काबुल: भारत के साथ हालिया संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को तालिबान की शरण में जाने को मजबूर होना पड़ा है। पाकिस्तान इस बात से डरा हुआ था कि भारत के साथ-साथ अगर अफगानिस्तान बॉर्डर पर तनाव बढ़ा तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। ऐसे में पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार के विशेष दूत मोहम्मद सादिक खान ने बीते हफ्ते के आखिर में काबुल पहुंच कर अफगानिस्तान के तालिबान शासन के अफसरों और हक्कानी नेटवर्क के नेताओं से मुलाकात की। इस दौरान पाक के विशेष दूत ने अफगानिस्तान के नेताओं से ये वादा लिया कि वह पाक-अफगान बॉर्डर पर कोई तनाव पैदा नहीं करेंगे। पाकिस्तान के अलावा चीन के विशेष दूत भी इस दौरान काबुल में थे।एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी दूत सादिक की काबुल यात्रा का उद्देश्य पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर शांति सुनिश्चित करना था और उनका यह दौरा सफल भी रहा। इस दौरान काबुल से पाकिस्तानी अधिकारियों को भरोसा मिला कि उनको पश्चिमी सीमा के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि तालिबान शासन ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी पड़ोसी देश के खिलाफ नहीं होगा। तालिबान के बड़े नेताओं से मिले सादिकपाकिस्तान के विशेष दूत मोहम्मद सादिक खान ने काबुल में तालिबान के कई बड़े नेताओं से मुलाकात की। इनमें तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी, गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी और उद्योग मंत्री नूरुद्दीन अजीजी शामिल थे। इस दौरान हक्कानी ने क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने के महत्व पर जोर दिया। सिराजुद्दीन हक्कानी ने चीनी और पाकिस्तानी दोनों दूतों को आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान की सीमा पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण रहेगी। दावा है कि इस दौरान तालिबान के विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद को समर्थन देने का वादा किया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार किसी भी पड़ोसी देश के खिलाफ नहीं है।पाकिस्तान काफी समय से अफगानिस्तान सीमा के पास तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूच विद्रोहियों के गुटों के खिलाफ सैन्य अभियान चला रही है। इस्लामाबाद ने बार-बार अफगान तालिबान पर इन समूहों को शरण देने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान की ओर से तालिबान पर भारत के साथ मिलकर काम करने का आरोप भी लगाया जाता रहा है। ऐसे में भारत से तनाव के बीच तालिबान और अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय गुटों को लेकर पाकिस्तान डर गया था, क्योंकि उसकी सेना का ध्यान भारत से संघर्ष पर लगा हुआ था।
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