अयोध्या: उत्तर प्रदेश में अयोध्या किसी न किसी रूप में चुनावों से पहले हर बार प्रभावी हो जाती है। इस बार प्रभु श्रीराम के जरिए चुनावी बैतरणी पार करने की कोशिश करती समाजवादी पार्टी दिख रही है। 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवाने का आरोप झेलने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पार्टी के रुख में बदलाव ने हर राजनीतिक जानकार को चौंका दिया है। दरअसल, लोकसभा, राज्यसभा से लेकर सड़क तक वक्फ बिल और कानून के खिलाफ समाजवादी पार्टी खड़ी दिख रही है। ऐसे में फैजाबाद-अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद का प्रभु श्रीराम के रंग में रंगना कुछ अलग संकेत दे रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इस प्रकार का रुख सपा की ओर से नहीं दिखाया गया, लेकिन अब स्थिति बदलती दिख रही है। इसे विधानसभा चुनाव 2027 से पहले राजनीति में बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है।उत्तर प्रदेश के राजनीति में इन दिनों श्रीराम एक बड़ी भूमिका निभाते दिख रहे हैं। दरअसल, महाराणा सांगा विवाद से लेकर औरंगजेब विवाद तक समाजवादी पार्टी बदले रुख के कारण एक बड़े वर्ग के निशाने पर आती दिख रही है। ऐसे में अब समाजवादी पार्टी के सामने डैमेज कंट्रोल के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर अखिलेश यादव पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के साथ-साथ सभी वर्गों को लुभाने की कोशिश में है। दरअसल, विधानसभा उपचुनावों के रिजल्ट ने उन्हें अपनी रणनीति पर एक बार फिर विचार करने का अवसर दे दिया है। यूपी में चुनौती है अलगलोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने पीडीए राजनीति के साथ-साथ संविधान में बदलाव जैसे मुद्दों को खूब गंभीरता से उछाला। इससे उन्हें पिछड़ा और दलित समाज के वोट पाने में कामयाबी मिली। हालांकि, विधानसभा चुनाव में ये मुद्दे अधिक प्रभावी नहीं होने वाले हैं। प्रदेश में अखिलेश यादव के सामने चुनौती योगी आदित्यनाथ से मिलनी है। योगी अपने दमदार कानून व्यवस्था के साथ बुलडोजर बाबा वाली छवि को बरकरार रखने में कामयाब हुए हैं। साथ ही, भ्रष्टाचार के मामलों को सामने लाने में विपक्ष 10 साल बाद भी कामयाब नहीं हो सका है।यूपी में बेरोजगारी के मुद्दे पर सीएम योगी पिछली सरकार के आंकड़ों को गिना देते हैं। साथ ही, अपनी सरकार में सभी वर्गों को नौकरी का समान लाभ मिलने की बात को साफ करते हैं। हालांकि, बेरोजगारी का मुद्दा है। इसे आखिरी हथियार के तौर पर युवा वोटरों को लुभाने के लिए विपक्ष रखेगी। लेकिन, एक मुद्दा ऐसा है, जिसमें विपक्ष को काफी मेहनत करनी है। वह है सीएम योगी के वोटों को एक पाले में लाने की काबिलियत का मुकाबला। उपचुनावों में दिखा असरलोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा कुछ अधिक बेफिक्र हो गई थी। नारा 400 पार का था। ऐसे में यूपी से सीटें मिलना तय मानकर पार्टी चल रही थी। इसलिए, उन मुद्दों को हवा ही नहीं दी गई, जो यूपी की राजनीति में वोटरों को एक पाले में लाने में कामयाब होती थी। तमाम सांसद अपने काम की जगह पीएम मोदी के चेहरे के सहारे मैदान में थे। इस कारण पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। लेकिन, लोकसभा चुनाव में हार के बाद सीएम योगी ने स्ट्रैटेजी बदली। वोटरों को एक पाले में लाने के लिए 'बंटोगे तो कटोगे' वाला नारा देकर वोटरों को एक पाले में लाने की कोशिश की। इसमें उन्हें सफलता मिल गई।