पटना: वक्फ बोर्ड संशोधन बिल से कानून बनने तक बीजेपी ने जिन पसमांदा मुसलमानों को टारगेट किया था, अब धीरे-धीरे पार्टी के प्लेटफार्म पर सक्रिय सदस्य के रूप उन्हें झंडाबरदार करने की कोशिश शुरू हो गई है। भाजपा ने पिछले सोमवार को प्रदेश कार्यालय, अटल सभागार (पटना)में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिलीप जायसवाल और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की मौजूदगी में बड़ी संख्या में पसमांदा मुसलमान समाज के लोगों ने भाजपा की सदस्यता ली। पर सवाल उठता है कि ये पसमांदा कौन हैं, जिस पर बीजेपी ने भरोसा किया?
मुस्लिम और उनका वर्गीकरण
मुस्लिम के बीच वर्गीकरण को समझना हो तो उनके मूल तीन वर्ग को समझना होगा। ये तीन वर्ग हैं अशराफ, अजलाफ और अरजाल। अशराफ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें सैयद, शेख, मुगल, पठान, मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम शामिल हैं। अजलाफ मुस्लिमों में अंसारी, मंसूरी, कासगर, राइन, गुजर, बुनकर, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरिसी, नाइक, फकीर, सैफी, अलवी, सलमानी जैसी जातियां हैं। अरजाल में दलित मुस्लिम शामिल हैं। बीजेपी की नजर अजलाफ और अरजाल समुदाय के इन्हीं मुसलमान वोटरों पर है जिन्हें पसमांदा कहा जाता है।
80 प्रतिशत पर निशाना
बीजेपी ने पसमांदा को साथ लेने की मुहिम की शुरुआत उन 80 प्रतिशत मुस्लिमों को साथ ले कर चलने की रणनीति बनाई जो आर्थिक रूप से पिछड़ गए हैं। इस संशोधन बिल के जरिए बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों के बीच कुछ ऐसे तथ्य रखे, जिनका प्रभाव पड़ा। कुछ सवाल भी उठाए जैसे...
जातीय जनगणना और मुस्लिमबीजेपी ने वक्फ बोर्ड संशोधन के जरिए पसमांदा मुस्लिमों को करीब ले आई, लेकिन जातीय जनगणना करा कर पसमांदा मुस्लिम के बीच नेतृत्व की इच्छा प्रकट कर दी। आज की राजनीति में अधिसंख्य भागीदारी अशरफ के विरुद्ध बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों को खड़ा कर एक चुनौती तो दे ही डाली है।
मुस्लिम और उनका वर्गीकरण
मुस्लिम के बीच वर्गीकरण को समझना हो तो उनके मूल तीन वर्ग को समझना होगा। ये तीन वर्ग हैं अशराफ, अजलाफ और अरजाल। अशराफ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें सैयद, शेख, मुगल, पठान, मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम शामिल हैं। अजलाफ मुस्लिमों में अंसारी, मंसूरी, कासगर, राइन, गुजर, बुनकर, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरिसी, नाइक, फकीर, सैफी, अलवी, सलमानी जैसी जातियां हैं। अरजाल में दलित मुस्लिम शामिल हैं। बीजेपी की नजर अजलाफ और अरजाल समुदाय के इन्हीं मुसलमान वोटरों पर है जिन्हें पसमांदा कहा जाता है।
80 प्रतिशत पर निशाना
बीजेपी ने पसमांदा को साथ लेने की मुहिम की शुरुआत उन 80 प्रतिशत मुस्लिमों को साथ ले कर चलने की रणनीति बनाई जो आर्थिक रूप से पिछड़ गए हैं। इस संशोधन बिल के जरिए बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों के बीच कुछ ऐसे तथ्य रखे, जिनका प्रभाव पड़ा। कुछ सवाल भी उठाए जैसे...
- वक्फ बोर्ड ने आजतक मुसलमानों की तरक्की में क्या योगदान दिया?
- वक्फ बोर्ड ने आजतक कितनी गरीब बच्चियों की शादी करवाई?
- वक्फ बोर्ड ने कितने लोगों को घर दिए?
- वो कौन लोग हैं जो वक्फ बोर्ड की तमाम दुकानों पर 20 रुपये और 50 रुपये देकर कब्जा किए हुए हैं?
- वक्फ बोर्ड के पास देश की तीसरी सबसे बड़ी सम्पत्ति होने के बावजूद सड़क पर घूमने वाला हर चौथा भिखारी मुस्लिम ही क्यों है?
- वक्फ बोर्ड ने आजतक अपनी आमदनी और खर्च को सार्वजनिक क्यों नहीं किया है?
जातीय जनगणना और मुस्लिमबीजेपी ने वक्फ बोर्ड संशोधन के जरिए पसमांदा मुस्लिमों को करीब ले आई, लेकिन जातीय जनगणना करा कर पसमांदा मुस्लिम के बीच नेतृत्व की इच्छा प्रकट कर दी। आज की राजनीति में अधिसंख्य भागीदारी अशरफ के विरुद्ध बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिमों को खड़ा कर एक चुनौती तो दे ही डाली है।
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