वॉशिंगटन: ईरान की हिफाजत के लिए रूस और चीन ने यूनाइटेड फ्रंट बनाने की घोषणा की है। सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि डोनाल्ड ट्रंप को सख्त संदेश भेजा गया है। सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल की जिस लड़ाई में अमेरिका एंट्री करने की कोशिश कर रहा है, उसे कम करने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति से आह्नान किया है। गुरुवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई टेलीफोन पर बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने इजरायल की कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताया है। शी जिनपिंग और पुतिन ने उस वक्त टेलीफोन पर बात की है जब डोनाल्ड ट्रंप सड़कछाप और सुपारी किलर की तरह वर्ताव करते हुए ईरानी राष्ट्रपति की हत्या करने की धमकी दे चुके हैं। ट्रंप ने दो दिन पहले ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या की धमकी दी थी।
सीएनएन ने क्रेमलिन के हवाले से बताया है कि रूस और चीन के राष्ट्रपतियों ने टेलीफोन पर बातचीत के दौरान ईरान पर इजरायली हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है। हालांकि इस दौरान बीजिंग के बयान में शी जिनपिंग की तरफ से थोड़ा ज्यादा संयमित लहजे में बात की गई और इजरायल की स्पष्ट रूप से निंदा करने से परहेज किया है। चीनी राष्ट्रपति ने इजरायल की निंदा करने के बजाए युद्ध में शामिल दोनों पक्षों, खासकर इजरायल से युद्ध को आगे ना बढ़ाने का आग्रह किया है, ताकि क्षेत्रीय संघर्ष ना फैले और जल्द संघर्ष विराम हो। जबकि, चीनी विदेश मंत्री वांग यी इससे पहले ईरानी समकक्ष से बातचीत के दौरान इजरायल की कड़ी आलोचना कर चुके हैं। लेकिन शी जिनपिंग ने इजरायल का नाम लिए बगैर "विवादित पक्षों से" युद्धविराम की अपील की।
ईरान के साथ आए चीन और रूस
शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के बीच टेलीफोन पर उस वक्त बात हुई है जब कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है की चीन के कई एयरक्राफ्ट ईरान में उतरे हैं। आशंका जताई गई है कि चीन ने ईरान में हथियार भेजे हैं। हालांकि हम इसकी पुष्टि नहीं कर रहे हैं। चीन लंबे वक्त से अमेरिका को मिडिल ईस्ट में अस्थिरता के लिए जिम्मेदार मानता आया है। चीन के कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मौजूदा युद्ध को लेकर भी अमेरिका पर आरोप लगा रहे हैं। शंघाई इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के मिडिल ईस्ट एक्सपर्ट लियू झोंगमिन ने मौजूदा हालातों के लिए डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि ट्रंप की वजह से मिडिल ईस्ट में अस्थिरता और अराजकता की स्थिति फैल गई है। उन्होंने कहा है कि "डोनाल्ड ट्रंप ने मध्य पूर्व में अमेरिकी नीति के अधिकार और विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है, अपने सहयोगियों के बीच अमेरिका के नेतृत्व और छवि को नष्ट कर दिया है साथ ही क्षेत्रीय विरोधियों को धमकाने और रोकने की इसकी क्षमता को भी कमजोर कर दिया है।"
यूक्रेन की तरह फंसेगा इजरायल-ईरान युद्ध?
