विशाल वर्मा, ललितपुर: समाज की रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए एक बेटी ने न केवल अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा किया, बल्कि समाज के सामने एक अनूठी मिसाल पेश की है। ललितपुर जिले के गांधीनगर निवासी संजय पाराशर की बड़ी बेटी नैनी ने उनकी अर्थी को कंधा देकर और पार्थिव देह को मुखाग्नि देकर यह साबित कर दिया कि श्रद्धा और प्रेम का संबंध लिंग से नहीं, बल्कि दिल से होता है।
पिता की थी यह अंतिम इच्छा
दरअसल, 50 वर्षीय संजय पाराशर कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और उनका झांसी में इलाज चल रहा था और इस दौरान उनका निधन हो गया। संजय पाराशर के दो बेटियां हैं और कोई पुत्र नहीं था। उनकी यह अंतिम इच्छा थी कि उन्हें लावारिस हाथों की बजाय उनकी अपनी बेटी के हाथों ही मुखाग्नि मिले। उनका मानना था कि अंतिम विदाई का अधिकार सबसे करीबी और प्यार करने वाले का होता है।
बेटी ने पूरे किए सभी रीति-रिवाज
शव को उनके घर गांधीनगर की नई बस्ती लाया गया, जहां से देर शाम उनकी अंतिम यात्रा गांधीनगर स्थित मुक्तिधाम के लिए रवाना हुई। यहां पहुंचकर उनकी बड़ी बेटी नैनी, जो आमतौर पर भोपाल में एक कंपनी में कार्यरत है, अंतिम संस्कार के लिए आगे आई। नैनी ने पिता के अंतिम संस्कार से पहले की सभी धार्मिक क्रियाएं पूरी कीं और फिर हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हुए चिता को मुखाग्नि दी और पिता की इच्छा को पूरा किया।
बेटी थी पिता की सेवा में तत्पर
बताया जाता है कि पिता के बीमार पड़ने पर नैनी कुछ दिन पहले ही भोपाल से अपने पैतृक घर लौट आई थी। वह पूरी लगन से उनकी देखभाल और इलाज करवा रही थी। संजय पाराशर एक प्राइवेट नौकरी करते थे और परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं।
पिता की थी यह अंतिम इच्छा
दरअसल, 50 वर्षीय संजय पाराशर कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और उनका झांसी में इलाज चल रहा था और इस दौरान उनका निधन हो गया। संजय पाराशर के दो बेटियां हैं और कोई पुत्र नहीं था। उनकी यह अंतिम इच्छा थी कि उन्हें लावारिस हाथों की बजाय उनकी अपनी बेटी के हाथों ही मुखाग्नि मिले। उनका मानना था कि अंतिम विदाई का अधिकार सबसे करीबी और प्यार करने वाले का होता है।
बेटी ने पूरे किए सभी रीति-रिवाज
शव को उनके घर गांधीनगर की नई बस्ती लाया गया, जहां से देर शाम उनकी अंतिम यात्रा गांधीनगर स्थित मुक्तिधाम के लिए रवाना हुई। यहां पहुंचकर उनकी बड़ी बेटी नैनी, जो आमतौर पर भोपाल में एक कंपनी में कार्यरत है, अंतिम संस्कार के लिए आगे आई। नैनी ने पिता के अंतिम संस्कार से पहले की सभी धार्मिक क्रियाएं पूरी कीं और फिर हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हुए चिता को मुखाग्नि दी और पिता की इच्छा को पूरा किया।
बेटी थी पिता की सेवा में तत्पर
बताया जाता है कि पिता के बीमार पड़ने पर नैनी कुछ दिन पहले ही भोपाल से अपने पैतृक घर लौट आई थी। वह पूरी लगन से उनकी देखभाल और इलाज करवा रही थी। संजय पाराशर एक प्राइवेट नौकरी करते थे और परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं।
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