नई दिल्ली: भारत ने रूस से तेल का आयात पिछले 3 सालों में बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। पहले ये कुल तेल आयात का 1% से भी कम था। अब ये बढ़कर 40% हो गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर को कम करने के लिए तेल पर छूट दे रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बारे में कहा, 'ऊर्जा सुरक्षा को लेकर हमारी चिंताएं और हित उन्हें (अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम) बता दिए गए हैं। इसलिए जब ऐसी कोई बात होगी, तब हम देखेंगे।'
एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने नए बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाले तीन देश हैं- चीन (78 अरब यूरो), भारत (49 अरब यूरो) और तुर्किये (34 अरब यूरो)। इन तीनों देशों ने मिलकर रूस के जीवाश्म ईंधन से होने वाली कुल कमाई का 74% हिस्सा दिया। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर नाम के एक थिंक टैंक ने दी है।
भारत ने अमेरिका को बताई चिंताएंविदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने लिंडसे ग्राहम को एक प्रस्तावित बिल पर अपनी चिंता व्यक्त की है। यह बिल रूस से कच्चा तेल खरीदने वाले देशों पर 500% का टैरिफ लगाने की बात करता है।
जयशंकर ने वाशिंगटन में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, 'सीनेटर लिंडसे ग्राहम के बिल के बारे में, अमेरिकी कांग्रेस में हो रहा कोई भी डेवलपमेंट, जो हमारे हित को प्रभावित करता है या कर सकता है, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए हम सीनेटर लिंडसे ग्राहम के संपर्क में हैं। दूतावास और राजदूत उनसे बात कर रहे हैं।'
टैरिफ में छूट मांग सकता है भारतरूस-अमेरिका मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत इस बिल के तहत छूट मांग सकता है। मतलब, भारत चाहेगा कि उसे इस टैरिफ से छूट मिल जाए।
यह बिल रूस से तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम और अन्य उत्पाद खरीदने वाले किसी भी देश पर 500% का टैरिफ लगाने का प्रस्ताव करता है। सीनेट में इस बिल के 80 से ज्यादा सह-प्रायोजक हैं, जिससे यह वीटो-प्रूफ हो सकता है। इसका मतलब है कि अगर यह बिल पास हो जाता है, तो इसे रोकना मुश्किल होगा।
ट्रंप की मंजूरी का इंतजारभारत के रूस के साथ पुराने संबंध हैं। इसलिए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है। कुछ अमेरिकी सांसद इस बिल को लेकर थोड़े हिचकिचा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।
इस बिल में एक और बात है। अगर कोई देश यूक्रेन की रक्षा में मदद कर रहा है, तो उसे इस टैरिफ से छूट मिल सकती है। भारत के लिए, अमेरिका एक बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है। इसलिए, इस बिल का भारत की अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर बहुत असर पड़ सकता है। यह मामला भारत और अमेरिका के संबंधों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने नए बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाले तीन देश हैं- चीन (78 अरब यूरो), भारत (49 अरब यूरो) और तुर्किये (34 अरब यूरो)। इन तीनों देशों ने मिलकर रूस के जीवाश्म ईंधन से होने वाली कुल कमाई का 74% हिस्सा दिया। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर नाम के एक थिंक टैंक ने दी है।
भारत ने अमेरिका को बताई चिंताएंविदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने लिंडसे ग्राहम को एक प्रस्तावित बिल पर अपनी चिंता व्यक्त की है। यह बिल रूस से कच्चा तेल खरीदने वाले देशों पर 500% का टैरिफ लगाने की बात करता है।
जयशंकर ने वाशिंगटन में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, 'सीनेटर लिंडसे ग्राहम के बिल के बारे में, अमेरिकी कांग्रेस में हो रहा कोई भी डेवलपमेंट, जो हमारे हित को प्रभावित करता है या कर सकता है, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए हम सीनेटर लिंडसे ग्राहम के संपर्क में हैं। दूतावास और राजदूत उनसे बात कर रहे हैं।'
टैरिफ में छूट मांग सकता है भारतरूस-अमेरिका मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत इस बिल के तहत छूट मांग सकता है। मतलब, भारत चाहेगा कि उसे इस टैरिफ से छूट मिल जाए।
यह बिल रूस से तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम और अन्य उत्पाद खरीदने वाले किसी भी देश पर 500% का टैरिफ लगाने का प्रस्ताव करता है। सीनेट में इस बिल के 80 से ज्यादा सह-प्रायोजक हैं, जिससे यह वीटो-प्रूफ हो सकता है। इसका मतलब है कि अगर यह बिल पास हो जाता है, तो इसे रोकना मुश्किल होगा।
ट्रंप की मंजूरी का इंतजारभारत के रूस के साथ पुराने संबंध हैं। इसलिए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है। कुछ अमेरिकी सांसद इस बिल को लेकर थोड़े हिचकिचा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।
इस बिल में एक और बात है। अगर कोई देश यूक्रेन की रक्षा में मदद कर रहा है, तो उसे इस टैरिफ से छूट मिल सकती है। भारत के लिए, अमेरिका एक बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है। इसलिए, इस बिल का भारत की अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर बहुत असर पड़ सकता है। यह मामला भारत और अमेरिका के संबंधों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
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