इस साल विजयादशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे। तब से लेकर अगले साल की विजयादशमी तक संघ अपना शताब्दी वर्ष मनाएगा। इस दौरान एक लाख से ज्यादा जगहों पर हिंदू सम्मेलन होने हैं - संघ के स्वयंसेवक घर-घर जाकर अभियान चलाएंगे।
भागवत का संवाद: RSS प्रमुख मोहन भागवत भी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और बेंगलुरु में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों के साथ संवाद कार्यक्रम करेंगे। पहली बार संघ इस स्तर पर संवाद कर रहा है। संघ प्रमुख ने इससे पहले सितंबर 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन की लेक्चर सीरीज के आखिरी दिन अलग-अलग विषयों पर RSS की सोच से जुड़े सवालों के जवाब दिए थे। तब सिर्फ दिल्ली में ऐसा हुआ था और इस बार चार शहरों में हो रहा है। तो क्या संघ अब पहले से ज्यादा खुल रहा है?
जुड़ाव का तरीका: इसका जवाब RSS के लोग इस तरह देते हैं कि संघ का जनसंवाद का आयाम नया नहीं है। हां, इसकी आवृत्ति जरूर बढ़ी है। अब इसका दायरा बढ़ाया गया है और ज्यादा जगहों पर ज्यादा बड़े कार्यक्रम होने लगे हैं। यह विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे स्वयंसेवकों के फीडबैक के आधार पर तय किया जाता है। मोहन भागवत की लेक्चर सीरीज से पहले इस तरह का कार्यक्रम 1974 में हुआ था। तब उस वक्त के सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने पुणे की वसंत व्याख्यानमाला में संघ के संदेश और विचारों को रखा था। उसमें उन्होंने अस्पृश्यता यानी छुआछूत को पाप बताया था।
सफल प्रयोग: संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की किताबों में भी उनके समाज के साथ बातचीत का जिक्र है। संघ के लोग कहते हैं कि RSS का काम ही समाज के बीच जाना और संवाद करना है। पहले माना जाता था कि सरसंघचालक तक पहुंच नहीं है और उनसे सीधा संवाद नहीं हो सकता। इसके बाद RSS के संपर्क विभाग ने 2018 में एक प्रयोग के तौर पर सरसंघचालक का दिल्ली में संवाद कराया। संघ के मुताबिक, यह काफी सफल रहा और कई भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिली। इसी वजह से अब शताब्दी वर्ष में ऐसे चार कार्यक्रमों की योजना है।
मुस्लिम संवाद: संघ अब ऐसे मुद्दों पर भी आगे बढ़ा है, जिसके बारे में स्वयंसेवक पहले बात नहीं करते थे, जैसे मुस्लिम संवाद। 2012 में संघ के वरिष्ठों की एक बैठक में सबसे पहले इस पर चर्चा हुई कि मुस्लिम समुदाय से संवाद होना चाहिए। हालांकि पहले भी सर्वपंथ समभाव के नाम से अलग-अलग पहलुओं पर कुछ संवाद कार्यक्रम हुए थे। लेकिन, उस बैठक के बाद मुस्लिम संवाद कार्यक्रम ने आकार लिया। समय-समय पर इसका नाम जरूर बदला।
दूरगामी लक्ष्य: पिछले कुछ बरसों से संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से लगातार मुलाकात कर रहे हैं। वह इमामों से मिलने मस्जिद भी गए और मदरसे जाकर बच्चों से भी मुलाकात की। संघ के वरिष्ठ प्रचारकों ने अनौपचारिक बातचीत में साफ किया कि संघ की तरफ से मुस्लिमों से संवाद दूरगामी लक्ष्य के लिए है। संघ चाहता है कि समाज में सभी लोग शांति और सहयोग के साथ रहें। हिंदू-मुस्लिम विवाद ना हो, यह कोशिश संघ लगातार कर रहा है। RSS हिंदू समाज में यह मानसिकता तैयार करना चाह रहा है कि भारत में रहने वाले सभी अपने ही हैं, भले किसी भी धर्म के हों।
समय के साथ बदलाव: संघ में काफी कुछ बदला है। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने खुद 2018 में अपने संवाद में कहा था कि वक्त के साथ सोच भी बदलती है। उन्होंने संघ के पूर्व सरसंघचालक की किताब में लिखी बातों के बारे में कहा था कि कुछ बातें परिस्थिति के हिसाब से होती हैं, वे शाश्वत नहीं होतीं। संघ बंद संगठन नहीं है कि संस्थापक हेडगेवार ने जो बोल दिया वही लेकर चलता रहे। वक्त के साथ सोच बदलती है। बदलाव की अनुमति हेडगेवार से ही मिली है।
भागवत का संवाद: RSS प्रमुख मोहन भागवत भी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और बेंगलुरु में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों के साथ संवाद कार्यक्रम करेंगे। पहली बार संघ इस स्तर पर संवाद कर रहा है। संघ प्रमुख ने इससे पहले सितंबर 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन की लेक्चर सीरीज के आखिरी दिन अलग-अलग विषयों पर RSS की सोच से जुड़े सवालों के जवाब दिए थे। तब सिर्फ दिल्ली में ऐसा हुआ था और इस बार चार शहरों में हो रहा है। तो क्या संघ अब पहले से ज्यादा खुल रहा है?
