नई दिल्ली: हेज फंड मैनेजर अक्षत श्रीवास्तव का मानना है कि बाजार में बड़े क्रैश के डर को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। उनका लॉजिक है कि अगले पांच सालों में आर्थिक बुनियादें (मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेंटल्स) विकास का समर्थन करती रहेंगी। श्रीवास्तव ने हाल ही में एक वीडियो में कहा कि बाजार में दो तरह के विचार हैं। एक विचार यह है कि सब कुछ रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। जैसे अमेरिकी शेयर बाजार , सोना और रियल एस्टेट। भारतीय शेयर बाजार अभी रिकॉर्ड ऊंचाई पर नहीं हैं। लेकिन, उनके ऊपर जाने की संभावना है। इसके उलट निराशावादी अमेरिकी कर्ज, कमजोर डॉलर और आर्थिक पतन के डर पर फोकस करते हैं। लोग इस बात को लेकर उलझन में हैं कि उन्हें पैसा निवेश करना चाहिए या 30-40% बाजार क्रैश का इंतजार करना चाहिए ताकि वे बाद में भारी मुनाफा कमा सकें। श्रीवास्तव का कहना है कि ऐसा 30-40% का क्रैश आने वाला नहीं है।
श्रीवास्तव ने अपने मार्केट आउटलुक को 'तटस्थ से तेजी की ओर' बताया है। उन्होंने अपने विचार का समर्थन करने के लिए तीन-स्तरीय मैक्रोइकॉनॉमिक (आर्थिक) फ्रेमवर्क की रूपरेखा बताई। पहला बड़ा पॉइंट पैसे की सप्लाई में बढ़ोतरी है। उन्होंने समझाया कि 2020 से 2025 के बीच हर चीज की कीमत क्यों बढ़ी? इसका कारण पैसे की सप्लाई में बढ़ोतरी थी। यानी बहुत सारा पैसा छापा गया था। उन्होंने बताया कि अमेरिका का कर्ज अभी 38 ट्रिलियन डॉलर है। 2030 तक यह 50 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यह लगभग 6% का मॉनेटरी एक्सपैंशन है।
भारत की स्थिति बनी रहेगी मजबूत भारत के बारे में उन्होंने कहा कि भारत में 9.5% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से विस्तार होगा। ऐसे में 2025 से 2030 के बीच चाहे हम अमेरिकी बाजार, भारतीय बाजार या वैश्विक बाजार को देखें तो पैसे की सप्लाई या मॉनेटरी ग्रोथ रेट बना रहेगा। पहले बिंदु से मुख्य बात यह है कि अगले पांच वर्षों में पैसे की सप्लाई में वृद्धि अभी भी बहुत ज्यादा है। इस तरह एसेट्स बढ़ते रहेंगे।
विश्लेषण की दूसरी परत यह पहचानना है कि संभावित बुलबुले कहां बन सकते हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि 2025 से 2030 के बीच कुछ संपत्तियां खराब प्रदर्शन कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि एआई, सेमीकंडक्टर, क्रिप्टो और टेक स्टॉक जैसे क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक विकास को रफ्तार दे रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि अगर आप अमेरिकी अर्थव्यवस्था से एआई कंपनियों को हटा दें तो यह निगेटिव ग्रोथ रेट दिखाती है। लेकिन, आप एआई कंपनियों को वापस जोड़ दें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ सकारात्मक हो जाती है।
डॉलर के पतन की चिंंताओं को किया खारिज
अमेरिकी डॉलर के पतन की चिंताओं पर श्रीवास्तव ने घबराहट को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर डॉलर का पतन होता है तो क्या होगा? लगभग 70% वैश्विक व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। ऐसे में फिएट करेंसी (सरकार की ओर से जारी मुद्रा जिसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता) का पतन होगा। यहां तक कि चीनी मुद्रा (रेनमिनबी) भी धराशायी होगी। अमेरिका ने 38 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज किसे दिया है? यह कर्ज कई अन्य देशों को और खुद को भी दिया गया है। इसलिए, अगर अमेरिकी डॉलर शून्य हो जाता है तो उन संपत्तियों के मालिक भी शून्य हो जाएंगे।
उन्होंने इस विचार को भी खारिज कर दिया कि सोना ऐसी स्थिति में फिएट करेंसी को पूरी तरह से बदल सकता है। श्रीवास्तव ने पूछा कि अगर सोने की कीमतें बढ़ती हैं और आप अपना सोना बेचना चाहते हैं तो आप किसे बेचेंगे? आप एक ज्वैलर के पास जाएंगे और वह आपको अमेरिकी डॉलर या रुपये देगा। क्या आप वे अमेरिकी डॉलर या रुपये लेंगे? इसका सीधा जवाब है 'नहीं'। अगर सोना 10 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम हो जाता है तो क्या आप मुद्रा भुगतान स्वीकार करेंगे? इसका मतलब है कि फिएट करेंसी विफल हो रही है।
घबराहट से बचने की अपील