चीन के कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप मिडिल ईस्ट को एक अनिश्चितकालीन युद्ध में फंसा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के करीबी अधिकारियों ने बार-बार वाशिंगटन को इंडो-पैसिफिक में चीन की महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने के लिए अपने ध्यान और संसाधनों को फिर से लगाने की जरूरतों पर ध्यान दिया है। फिर भी पांच महीने बाद यूक्रेन और गाजा में युद्ध जारी है और अब अमेरिका इजरायल के युद्ध में उतरने की योजना बना रहा है। दूसरी तरफ चीन नहीं चाहता है कि ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई की शासन का अंत हो। सुप्रीम लीडर खामेनेई के नेतृत्व में ईरान, मध्य पूर्व में एक दुर्जेय शक्ति और अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने वाले देश के तौर पर सामने आया है। ये ठीक वैसा ही है जैसे चीन अब अमेरिकी शक्ति को चुनौती दे रहा है।
चीन ने साल 2023 में सऊदी अरब और ईरान की दोस्ती करवाकर अमेरिका को चौंका दिया था। चीन ने लंबे समय से ईरान को तेल आयात और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी सीट के जरिए समर्थन दिया है। पिछले कुछ सालों में चीन और ईरान ने संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करने के साथ साथ अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा किया है। बीजिंग ने शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स में तेहरान का स्वागत किया। इस गुट में भारत के साथ चीन और रूस भी हैं, जिसे अमेरिकी प्रभाव वाले G7 को काउंटर करने वाला संगठन माना जाता है। इसके असावा ईरान, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का भी अहम सदस्य है। इसके अलावा चीन ने अगले कुछ सालों में ईरान में 400 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है।
रूस भी नहीं टूटने देना चाहता ईरान का किला
रूस के लिए भी ईरान काफी महत्वपूर्ण देश है। रूस ने भी इजरायल-ईरान संघर्ष को रोकने के लिए बतौर मध्यस्थ खुद को पेश किया है। चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि पुतिन के साथ बातचीत के दौरान शी जिनपिंग ने तनाव कम करने के लिए चार प्रस्ताव रखे हैं। जिनमें ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर बातचीत और नागरिक सुरक्षा को सबसे आगे रखा गया है। इस बीच, शी जिनपिंग के विदेश मंत्री वांग यी ने फोन पर ईरान के समर्थन में ईरान और इजरायल के साथ साथ मिस्र और ओमान के विदेश मंत्रियों से बात की है। फिर भी फिलहाल साफ नहीं है कि बीजिंग, वास्तव में संघर्ष में मध्यस्थता करने के लिए तैयार है या नहीं। गाजा पर इजरायल के युद्ध के शुरुआती चरणों में चीन ने इसी तरह की पेशकश की और शांति वार्ता को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र में एक विशेष दूत भेजा था, जो नाकाम रहा था।
सीएनएन के मुताबिक मध्य पूर्व में शांति स्थापित करना एक कठिन काम है, खासकर ऐसे देश के लिए जिसके पास लंबे समय तक चलने वाले युद्धों को रोकने के लिए मध्यस्थता करने का अनुभव नहीं है। मिडिल ईस्ट की स्थिति काफी जटिल है। लिहाजा डोनाल्ड ट्रंप के सामने अब दोहरी चुनौती है। एक तरफ उनके घरेलू समर्थक वर्ग और यहूदी लॉबी उन्हें इजरायल के समर्थन में सैन्य कार्रवाई की ओर धकेल रहे हैं, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और स्थिरता की मांग बढ़ रही है। यदि अमेरिका, इजरायल के साथ मिलकर ईरान पर हमला करता है तो यह न सिर्फ पूरे क्षेत्र को युद्ध में झोंक सकता है, बल्कि अमेरिका की वैश्विक साख को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
सीएनएन ने क्रेमलिन के हवाले से बताया है कि रूस और चीन के राष्ट्रपतियों ने टेलीफोन पर बातचीत के दौरान ईरान पर इजरायली हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है। हालांकि इस दौरान बीजिंग के बयान में शी जिनपिंग की तरफ से थोड़ा ज्यादा संयमित लहजे में बात की गई और इजरायल की स्पष्ट रूप से निंदा करने से परहेज किया है। चीनी राष्ट्रपति ने इजरायल की निंदा करने के बजाए युद्ध में शामिल दोनों पक्षों, खासकर इजरायल से युद्ध को आगे ना बढ़ाने का आग्रह किया है, ताकि क्षेत्रीय संघर्ष ना फैले और जल्द संघर्ष विराम हो। जबकि, चीनी विदेश मंत्री वांग यी इससे पहले ईरानी समकक्ष से बातचीत के दौरान इजरायल की कड़ी आलोचना कर चुके हैं। लेकिन शी जिनपिंग ने इजरायल का नाम लिए बगैर "विवादित पक्षों से" युद्धविराम की अपील की।
ईरान के साथ आए चीन और रूस
शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के बीच टेलीफोन पर उस वक्त बात हुई है जब कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है की चीन के कई एयरक्राफ्ट ईरान में उतरे हैं। आशंका जताई गई है कि चीन ने ईरान में हथियार भेजे हैं। हालांकि हम इसकी पुष्टि नहीं कर रहे हैं। चीन लंबे वक्त से अमेरिका को मिडिल ईस्ट में अस्थिरता के लिए जिम्मेदार मानता आया है। चीन के कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मौजूदा युद्ध को लेकर भी अमेरिका पर आरोप लगा रहे हैं। शंघाई इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के मिडिल ईस्ट एक्सपर्ट लियू झोंगमिन ने मौजूदा हालातों के लिए डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि ट्रंप की वजह से मिडिल ईस्ट में अस्थिरता और अराजकता की स्थिति फैल गई है। उन्होंने कहा है कि "डोनाल्ड ट्रंप ने मध्य पूर्व में अमेरिकी नीति के अधिकार और विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है, अपने सहयोगियों के बीच अमेरिका के नेतृत्व और छवि को नष्ट कर दिया है साथ ही क्षेत्रीय विरोधियों को धमकाने और रोकने की इसकी क्षमता को भी कमजोर कर दिया है।"
यूक्रेन की तरह फंसेगा इजरायल-ईरान युद्ध?