जुड़ाव का तरीका: इसका जवाब RSS के लोग इस तरह देते हैं कि संघ का जनसंवाद का आयाम नया नहीं है। हां, इसकी आवृत्ति जरूर बढ़ी है। अब इसका दायरा बढ़ाया गया है और ज्यादा जगहों पर ज्यादा बड़े कार्यक्रम होने लगे हैं। यह विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे स्वयंसेवकों के फीडबैक के आधार पर तय किया जाता है। मोहन भागवत की लेक्चर सीरीज से पहले इस तरह का कार्यक्रम 1974 में हुआ था। तब उस वक्त के सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने पुणे की वसंत व्याख्यानमाला में संघ के संदेश और विचारों को रखा था। उसमें उन्होंने अस्पृश्यता यानी छुआछूत को पाप बताया था।
सफल प्रयोग: संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की किताबों में भी उनके समाज के साथ बातचीत का जिक्र है। संघ के लोग कहते हैं कि RSS का काम ही समाज के बीच जाना और संवाद करना है। पहले माना जाता था कि सरसंघचालक तक पहुंच नहीं है और उनसे सीधा संवाद नहीं हो सकता। इसके बाद RSS के संपर्क विभाग ने 2018 में एक प्रयोग के तौर पर सरसंघचालक का दिल्ली में संवाद कराया। संघ के मुताबिक, यह काफी सफल रहा और कई भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिली। इसी वजह से अब शताब्दी वर्ष में ऐसे चार कार्यक्रमों की योजना है।
मुस्लिम संवाद: संघ अब ऐसे मुद्दों पर भी आगे बढ़ा है, जिसके बारे में स्वयंसेवक पहले बात नहीं करते थे, जैसे मुस्लिम संवाद। 2012 में संघ के वरिष्ठों की एक बैठक में सबसे पहले इस पर चर्चा हुई कि मुस्लिम समुदाय से संवाद होना चाहिए। हालांकि पहले भी सर्वपंथ समभाव के नाम से अलग-अलग पहलुओं पर कुछ संवाद कार्यक्रम हुए थे। लेकिन, उस बैठक के बाद मुस्लिम संवाद कार्यक्रम ने आकार लिया। समय-समय पर इसका नाम जरूर बदला।
दूरगामी लक्ष्य: पिछले कुछ बरसों से संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से लगातार मुलाकात कर रहे हैं। वह इमामों से मिलने मस्जिद भी गए और मदरसे जाकर बच्चों से भी मुलाकात की। संघ के वरिष्ठ प्रचारकों ने अनौपचारिक बातचीत में साफ किया कि संघ की तरफ से मुस्लिमों से संवाद दूरगामी लक्ष्य के लिए है। संघ चाहता है कि समाज में सभी लोग शांति और सहयोग के साथ रहें। हिंदू-मुस्लिम विवाद ना हो, यह कोशिश संघ लगातार कर रहा है। RSS हिंदू समाज में यह मानसिकता तैयार करना चाह रहा है कि भारत में रहने वाले सभी अपने ही हैं, भले किसी भी धर्म के हों।
समय के साथ बदलाव: संघ में काफी कुछ बदला है। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने खुद 2018 में अपने संवाद में कहा था कि वक्त के साथ सोच भी बदलती है। उन्होंने संघ के पूर्व सरसंघचालक की किताब में लिखी बातों के बारे में कहा था कि कुछ बातें परिस्थिति के हिसाब से होती हैं, वे शाश्वत नहीं होतीं। संघ बंद संगठन नहीं है कि संस्थापक हेडगेवार ने जो बोल दिया वही लेकर चलता रहे। वक्त के साथ सोच बदलती है। बदलाव की अनुमति हेडगेवार से ही मिली है।
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