाई (Udaipur Kiran) । राज्य आंदोलनकारी परिषद के उपाध्यक्ष सरकार के नामित राज्यमंत्री सुभाष बड़थ्वाल का कहना है कि हरेला प्रकृति का पर्व है। यह प्रकृति को सजाने, संवारने तथा उसे समृद्ध करने का पर्व है। हरेला 16 जुलाई को मनाया जा रहा है। पर्वतीय समाज यहीं से मानसून के मौसम की शुरूआत मानता है।
हरेला उस समय मनाया जाता है जब वर्षा झूम कर आती है। तन और मन दोनों भीग जाते हैं। मंगलवार को विशेष बातचीत के दौरान सुभाष बड़थ्वाल ने कहा कि यह अवसर राज्य की कृषि के लिए महत्वपूर्ण समय है। उन्होंने बताया कि हरेला शब्द उत्तराखंड के कुमाऊंनी शब्द हरियाला से आया है जिसका जिसका अर्थ है हरियाली का दिन। हरेला पर्व की शुरूआत कुमाऊं क्षेत्र से हुई। हरेला उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाने वाला पर्व है।
मुख्य रूप से उत्तराखंड का कुमाऊं इसका केंद्र है। कुमाऊं में हरेला की लोकप्रियता और उत्साह बहुत है। लोग इसे जोश के साथ मनाते हैं और इसे प्रकृति का पर्व मानते हैं।
सुभाष बड़थ्वाल के अनुसार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, शिमला, सिरमौर, जुब्बल तथा किन्नौर क्षेत्र में भी इसे हरियाली अथवा रिहाली के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग समृद्धि और अच्छी फसल की कामना करते हुए हरेला मनाते हैं।
शांति, समृद्धि और हरियाली का यह पर्व विभिन्न परंपराओं से ओत-प्रोत है। प्रकारान्तर में इसे भगवान शिव और पार्वती के विवाह से जोड़कर देखा जाता है। हरेला के दिन सात प्रकार की फसलें मक्का, तिल, उड़द, सरसों, जई के बीज त्यौहार के नौ दिन पहले पत्तों के बने कटोरे रिंगाल या पहाड़ बांस की टोकरियों में बो दिए जाते हैं, 9वें दिन इन्हेे काटा जाता है और हित मित्र रिश्तेदारों को बांटा जाता है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला के दिन उत्तराखंड में पांच लाख पौधे लगाने का निर्णय लिया है, जो प्रकृति पर्व हरेला को समर्पित होगा।
(Udaipur Kiran) / राम प्रताप मिश्र
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