यूपी में भाजपा अपनी बदली रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी तय है। सीएम योगी की कोशिश हिंदू वोटरों को एक पाले में लाने की है। उपचुनावों में उन्हें सफलता भी मिली। ऐसी स्थिति में अखिलेश यादव के सामने विकल्प अपनी राजनीतिक विचारधारा में बदलाव का है। प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव रामनवमी के मौके पर जिस प्रकार से सपा अध्यक्ष के सबसे करीबी सांसद अवधेश प्रसाद के रुख में बदलाव पर चर्चा शुरू हो गई है। बदला दिख रहा है रुखरामनवमी के मौके पर अयोध्या से समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद बदले-बदले नजर आए। उन्होंने न केवल रामलला के दर्शन किए, बल्कि प्रभु श्रीराम के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि राम हमारे रोम-रोम में हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म अयोध्या जैसे पवित्र नगरी में हुआ। हालांकि, सवाल यह है कि जिस राम मंदिर में दर्शन के लिए देशभर से लाखों लोग रोज आते हैं, वहां के सांसद को एक साल तक मंदिर जाने का समय क्यों नहीं मिल पाया? क्या यह केवल संयोग है या फिर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों का संकेत इस मंदिर यात्रा से दिखता है?दरअसल, पिछले कुछ समय में समाजवादी पार्टी कई विवादों में घिरी रही है। इसमें वक्फ बोर्ड संशोधन बिल, औरंगजेब पर विवादित बयान और राणा सांगा को लेकर टिप्पणी ने एक बड़े वर्ग को नाराज किया है। खासकर राजपूत समुदाय समाजवादी पार्टी से खासा नाराज है। राणा सांगा विवाद के बाद तो सपा सांसद रामजीलाल सुमन के घर का घेराव तक हो गया।करणी सेना जैसे संगठन लगातार सपा के खिलाफ मोर्चा खोले हैं। इन परिस्थितियों में राम मंदिर में अवधेश प्रसाद का सपरिवार दर्शन करना और फिर यह कहना कि प्रभु श्रीराम से देशवासियों की खुशहाली की प्रार्थना की है। साफ तौर पर राजनीतिक डैमेज कंट्रोल की रणनीति की ओर इशारा करता है। वहीं, राज्यसभा की कार्यवाही से सांसद के शब्दों को हटाए जाने के मुद्दे को उठाकर अखिलेश संगठन पर ही सवाल उठा रहे हैं। अखिलेश पर भी चर्चा तेजयूपी में जिस प्रकार से वोटों का ध्रुवीकरण बढ़ता दिख रहा है। इस बीच सांसद अवधेश प्रसाद का दावा कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव भी जल्द ही रामलला के दर्शन करने अयोध्या आएंगे। अगर यह दावा हकीकत में बदलता है तो यह सपा की छवि में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक होगा। पार्टी अब तक राम मंदिर मुद्दे से दूरी बनाकर चलती रही थी। सपा के लिए बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस का उभार भी चिंता का कारण बन गया है। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के एकला चलो अभियान और वक्फ बिल पर उसके सतर्क रवैये से सपा और आरजेडी जैसे सहयोगी दलों को खतरे का अहसास हुआ है। कांग्रेस ने औरंगजेब और राणा सांगा विवाद से खुद को दूर रखा है। वहीं सपा नेता इन विवादों में घिरते चले गए। अवधेश प्रसाद के बयान इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण भी अब हिंदुत्व की चपेट में है। खासतौर पर युवा वर्ग में हिंदू पहचान को लेकर रुझान बढ़ता जा रहा है। यह वर्ग आम तौर पर बीजेपी विरोधी रहता है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होते ही इनका झुकाव बीजेपी की ओर हो जाता है। बदल सकती है रणनीतिरामनवमी पर अयोध्या में सपा सांसद का राम मंदिर जाना को लेकर राजनीतिक जानकारी का कहना है कि यह धार्मिक आस्था का प्रदर्शन भर नहीं है। यह राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर पार्टी की सजगता को दिखाता है। अखिलेश यादव अगर रामलला के दर्शन करते नजर आएं तो इसे समाजवादी पार्टी की बदलती रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। दरअसल, महाकुंभ के दौरान अखिलेश त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते दिखे थे। अब प्रभु श्रीराम को लेकर पार्टी का रुख बदलता दिख रहा है। यह पार्टी के सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ झुकाव के संकेत देता है।
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