भारत में आस्था और रहस्य साथ-साथ चलते हैं। कई मंदिर अपनी चमत्कारिक शक्तियों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनका निर्माण ही एक रहस्य है। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित ककन मठ मंदिर उन्हीं रहस्यमयी स्थलों में से एक है, जिसे लेकर लोककथाएं, धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक जिज्ञासा सभी एकसाथ खड़ी हैं।
रातों-रात बना और अधूरा रह गया मंदिर?ककन मठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह मंदिर रातों-रात बनना शुरू हुआ था और जैसे ही सुबह की पहली किरण पड़ी, यह अधूरा छोड़ दिया गया। स्थानीय लोग मानते हैं कि इसे भूतों या अदृश्य शक्तियों ने बनाना शुरू किया था, लेकिन एक महिला द्वारा सुबह चक्की चलाने की आवाज सुनकर वे इसे अधूरा छोड़कर चले गए। यह कथा सुनने में भले ही अविश्वसनीय लगे, लेकिन जब आप इस मंदिर की बनावट और रहस्यमयी पत्थरों को देखते हैं, तो यह विश्वास करना आसान हो जाता है कि कुछ असाधारण जरूर है।
हवा में लटके हैं विशाल पत्थरककन मठ की सबसे अनोखी विशेषता इसकी वास्तुकला है। यहां कई भारी पत्थर बिना किसी जोड़ या सीमेंट के एक-दूसरे पर टिके हुए हैं। कुछ पत्थर तो ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे हवा में लटके हों, लेकिन वे सदियों से उसी स्थिति में स्थिर हैं। न तो वे गिरते हैं, न हिलते हैं। ये नजारा इतना चौंकाने वाला है कि वैज्ञानिक भी इसे लेकर हैरान हैं। अब तक इस संरचना को समझाने के लिए कोई पुख्ता वैज्ञानिक सिद्धांत सामने नहीं आया है।
ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमिइतिहासकारों के अनुसार, ककन मठ का निर्माण 11वीं शताब्दी में कछवाहा वंश के राजा कीर्ति सिंह ने अपनी रानी ककनावती के लिए करवाया था, जो भगवान शिव की परम भक्त थीं। यही कारण है कि इस मंदिर का नाम ‘ककन मठ’ पड़ा। इस मंदिर की शैली द्रविड़ वास्तुकला पर आधारित है। मुख्य मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा है, और गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जिसमें जलहरी नहीं है — जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाता है।
सूर्यास्त के बाद मंदिर में सन्नाटास्थानीय लोगों के अनुसार, मंदिर में रात के समय अदृश्य शक्तियों की उपस्थिति महसूस की जाती है। इसलिए सूर्यास्त के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है, और कोई भी व्यक्ति यहां रुकने की हिम्मत नहीं करता। इस रहस्य ने मंदिर को और भी रहस्यमय बना दिया है।
वैज्ञानिक भी उलझन मेंभारतीय पुरातत्व विभाग और कई वैज्ञानिक इस मंदिर की संरचना पर गहन अध्ययन कर चुके हैं, लेकिन अब तक यह समझ नहीं पाए कि बिना किसी बाइंडिंग मटेरियल के इतने भारी पत्थर ऊंचाई पर कैसे टिके हुए हैं। यह मंदिर वास्तुकला और इंजीनियरिंग की दृष्टि से भी एक असाधारण नमूना है।
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