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दलदल भरा जंगली इलाका, जान पर संकट और 400 की संख्या... फिर हुआ करिश्मा और बचने लगी इन दुर्लभ कछुओं की जिंदगी

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नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति के कछुए को बचाने की ठान ली है। दलदल वाले इलाकों में रहने की वजह से इन्हें पश्चिमी दलदली कछुआ कहा जाता है। हालांकि, दलदली जगहों के सूखने की वजह से अब इन कछुओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। मौजूदा वक्त में इनकी संख्या घटकर महज 400-500 ही बची है। हाल ही में वैज्ञानिकों को एक खुशखबरी मिली है। उन्हें पता चला है कि यह कछुआ ठंडे इलाकों में भी जीवित रह सकता है। इसके बाद से इन्हें बचाने की कोशिशों में एक नई उम्मीद दिखने लगी है।दरअसल पहले माना जाता था कि कछुओं की ये प्रजाति केवल गरम जगहों पर ही रह सकती है। लेकिन, हाल ही में हुई एक रिसर्च ने वैज्ञानिकों को नई उम्मीद दी है। इस रिसर्च के नतीजों से उत्साहित होकर वैज्ञानिक अब इन कछुओं को दूसरी जगहों पर बसाने की योजना बना रहे हैं। ताकि, विलुप्त होती इस प्रजाति को बचाया जा सके। इससे पहले 'बम-ब्रीदिंग पंक' प्रजाति के कछओं को लेकर भी चिंता जाहिर की गई थी, लेकिन पश्चिमी दलदली कछुओं की चुनौती पूरी तरह से अलग है। नॉर्थक्लिफ में बसाई गई कछुओं की प्रजातिबम-ब्रीदिंग पंक प्रजाति के कछुओं का पर्यावरण सुरक्षित है, लेकिन पश्चिमी दलदली कछुओं का आवास तेजी से सूख रहा है। जीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में पर्थ से 280 मील दूर नॉर्थक्लिफ में इन कछुओं को एक नई जगह पर छोड़ा गया था। यहां का पानी इन कछुओं के लिए जरूरी तापमान 14°C या 57°F से भी कम था। लेकिन, वैज्ञानिकों के लिए हैरानी की बात यह थी कि ये कछुए यहां भी जीवित रहे। इसकी वजह शायद यह थी कि यहां पानी का बहाव लगातार बना हुआ था और इसलिए इन्हें भोजन मिलता रहा। जलवायु परिवर्तन की वजह से आया संकटइस प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी में प्राणी जीव विज्ञान की सीनियर लेक्चरर निकी मिशेल ने उस वक्त कहा था कि ये एक बहुत ही खास प्रोजेक्ट है। ऐसा पहली बार है जब किसी प्रजाति को जलवायु परिवर्तन की वजह से उसके प्राकृतिक आवास से अलग जगह पर बसाने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में वन्यजीव एक्सपर्ट पॉलीन हेविट को नॉर्थक्लिफ में एक घायल कछुआ मिला। उसके खोल में दरार आ गई थी। उसे तुरंत इलाज के लिए पर्थ चिड़ियाघर लाया गया और ठीक होने के बाद उसे वापस उसके आवास में छोड़ दिया गया। ऑगस्टा में भी बसाई जा रही कछुओं की आबादीपॉलीन हेविट ने बताया कि उसे घर वापस आते और पानी में छोड़ते समय उसके पैरों को हिलाते हुए देखना वाकई बहुत खुशी की बात थी। इस प्रोजेक्ट के नतीजों पर बात करते हुए निकी मिशेल ने बताया कि उन्हें यकीन नहीं था कि वे ठंडे तापमान में इतना अच्छा अनुकूलन कर पाएंगे। लेकिन, अब ऐसा लगता है कि ये कछुए दक्षिणी इलाकों में भी अच्छी विकास दर के साथ रह सकते हैं। इस प्रयोग की सफलता के बाद पर्थ से लगभग 60 मील पूर्व में ऑगस्टा में भी इन कछुओं की एक नई आबादी को बसाया गया है। यहां का तापमान नॉर्थक्लिफ से ज्यादा है।
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