अक्सर लोग पितृदोष या सर्पश्राप के कारण सन्तान सुख से वंचित रहते हैं। इन शापों की स्थिति ग्रह नक्षत्र से स्पष्ट देखने को मिलती है। जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति पितृदोष के कारण बताती है। पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति को अशुभ ग्रहों की दशा में मृत्युतुल्य कष्ट सहना पड़ता है और शुभ ग्रहों की दशा में पूर्ण शुभ फल प्राप्त नहीं होता। लोगों की जन्मकुण्डलियों में राजयोग तो होता है लेकिन पितृदोष के कारण पूर्ण फल नहीं मिल पाता। पितृकोप से अभिशप्त परिवार के सदस्यों का सौभाग्य, दुर्भाग्य में बदल जाता है और उन्हें अकारण ही रोग-शोक, दुःख-दरिद्रता का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिषीय विश्लेषण- जन्मकुण्डली में निम्नांकित योग हो तो पितृशाप के कारण सन्तान बाधा होती है :
उपाय- पितृगण देवताओं से भी अधिक कृपालु होते हैं और अगर उन्हें श्राद्ध आदि कर तृप्त कर दिया जाता है तो वह प्रसन्न होकर अपने वंशजों पर अतिशीघ्र द्रवित होकर अभीष्ट प्रदान करते हैं। पितृपक्ष के दौरान दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पितृों के नाम से दान-पुण्य करने से लाभ प्राप्त होता है क्योंकि इस समय दिया गया दान पितृों को सीधे प्राप्त होता है, इसके तहत श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराना, वस्त्र, दक्षिणा सहित वह सभी वस्तुएं भी दान देनी चाहिए जो पितृों को प्रिय थीं। पीपल के वृक्ष की परिक्रमा और दूध मिश्रित जल चढ़ाना विशेष लाभदायक होता है। मान्यता है कि गंगा तट या पीपल वृक्ष के नीचे किया गया पितृ कर्म कई गुना फलदायी होता है।
ज्योतिषीय विश्लेषण- जन्मकुण्डली में निम्नांकित योग हो तो पितृशाप के कारण सन्तान बाधा होती है :
- पंचम भाव में तुला का सूर्य हो एवं शनि के नवांश में पंचमेश हो।
- पांचवां भाव पाप ग्रहों द्वारा पीड़ित हो अथवा पापकर्तरी योग से युक्त हो।
- पांचवें भाव में स्वगृही सूर्य एवं गुरु हों, उस पर पाप दृष्टियां हों।
- आठवें भाव में सूर्य, पांचवें भाव में शनि तथा पंचमेश राहु के साथ हो।
- अष्टमेश एवं दशमेश पंचम भाव में हो और व्ययेश लग्न में हो।
- पंचमेश चन्द्र नीच का हो, चन्द्रमा पाप ग्रहों के बीच में हो तथा चतुर्थ और पंचम पाप ग्रह हो, तो मातृशाप से सन्तान बाधा होती है।
- पंचमेश चन्द्र, राहु एवं शनि मंगल के साथ हो।
- चतुर्थेश मंगल हो व राहु एवं शनि के साथ हो।
- लग्न में सूर्य एवं चन्द्र हो, चतुर्थेश आठवें हो, पंचमेश एवं लग्नेश छठवें हो, दशमेश या षष्ठेश लग्न में हो।
- राहु, सूर्य, मंगल एवं शनि यथाक्रम एक, पांच, छः एवं आठवें भाव में हो और लग्नेश त्रिक में हो।
- राहु, मंगल, गुरु तीनों त्रिक् (6/8) में हो, पंचम भाव में चन्द्र हो।
उपाय- पितृगण देवताओं से भी अधिक कृपालु होते हैं और अगर उन्हें श्राद्ध आदि कर तृप्त कर दिया जाता है तो वह प्रसन्न होकर अपने वंशजों पर अतिशीघ्र द्रवित होकर अभीष्ट प्रदान करते हैं। पितृपक्ष के दौरान दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पितृों के नाम से दान-पुण्य करने से लाभ प्राप्त होता है क्योंकि इस समय दिया गया दान पितृों को सीधे प्राप्त होता है, इसके तहत श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराना, वस्त्र, दक्षिणा सहित वह सभी वस्तुएं भी दान देनी चाहिए जो पितृों को प्रिय थीं। पीपल के वृक्ष की परिक्रमा और दूध मिश्रित जल चढ़ाना विशेष लाभदायक होता है। मान्यता है कि गंगा तट या पीपल वृक्ष के नीचे किया गया पितृ कर्म कई गुना फलदायी होता है।
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