पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में विधानसभा चुनावों के लिए अपना प्रचार अभियान शुक्रवार को शुरू कर रहे हैं। उन्होंने समस्तीपुर और बेगूसराय में अपनी पहली रैलियों से पहले दिवंगत नेता और भारत रत्न से सम्मानित कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देने के लिए कर्पूरी ग्राम का दौरा करने का फैसला किया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का यह कदम अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को लुभाने की कोशिश माना जा रहा है। बिहार की आबादी में ईबीसी समुदाय 36 प्रतिशत है और यही वर्ग अक्सर चुनावों के नतीजे तय करता है। कर्पूरी ठाकुर के बेटे और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा कि पीएम मोदी का यह दौरा अचानक तय हुआ। यह चुनाव में नया उत्साह भरेगा।
पीएम नरेंद्र मोदी बिहार में विधानसभा चुनावों के लिए शुक्रवार को समस्तीपुर और बेगूसराय में अपनी पहली चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। वे इससे पहले भारत रत्न से सम्मानित जननायक कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देने के लिए कर्पूरी ग्राम जाएंगे। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी कर्पूरी ग्राम से अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू करेंगे। यहां वे महान जननायक को नमन करेंगे और फिर समस्तीपुर में अपनी पहली चुनावी सभा को संबोधित करेंगे।
अत्यंत पिछड़े वर्ग को आकर्षित करने की रणनीति पीएम मोदी का कर्पूरी ग्राम से चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करना एनडीए की अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को अपने पाले में लाने की एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होंगे। कर्पूरी ठाकुर के बेटे और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा अचानक तय हुआ, लेकिन इससे चुनावों में गति और उत्साह आएगा। उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, उनके दौरे से चुनावों में जीत के लिए मजबूत समर्थन मिलेगा।
जननायक कर्पूरी ठाकुर को पिछले साल मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया था। यह सम्मान उन्हें उनकी मृत्यु के 35 साल बाद और साल 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दिया गया था। कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ था।
लोकप्रिय नेता थे जननायक कर्पूरी ठाकुर'जननायक' के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर एक मामूली किसान के बेटे थे और वे नाई समुदाय से आते थे। वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक भारतीय क्रांति दल के नेता के तौर पर और दूसरी बार दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक जनता पार्टी के नेता के रूप में मुख्यमंत्री रहे थे।
कर्पूरी ठाकुर ने सन 1978 में अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी), जिसमें मुसलमानों के कमजोर तबके भी शामिल थे, के लिए एक अलग कोटे की व्यवस्था की थी। इससे उन्हें सरकारी सेवाओं में आरक्षण मिला। कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक परीक्षाओं से अंग्रेजी को एक अनिवार्य विषय के रूप में हटा दिया था। उन्हें शराबबंदी लागू करने जैसे कामों के लिए भी पहचाना जाता है। वे न केवल आम लोगों के बीच लोकप्रिय थे, बल्कि विपक्षी दल भी उनका सम्मान करते थे।
पीएम मोदी का कर्पूरी ग्राम का दौरा क्यों है महत्वपूर्ण?साल 2022 में हुई जातिगत जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी में ईबीसी की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत है। यह वर्ग शिक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक अवसरों में पिछड़े हुए हैं। इन्हें बुनियादी सामाजिक सुविधाएं भी सहज उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। ईबीसी अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) की तरह कोई अलग संवैधानिक श्रेणी नहीं हैं। वे आम तौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर एक उप वर्ग हैं। इन्हें ओबीसी में सबसे वंचित जातियों के रूप में पहचाना जाता है।
बीजेपी बिहार में इस चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। ऐतिहासिक रूप से ईबीसी अक्सर करीबी मुकाबले वाले चुनावों में विजेता तय करते हैं, इसलिए हर पार्टी उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है। साल 2005 में पहली बार सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव का मुकाबला करने के लिए खुद को ईबीसी के नेता के रूप में स्थापित करने के लिए 'कर्पूरी फॉर्मूले' का इस्तेमाल किया था। उन्होंने पिछड़े वर्गों को दो श्रेणियों में बांटा था।
कर्पूरी ठाकुर की विरासत का उत्तराधिकारी बनने की चाहत कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले के तहत 26 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इसमें से ओबीसी को 12 प्रतिशत, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8 प्रतिशत, महिलाओं को 3 प्रतिशत और उच्च जातियों के गरीबों को 3 प्रतिशत आरक्षण मिला। बाद में इसने नीतीश कुमार के अति पिछड़ा एजेंडे को प्रभावित किया, जिसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों के भीतर सबसे अधिक दुरावस्था को झेल रहे लोगों की विशिष्ट जरूरतों और चुनौतियों का समाधान करना था।
