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चीन ने साउथ चाइना सी में खोजा 'काले सोने' का खजाना, Indo-Pacific पावर गेम का नया चैप्टर खुला, भारत को अब देर नहीं करनी चाहिए?

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बीजिंग: दक्षिण चीन सागर पर चीन दशकों से अपना दावा करता आया है। लेकिन अब चीन ने इस अथाह समंदर में 'काले सोने' का अथाह भंडार खोज निकाला है। दक्षिण चीन सागर में चीन की सरकारी स्वामित्व वाली ऊर्जा दिग्गज कंपनी CNOOC (चाइना नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्पोरेशन) ने 100 मिलियन मीट्रिक टन से ज्यादा भंडार वाले एक प्रमुख अपतटीय तेल क्षेत्र की खोज की घोषणा की है। ये चीन की अर्थव्यवस्था के लिए शानदार खबर है। क्योंकि भारत की तरह चीन भी अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा तेल खरीदने के लिए मजबूर रहा है। चीन की यह खोज ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा मामला लग सकता है, लेकिन असल में यह उसकी रणनीतिक समुद्री विस्तार नीति का हिस्सा है। चीन इस खोज के जरिए एक तरफ अपने ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम करना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ अपने प्रभुत्व को समुद्री सीमा में और मजबूत कर रहा है। यह खोज उन क्षेत्रों में हुई है जहां वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ताइवान जैसे देशों के साथ चीन का विवाद चल रहा है। पर्ल रिवर माउथ बेसिन में तेल और गैसदक्षिण चीन सागर के कैपिंग साउथ नामक क्षेत्र मौजूद नया तेल क्षेत्र, दक्षिण चीन सागर के पूर्वी भाग में स्थित पर्ल रिवर माउथ बेसिन में स्थित है। इस क्षेत्र को लंबे समय से चीन के सबसे आशाजनक अपतटीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है, और CNOOC के नवीनतम डेटा से पता चलता है कि इसके संसाधन क्षमता की बड़े पैमाने पर पुष्टि की जा रही है। कंपनी के अनुसार, कैपिंग साउथ क्षेत्र में लगभग 102 मिलियन टन कच्चा तेल है, इसके अलावा 380 बिलियन क्यूबिक फीट (10.9 बिलियन क्यूबिक मीटर) से ज्यादा प्राकृतिक गैस है। कैपिंग साउथ 1-1 कुएं में खोजपूर्ण ड्रिलिंग के माध्यम से भंडार की पुष्टि की गई, जो 3,462 मीटर की गहराई तक पहुंच गया और तेल और गैस युक्त परतों की 35.2 मीटर की ऊर्ध्वाधर मोटाई में प्रवेश किया। कुआं गुआंगडोंग प्रांत के तट से लगभग 300 किलोमीटर दूर है।चीन की यह ‘तेल खोज’ सिर्फ आर्थिक लाभ की नहीं, बल्कि शक्ति प्रदर्शन की भी कहानी है। इस क्षेत्र में बढ़ती सैन्य मौजूदगी और अब तेल संसाधनों पर दावा, ASEAN देशों को अधिक असहज बना रहा है। भारत के लिए यह स्थिति गंभीर है, क्योंकि भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और इंडो-पैसिफिक रणनीति सीधे तौर पर साउथ चाइना सी से जुड़ी है। वहीं, अमेरिका को भी अब इंडो-पैसिफिक में चीन की ‘ऑइल डिप्लोमेसी’ का जवाब देना होगा। चीन इस भंडार को न केवल खुद के लिए उपयोग करेगा, बल्कि भविष्य में इसका उपयोग क्षेत्रीय नियंत्रण के लिए भी करेगा। अगर ये क्षेत्र पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में चला गया, तो वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में समुद्री व्यापार, ऊर्जा सप्लाई और रणनीतिक आवाजाही को नियंत्रित कर सकता है। यह स्थिति पश्चिमी देशों और भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी।लिहाजा भारत को साउथ चाइना सी में अपने रणनीतिक और कूटनीतिक निवेश को और मजबूत करना होगा। वियतनाम, फिलीपींस और अन्य ASEAN देशों के साथ एनर्जी और डिफेंस सहयोग को आगे बढ़ाना चाहिए। साथ ही ONGC Videsh जैसी कंपनियों को वहां तेल और गैस के खोज के प्रोजेक्ट्स में सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। भारत को क्वाड (QUAD) जैसे समूहों के जरिए चीन की इस ‘ऑइल स्ट्रैटेजी’ का जवाब देना होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह तेल भंडार चीन के लिए जितना आर्थिक वरदान है, उतना ही वह उसके भू-राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा भी है। अब यह सिर्फ तेल की खोज नहीं, बल्कि एक नई तरह के समुद्री वर्चस्व की लड़ाई है। भारत और बाकी लोकतांत्रिक देशों के लिए यह वक्त है रणनीतिक एकता दिखाने का, वरना यह तेल भंडार पूरे क्षेत्र के लिए बारूद का ढेर बन सकता है।
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