नई दिल्ली: योजना आयोग (अब नीति आयोग ) के पूर्व सदस्य अरुण मायरा ने भारत की आर्थिक नीति पर नया नजरिया पेश किया है। उनका तर्क है कि भारत को सिर्फ ज्यादा फैक्ट्रियों की नहीं, बल्कि कर्मचारियों के लिए बेहतर वेतन की जरूरत है। वह हेनरी फोर्ड के ऊंची-मजदूरी के मॉडल को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रेरणा मानते हैं। अरुण मायरा के अनुसार, औद्योगिक विकास का मूल मंत्र निवेश, मांग और आय के बीच मजबूत संबंध बनाना है। जब निवेश से पैदा होने वाले उत्पादों की मांग की उम्मीद होती है, तभी निवेश होता है। यह मांग लोगों की आय बढ़ने से आती है। आय तभी बढ़ती है जब लोगों को अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां मिलती हैं। अपनी नई किताब 'रीइमेजिनिंग इंडियाज इकोनॉमी: द रोड टू ए मोर इक्विटेबल सोसाइटी' में उन्होंने ये बातें कही हैं।
अरुण मायरा ने हेनरी फोर्ड के उदाहरण का हवाला देकर समझाया कि कैसे उन्होंने मजदूरी, मांग और विकास के बीच के इस साइकिल को समझा। फोर्ड ने अपने कारखाने के मजदूरों का वेतन दोगुना कर दिया। इससे उनके प्रतिस्पर्धियों ने शिकायत की कि वह लेबर मार्केट को बिगाड़ रहे हैं। लेकिन, फोर्ड का कहना था कि वह अपनी कारों की मांग बढ़ाना चाहते थे। इसलिए वह मजदूरों को इतना भुगतान करना चाहते थे कि वे कारें खरीद सकें। फोर्ड का यह कदम सिर्फ उदारता नहीं, बल्कि इनोवेशन का भी नतीजा था। उन्होंने कारों को सस्ता बनाने के लिए मॉडल टी जैसी सरल कारें बनाईं। असेंबली लाइन जैसी उत्पादन प्रणाली विकसित की। इससे मजदूरों को कम वेतन पर भी कारें सस्ती पड़ीं, भले ही उन्हें ज्यादा मजदूरी मिल रही थी।
कैसे होता है साइक्लिक इफेक्ट?
फोर्ड की प्रणाली आत्मनिर्भर ग्रोथ साइकिल बन गई। उत्पादन डिजाइन में इनोवेशन से कुल लागत बढ़ाए बिना मजदूरी बढ़ाई जा सकी। बढ़ी मजदूरी से मांग में इजाफा हुआ। इससे और अधिक निवेश और रोजगार के अवसर पैदा हुए। अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने से उत्पादन बढ़ाने के लिए और निवेश हुआ। इस तरह ऑटोमोबाइल उद्योग का विस्तार हुआ। साथ ही रोजगार भी बढ़ा। यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख इंजन बन गया। मायरा का मानना है कि भारत भी इसी तरह के इनोवेशन-संचालित विकास को दोहरा सकता है, खासकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में।
मायरा का कहना है कि फोर्ड के इनोवेशन ने आंतरिक मांग को बढ़ाया। इससे लाभदायक निवेश हुए। अर्थव्यवस्था के भीतर रोजगार और आय में बढ़ोतरी हुई। यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक आदर्श मॉडल हो सकता है। अरुण मायरा पहले बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं। टाटा समूह के साथ उन्होंने दो दशक से ज्यादा समय बिताया है। उनका मानना है कि उद्यम डिजाइन और उत्पादन विधियों में इनोवेशन ग्रामीण भारत के अधिक लोगों को मूल्य वर्धित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में शामिल कर सकता है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं विकसित होंगी और अधिक रोजगार पैदा होंगे।
भारत को बढ़ानी होंगी तकनीकी क्षमताएं
ग्रामीण मांग में बढ़ोतरी से शहरी कारखानों के उत्पादों की मांग भी बढ़ सकती है। इससे शहरी क्षेत्रों में निवेश और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। मायरा ने 2007-2012 की अवधि का उदाहरण दिया। तब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में थी। उस समय भी ग्रामीण भारतीय मांग ने दोपहिया वाहनों और अन्य उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा दिया। हालांकि, फोर्ड का मॉडल आंतरिक मांग पर आधारित है। मायरा स्वीकार करते हैं कि भारत, कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तरह, अक्सर विकास के लिए बाहरी मांग पर निर्भर रहा है।
मायरा लिखते हैं, 'अर्थव्यवस्था के भीतर मांग को जगाना, निवेश और विकास को रफ्तार देने के लिए बाहर की मांग का लाभ उठाने की तुलना में ज्यादा कठिन है।' यह 'निर्यात-संचालित विकास' का तर्क है जिसने चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाया।