प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रतीकात्मक दौरे के जरिए एनडीए मतदाताओं, विशेष रूप से अत्यंत पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के साथ जुड़ने की उम्मीद कर रहा है। इससे एनडीए खुद को कर्पूरी ठाकुर की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर सकेगा।
पीएम नरेंद्र मोदी बिहार में विधानसभा चुनावों के लिए शुक्रवार को समस्तीपुर और बेगूसराय में अपनी पहली चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। वे इससे पहले भारत रत्न से सम्मानित जननायक कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देने के लिए कर्पूरी ग्राम जाएंगे। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी कर्पूरी ग्राम से अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू करेंगे। यहां वे महान जननायक को नमन करेंगे और फिर समस्तीपुर में अपनी पहली चुनावी सभा को संबोधित करेंगे।
अत्यंत पिछड़े वर्ग को आकर्षित करने की रणनीति पीएम मोदी का कर्पूरी ग्राम से चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करना एनडीए की अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को अपने पाले में लाने की एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होंगे। कर्पूरी ठाकुर के बेटे और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा अचानक तय हुआ, लेकिन इससे चुनावों में गति और उत्साह आएगा। उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, उनके दौरे से चुनावों में जीत के लिए मजबूत समर्थन मिलेगा।
जननायक कर्पूरी ठाकुर को पिछले साल मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया था। यह सम्मान उन्हें उनकी मृत्यु के 35 साल बाद और साल 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दिया गया था। कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ था।
लोकप्रिय नेता थे जननायक कर्पूरी ठाकुर'जननायक' के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर एक मामूली किसान के बेटे थे और वे नाई समुदाय से आते थे। वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक भारतीय क्रांति दल के नेता के तौर पर और दूसरी बार दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक जनता पार्टी के नेता के रूप में मुख्यमंत्री रहे थे।
कर्पूरी ठाकुर ने सन 1978 में अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी), जिसमें मुसलमानों के कमजोर तबके भी शामिल थे, के लिए एक अलग कोटे की व्यवस्था की थी। इससे उन्हें सरकारी सेवाओं में आरक्षण मिला। कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक परीक्षाओं से अंग्रेजी को एक अनिवार्य विषय के रूप में हटा दिया था। उन्हें शराबबंदी लागू करने जैसे कामों के लिए भी पहचाना जाता है। वे न केवल आम लोगों के बीच लोकप्रिय थे, बल्कि विपक्षी दल भी उनका सम्मान करते थे।
पीएम मोदी का कर्पूरी ग्राम का दौरा क्यों है महत्वपूर्ण?साल 2022 में हुई जातिगत जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी में ईबीसी की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत है। यह वर्ग शिक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक अवसरों में पिछड़े हुए हैं। इन्हें बुनियादी सामाजिक सुविधाएं भी सहज उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। ईबीसी अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) की तरह कोई अलग संवैधानिक श्रेणी नहीं हैं। वे आम तौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर एक उप वर्ग हैं। इन्हें ओबीसी में सबसे वंचित जातियों के रूप में पहचाना जाता है।
बीजेपी बिहार में इस चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। ऐतिहासिक रूप से ईबीसी अक्सर करीबी मुकाबले वाले चुनावों में विजेता तय करते हैं, इसलिए हर पार्टी उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है। साल 2005 में पहली बार सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव का मुकाबला करने के लिए खुद को ईबीसी के नेता के रूप में स्थापित करने के लिए 'कर्पूरी फॉर्मूले' का इस्तेमाल किया था। उन्होंने पिछड़े वर्गों को दो श्रेणियों में बांटा था।
कर्पूरी ठाकुर की विरासत का उत्तराधिकारी बनने की चाहत कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले के तहत 26 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इसमें से ओबीसी को 12 प्रतिशत, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8 प्रतिशत, महिलाओं को 3 प्रतिशत और उच्च जातियों के गरीबों को 3 प्रतिशत आरक्षण मिला। बाद में इसने नीतीश कुमार के अति पिछड़ा एजेंडे को प्रभावित किया, जिसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों के भीतर सबसे अधिक दुरावस्था को झेल रहे लोगों की विशिष्ट जरूरतों और चुनौतियों का समाधान करना था।
प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रतीकात्मक दौरे के जरिए एनडीए मतदाताओं, विशेष रूप से अत्यंत पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के साथ जुड़ने की उम्मीद कर रहा है। इससे एनडीए खुद को कर्पूरी ठाकुर की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर सकेगा।
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