श्रीवास्तव ने निवेशकों से घबराहट से बचने की अपील की। उन्होंने कहा कि दुनिया में एसेट क्लास का एक स्वस्थ संतुलन है। अलग-अलग संपत्तियों को जीवित रहने की जरूरत है। पैसे को ओवरवैल्यूड एसेट से अंडरवैल्यूड एसेट में जाना चाहिए। चूंकि सब कुछ रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, पैसा कहां जाएगा? क्या यह इक्विटी से सोने में जाएगा या सोने से इक्विटी में? कोई नहीं जानता। आम तौर पर जो चीजें ऊंची हैं, वे और ऊंची जा सकती हैं। लेकिन, ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां एसेट क्लास खुद शून्य हो जाए। इसलिए, इस डर फैलाने वाली बातों पर विश्वास न करें।
श्रीवास्तव ने अपने मार्केट आउटलुक को 'तटस्थ से तेजी की ओर' बताया है। उन्होंने अपने विचार का समर्थन करने के लिए तीन-स्तरीय मैक्रोइकॉनॉमिक (आर्थिक) फ्रेमवर्क की रूपरेखा बताई। पहला बड़ा पॉइंट पैसे की सप्लाई में बढ़ोतरी है। उन्होंने समझाया कि 2020 से 2025 के बीच हर चीज की कीमत क्यों बढ़ी? इसका कारण पैसे की सप्लाई में बढ़ोतरी थी। यानी बहुत सारा पैसा छापा गया था। उन्होंने बताया कि अमेरिका का कर्ज अभी 38 ट्रिलियन डॉलर है। 2030 तक यह 50 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यह लगभग 6% का मॉनेटरी एक्सपैंशन है।
भारत की स्थिति बनी रहेगी मजबूत भारत के बारे में उन्होंने कहा कि भारत में 9.5% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से विस्तार होगा। ऐसे में 2025 से 2030 के बीच चाहे हम अमेरिकी बाजार, भारतीय बाजार या वैश्विक बाजार को देखें तो पैसे की सप्लाई या मॉनेटरी ग्रोथ रेट बना रहेगा। पहले बिंदु से मुख्य बात यह है कि अगले पांच वर्षों में पैसे की सप्लाई में वृद्धि अभी भी बहुत ज्यादा है। इस तरह एसेट्स बढ़ते रहेंगे।
विश्लेषण की दूसरी परत यह पहचानना है कि संभावित बुलबुले कहां बन सकते हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि 2025 से 2030 के बीच कुछ संपत्तियां खराब प्रदर्शन कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि एआई, सेमीकंडक्टर, क्रिप्टो और टेक स्टॉक जैसे क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक विकास को रफ्तार दे रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि अगर आप अमेरिकी अर्थव्यवस्था से एआई कंपनियों को हटा दें तो यह निगेटिव ग्रोथ रेट दिखाती है। लेकिन, आप एआई कंपनियों को वापस जोड़ दें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ सकारात्मक हो जाती है।
डॉलर के पतन की चिंंताओं को किया खारिज
अमेरिकी डॉलर के पतन की चिंताओं पर श्रीवास्तव ने घबराहट को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर डॉलर का पतन होता है तो क्या होगा? लगभग 70% वैश्विक व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। ऐसे में फिएट करेंसी (सरकार की ओर से जारी मुद्रा जिसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता) का पतन होगा। यहां तक कि चीनी मुद्रा (रेनमिनबी) भी धराशायी होगी। अमेरिका ने 38 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज किसे दिया है? यह कर्ज कई अन्य देशों को और खुद को भी दिया गया है। इसलिए, अगर अमेरिकी डॉलर शून्य हो जाता है तो उन संपत्तियों के मालिक भी शून्य हो जाएंगे।
उन्होंने इस विचार को भी खारिज कर दिया कि सोना ऐसी स्थिति में फिएट करेंसी को पूरी तरह से बदल सकता है। श्रीवास्तव ने पूछा कि अगर सोने की कीमतें बढ़ती हैं और आप अपना सोना बेचना चाहते हैं तो आप किसे बेचेंगे? आप एक ज्वैलर के पास जाएंगे और वह आपको अमेरिकी डॉलर या रुपये देगा। क्या आप वे अमेरिकी डॉलर या रुपये लेंगे? इसका सीधा जवाब है 'नहीं'। अगर सोना 10 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम हो जाता है तो क्या आप मुद्रा भुगतान स्वीकार करेंगे? इसका मतलब है कि फिएट करेंसी विफल हो रही है।
घबराहट से बचने की अपील
श्रीवास्तव ने निवेशकों से घबराहट से बचने की अपील की। उन्होंने कहा कि दुनिया में एसेट क्लास का एक स्वस्थ संतुलन है। अलग-अलग संपत्तियों को जीवित रहने की जरूरत है। पैसे को ओवरवैल्यूड एसेट से अंडरवैल्यूड एसेट में जाना चाहिए। चूंकि सब कुछ रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, पैसा कहां जाएगा? क्या यह इक्विटी से सोने में जाएगा या सोने से इक्विटी में? कोई नहीं जानता। आम तौर पर जो चीजें ऊंची हैं, वे और ऊंची जा सकती हैं। लेकिन, ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां एसेट क्लास खुद शून्य हो जाए। इसलिए, इस डर फैलाने वाली बातों पर विश्वास न करें।
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