कानपुर 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । सावन महीने के पहले सोमवार पर शहर के तमाम शिव मंदिरों में भक्तों का तांता दिखाई दिया। यों तो जनपद में कई ऐसे मंदिर हैं। जिनका अपना एक अलग इतिहास है। इन्हीं में से एक परमिट इलाके में स्थापित बाबा आनंदेश्वर मंदिर जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। गंगा घाट किनारे स्थापित इस मंदिर में रोजाना हजारों भक्त बाबा के दर्शन करने आते हैं। लेकिन सावन के महीने में यह भीड़ कई गुना बढ़कर लाखों तक पहुंच जाती है। सोमवार को मंदिर के इतिहास को लेकर महंत अरुण भारती ने कई अहम जानकारियां साझा की है।
उन्होंने बताया कि इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है। प्रचलित कहानी के अनुसार दानवीर कर्ण गंगा स्नान करने के बाद यहां पूजा पाठ करने आते थे। इसके अलावा आनंदी नाम की एक गाय रोजाना शिवलिंग पर जाकर अपना दूध चढाती थी। रोजाना कर्ण और गाय को ऐसा करता देख ग्रामीणों ने जिज्ञासा पूर्वक उसे स्थान पर खुदाई कराई। कई दिनों की खुदाई के बाद वहां पर एक शिवलिंग मिला ग्रामीणों ने उसकी पूजा अर्चना कर शिवलिंग को गंगा किनारे स्थापित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि गाय के दूध चढ़ाने से ही इस मंदिर का नाम आनंदेश्वर पड़ा।
समय के बदलाव के चलते भक्तों की आस्था इस मंदिर से बढ़ती चली गयी। वर्तमान में बल्कि आसपास के जिलों के लोग भी दर्शन करने आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि लगातार 40 दिनों तक इस मंदिर में बाबा के दर्शन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद ही भक्त इस मंदिर में भव्य भंडारे और श्रृंगार का भी आयोजन करवाते हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही बाबा शिव के अलावा विष्णु भगवान, लक्ष्मी जी, बजरंगबली, शनिदेव और माँ सरस्वती इत्यादि देवी देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित है।
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप
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