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मेहनतकशों के चेहरे पर उम्मीद की दरारें

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– बोले, मजदूर दिवस एक दिन की सराहना, साल भर की उपेक्षा

मीरजापुर, 1 मई . अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर जहां दुनिया भर में श्रमिकों के अधिकारों और संघर्षों को याद किया जा रहा है, वहीं जिले के मजदूर आज भी अपनी बुनियादी जरूरतों और हक के लिए संघर्षरत हैं. पत्थर काटने वाले श्रमिक हों, ईंट-भट्ठा मजदूर, खेतिहर कामगार या फिर निर्माण स्थल पर पसीना बहाते लोग. सभी की एक जैसी कहानी है- काम है, मजूरी कम है, सुविधा नाम मात्र की है.

मेहनतकश मजदूर हर दिन अपने खून-पसीने से शहर और विकास की नींव रखते हैं, लेकिन उन्हें वह सम्मान, सुविधा और सुरक्षा अब तक नहीं मिली, जिसके वे असली हकदार हैं. मजदूर दिवस पर यह सवाल फिर से उठता है- क्या केवल नारों और भाषणों से मजदूरों की जिंदगी बदलेगी? मजदूर दिवस पर कई संस्थाएं श्रमिकों को फल, मिठाई या सम्मान पत्र देती हैं, लेकिन असली मांग है स्थायी सम्मान और सुरक्षा. श्रमिक कहते हैं कि हम लोगों को केवल 1 मई को याद किया जाता है. बाकी दिन तो कोई सुनता भी नहीं. अब हमें सिर्फ आश्वासन नहीं, हक चाहिए.

सहायक श्रमायुक्त सुविज्ञ सिंह ने बताया कि हम मजदूरों के लिए पंजीकरण अभियान चला रहे हैं. श्रम कार्ड, स्वास्थ्य और बीमा लाभ समेत मजदूरों के लिए संचालित तमाम योजना के लिए उनका आवेदन कराया जाएगा.

‘जिंदगी भी धूल बन गई है’

चुनार क्षेत्र में पत्थर खदानों में काम करने वाले सैकड़ों मजदूर हर दिन जान जोखिम में डालकर पत्थर काटते हैं. 42 वर्षीय रामबचन कहते हैं कि हम सुबह 6 बजे खदान पहुंचते हैं, 12 घंटे काम करते हैं. रोज की मजूरी 350 रुपए मिलती है. मास्क या दस्ताना नहीं देते. कई लोगों को फेफड़े की बीमारी हो गई है. वहीं एक महिला श्रमिक बताती है कि औरतें भी बराबर काम करती हैं, लेकिन मजूरी में भेदभाव होता है. छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं. प्रसव के बाद भी दो हफ्ते में फिर लौटना पड़ता है काम पर.

सीजन चलता है, फिर बेरोजगारी

जिले में दर्जनों ईंट भट्ठे हैं, जहां बाहर से आए श्रमिकों की भरमार है. छत्तीसगढ़ से आए श्रमिक दिनेश और उसकी पत्नी बताती हैं कि 5 महीने काम मिलता है, फिर गांव लौट जाते हैं. इस दौरान मजदूरी का बड़ा हिस्सा ठेकेदार काट लेता है. बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते, वे भी काम में लग जाते हैं.

कार्ड बने लेकिन लाभ नहीं

नगर क्षेत्र में सैकड़ों निर्माण मजदूरों के पास लेबर कार्ड तो हैं, लेकिन उन्हें उसका कोई सीधा लाभ नहीं मिलता. श्रमिक विनोद कुमार, दयालदास, श्यामलाल, संतोष, लवकुश, कार्तिक प्रजापति कहते हैं- सरकार कहती है कि कार्डधारकों को इलाज, बीमा, छात्रवृत्ति मिलेगी, लेकिन हम केवल कागज लिए घूम रहे हैं. पेंशन या आवास की बात तो बहुत दूर है.

महिला खेतिहर मजदूरों की अलग पीड़ा

कोन, हलिया, नरायनपुर जैसे ग्रामीण इलाकों में खेतों में काम करने वाली महिलाएं बताती हैं कि खेत मालिक उन्हें पुरुषों से कम मजूरी देते हैं. 35 वर्षीय रेखा देवी बताती हैं कि हम दिन भर रोपाई-कटाई करते हैं. पुरुषों को 300-350 रुपए मिलते हैं, हमें सिर्फ 200-220.

बेसिक सुविधाओं की भारी कमी

शिव प्रसाद, बाबूलाल कहते हैं कि श्रमिकों के लिए न शौचालय की सुविधा है, न पीने के पानी का उचित इंतजाम. खदान या भट्ठा क्षेत्र में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं. गर्मी हो या बारिश, मजदूरों के लिए कोई ठिकाना नहीं.

/ गिरजा शंकर मिश्रा

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