चीन के कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप मिडिल ईस्ट को एक अनिश्चितकालीन युद्ध में फंसा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के करीबी अधिकारियों ने बार-बार वाशिंगटन को इंडो-पैसिफिक में चीन की महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने के लिए अपने ध्यान और संसाधनों को फिर से लगाने की जरूरतों पर ध्यान दिया है। फिर भी पांच महीने बाद यूक्रेन और गाजा में युद्ध जारी है और अब अमेरिका इजरायल के युद्ध में उतरने की योजना बना रहा है। दूसरी तरफ चीन नहीं चाहता है कि ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई की शासन का अंत हो। सुप्रीम लीडर खामेनेई के नेतृत्व में ईरान, मध्य पूर्व में एक दुर्जेय शक्ति और अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने वाले देश के तौर पर सामने आया है। ये ठीक वैसा ही है जैसे चीन अब अमेरिकी शक्ति को चुनौती दे रहा है।
चीन ने साल 2023 में सऊदी अरब और ईरान की दोस्ती करवाकर अमेरिका को चौंका दिया था। चीन ने लंबे समय से ईरान को तेल आयात और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी सीट के जरिए समर्थन दिया है। पिछले कुछ सालों में चीन और ईरान ने संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करने के साथ साथ अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा किया है। बीजिंग ने शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स में तेहरान का स्वागत किया। इस गुट में भारत के साथ चीन और रूस भी हैं, जिसे अमेरिकी प्रभाव वाले G7 को काउंटर करने वाला संगठन माना जाता है। इसके असावा ईरान, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का भी अहम सदस्य है। इसके अलावा चीन ने अगले कुछ सालों में ईरान में 400 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है।
रूस भी नहीं टूटने देना चाहता ईरान का किला
रूस के लिए भी ईरान काफी महत्वपूर्ण देश है। रूस ने भी इजरायल-ईरान संघर्ष को रोकने के लिए बतौर मध्यस्थ खुद को पेश किया है। चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि पुतिन के साथ बातचीत के दौरान शी जिनपिंग ने तनाव कम करने के लिए चार प्रस्ताव रखे हैं। जिनमें ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर बातचीत और नागरिक सुरक्षा को सबसे आगे रखा गया है। इस बीच, शी जिनपिंग के विदेश मंत्री वांग यी ने फोन पर ईरान के समर्थन में ईरान और इजरायल के साथ साथ मिस्र और ओमान के विदेश मंत्रियों से बात की है। फिर भी फिलहाल साफ नहीं है कि बीजिंग, वास्तव में संघर्ष में मध्यस्थता करने के लिए तैयार है या नहीं। गाजा पर इजरायल के युद्ध के शुरुआती चरणों में चीन ने इसी तरह की पेशकश की और शांति वार्ता को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र में एक विशेष दूत भेजा था, जो नाकाम रहा था।
सीएनएन के मुताबिक मध्य पूर्व में शांति स्थापित करना एक कठिन काम है, खासकर ऐसे देश के लिए जिसके पास लंबे समय तक चलने वाले युद्धों को रोकने के लिए मध्यस्थता करने का अनुभव नहीं है। मिडिल ईस्ट की स्थिति काफी जटिल है। लिहाजा डोनाल्ड ट्रंप के सामने अब दोहरी चुनौती है। एक तरफ उनके घरेलू समर्थक वर्ग और यहूदी लॉबी उन्हें इजरायल के समर्थन में सैन्य कार्रवाई की ओर धकेल रहे हैं, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और स्थिरता की मांग बढ़ रही है। यदि अमेरिका, इजरायल के साथ मिलकर ईरान पर हमला करता है तो यह न सिर्फ पूरे क्षेत्र को युद्ध में झोंक सकता है, बल्कि अमेरिका की वैश्विक साख को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
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