औद्योगीकरण को बनाए रखने के लिए अरुण मायरा का कहना है कि भारत को अपनी तकनीकी क्षमता बढ़ानी होगी। वह लिखते हैं, 'निवेश को वास्तविक उत्पादन में बदलने के लिए प्रयास की जरूरत है। इसलिए स्मार्ट निवेशक देश में उद्यम स्थापित करने और संचालित करने में आने वाली कठिनाइयों का भी आकलन करते हैं।' यही कारण है कि विश्व बैंक का 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' ढांचा और नियमों को सरल बनाने की सरकार की पहल महत्वपूर्ण है।
अरुण मायरा ने हेनरी फोर्ड के उदाहरण का हवाला देकर समझाया कि कैसे उन्होंने मजदूरी, मांग और विकास के बीच के इस साइकिल को समझा। फोर्ड ने अपने कारखाने के मजदूरों का वेतन दोगुना कर दिया। इससे उनके प्रतिस्पर्धियों ने शिकायत की कि वह लेबर मार्केट को बिगाड़ रहे हैं। लेकिन, फोर्ड का कहना था कि वह अपनी कारों की मांग बढ़ाना चाहते थे। इसलिए वह मजदूरों को इतना भुगतान करना चाहते थे कि वे कारें खरीद सकें। फोर्ड का यह कदम सिर्फ उदारता नहीं, बल्कि इनोवेशन का भी नतीजा था। उन्होंने कारों को सस्ता बनाने के लिए मॉडल टी जैसी सरल कारें बनाईं। असेंबली लाइन जैसी उत्पादन प्रणाली विकसित की। इससे मजदूरों को कम वेतन पर भी कारें सस्ती पड़ीं, भले ही उन्हें ज्यादा मजदूरी मिल रही थी।
कैसे होता है साइक्लिक इफेक्ट?
फोर्ड की प्रणाली आत्मनिर्भर ग्रोथ साइकिल बन गई। उत्पादन डिजाइन में इनोवेशन से कुल लागत बढ़ाए बिना मजदूरी बढ़ाई जा सकी। बढ़ी मजदूरी से मांग में इजाफा हुआ। इससे और अधिक निवेश और रोजगार के अवसर पैदा हुए। अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने से उत्पादन बढ़ाने के लिए और निवेश हुआ। इस तरह ऑटोमोबाइल उद्योग का विस्तार हुआ। साथ ही रोजगार भी बढ़ा। यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख इंजन बन गया। मायरा का मानना है कि भारत भी इसी तरह के इनोवेशन-संचालित विकास को दोहरा सकता है, खासकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में।
मायरा का कहना है कि फोर्ड के इनोवेशन ने आंतरिक मांग को बढ़ाया। इससे लाभदायक निवेश हुए। अर्थव्यवस्था के भीतर रोजगार और आय में बढ़ोतरी हुई। यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक आदर्श मॉडल हो सकता है। अरुण मायरा पहले बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं। टाटा समूह के साथ उन्होंने दो दशक से ज्यादा समय बिताया है। उनका मानना है कि उद्यम डिजाइन और उत्पादन विधियों में इनोवेशन ग्रामीण भारत के अधिक लोगों को मूल्य वर्धित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में शामिल कर सकता है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं विकसित होंगी और अधिक रोजगार पैदा होंगे।
भारत को बढ़ानी होंगी तकनीकी क्षमताएं
ग्रामीण मांग में बढ़ोतरी से शहरी कारखानों के उत्पादों की मांग भी बढ़ सकती है। इससे शहरी क्षेत्रों में निवेश और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। मायरा ने 2007-2012 की अवधि का उदाहरण दिया। तब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में थी। उस समय भी ग्रामीण भारतीय मांग ने दोपहिया वाहनों और अन्य उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा दिया। हालांकि, फोर्ड का मॉडल आंतरिक मांग पर आधारित है। मायरा स्वीकार करते हैं कि भारत, कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तरह, अक्सर विकास के लिए बाहरी मांग पर निर्भर रहा है।
मायरा लिखते हैं, 'अर्थव्यवस्था के भीतर मांग को जगाना, निवेश और विकास को रफ्तार देने के लिए बाहर की मांग का लाभ उठाने की तुलना में ज्यादा कठिन है।' यह 'निर्यात-संचालित विकास' का तर्क है जिसने चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाया।
औद्योगीकरण को बनाए रखने के लिए अरुण मायरा का कहना है कि भारत को अपनी तकनीकी क्षमता बढ़ानी होगी। वह लिखते हैं, 'निवेश को वास्तविक उत्पादन में बदलने के लिए प्रयास की जरूरत है। इसलिए स्मार्ट निवेशक देश में उद्यम स्थापित करने और संचालित करने में आने वाली कठिनाइयों का भी आकलन करते हैं।' यही कारण है कि विश्व बैंक का 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' ढांचा और नियमों को सरल बनाने की सरकार की पहल महत्वपूर्ण है।
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