नई दिल्ली: भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की राह का राज खुल गया है। ब्रोकरेज फर्म एलेरा सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट इस बारे में बताती है। इसके अनुसार, दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की भारत की चाहत एक खास बात पर निर्भर है। वह यह है कि भारत घरेलू बचत को कितने प्रभावी तरीके से प्रोडक्टिव एसेट्स में लगाता है।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत में घरेलू बचत का ढांचा बड़े बदलावों से गुजर रहा है। यह बदलाव अनुकूल जनसांख्यिकी, सरकारी सुधारों, आर्थिक नीतियों और एक मजबूत डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण संभव हो रहा है। इन सब वजहों से आने वाले सालों में भारतीय परिवारों के बचत और निवेश करने के तरीके में एक निश्चित बदलाव आने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने का लक्ष्य घरेलू बचत को उत्पादक संपत्तियों में लगाने पर निर्भर करता है।
कई बदलावों से गुजर रही घरेलू बचत
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बचत के रिटर्न, जोखिम और लिक्विडिटी प्रोफाइल में काफी बदलाव आ रहा है। इसके बावजूद अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वित्तीय बचत का स्तर अभी भी कम है। ब्रोकरेज फर्म का अनुमान है कि भारत की कुल वित्तीय बचत तीन गुना से ज्यादा बढ़कर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 11-12% हो जाएगी।
एलेरा सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में घरेलू बचत दर ग्रॉस डिस्पोजेबल इनकम के प्रतिशत के रूप में कई अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। यह ऊंची बचत दर निवेश के लिए पूंजी का महत्वपूर्ण घरेलू स्रोत है। आर्थिक विकास को बनाए रखने में यह अहम भूमिका निभाती है। सालों से बचत की संरचना पारंपरिक रूपों जैसे बैंक डिपॉजिट और करेंसी से हटकर कैपिटल मार्केट्स, बचत योजनाओं और पेंशन योजनाओं की ओर बढ़ रही है।
सेविंंग पैटर्न को आकार दे रहे हैं ये फैक्टर
इस बदलाव का श्रेय बदलते उपभोक्ता व्यवहार और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार को दिया गया है। इसने फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट को अधिक सुलभ और सुविधाजनक बना दिया है। रिपोर्ट में भारत के बचत पैटर्न को आकार देने वाले कई प्रमुख रुझानों पर प्रकाश डाला गया है। वित्तीय वर्ष 71-80 के दौरान कुल बचत में जमाओं का हिस्सा 50% से ज्यादा था, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 तक घटकर 40% से नीचे आ गया है। यह बैंकों के लिए एक चुनौती पेश कर रहा है। वहीं, पिछले चार दशकों से करेंसी की हिस्सेदारी लगभग 10% के आसपास बनी हुई है। रिपोर्ट का कहना है कि यह डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी के बावजूद नकदी को मूल्य के भंडार के रूप में रखने की व्यवहारिक प्राथमिकता को दर्शाता है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऊंचा रिटर्न और लंबी अवधि की संपत्ति बनाने की चाहत के कारण बचत को तेजी से पूंजी बाजारों और पेंशन योजनाओं की ओर निर्देशित किया जा रहा है। ये साधन पारंपरिक बैंक जमाओं की तुलना में बेहतर रिटर्न देते हैं। साथ ही, ये टैक्स बेनिफट और सॉवरेन सिक्योरिटी भी प्रदान करते हैं।
इसलिए रिपोर्ट में यह बताया गया है कि घरेलू बचत के बदलते पैटर्न भारत की आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इन बचतों को उत्पादक संपत्तियों में लगाने पर अधिक फोकस करने से यह तय होगा कि देश अपने विकास और विकास लक्ष्यों को कितनी प्रभावी ढंग से प्राप्त करता है। यह बदलाव भारत को एक बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करेगा।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत में घरेलू बचत का ढांचा बड़े बदलावों से गुजर रहा है। यह बदलाव अनुकूल जनसांख्यिकी, सरकारी सुधारों, आर्थिक नीतियों और एक मजबूत डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण संभव हो रहा है। इन सब वजहों से आने वाले सालों में भारतीय परिवारों के बचत और निवेश करने के तरीके में एक निश्चित बदलाव आने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने का लक्ष्य घरेलू बचत को उत्पादक संपत्तियों में लगाने पर निर्भर करता है।
कई बदलावों से गुजर रही घरेलू बचत
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बचत के रिटर्न, जोखिम और लिक्विडिटी प्रोफाइल में काफी बदलाव आ रहा है। इसके बावजूद अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वित्तीय बचत का स्तर अभी भी कम है। ब्रोकरेज फर्म का अनुमान है कि भारत की कुल वित्तीय बचत तीन गुना से ज्यादा बढ़कर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 11-12% हो जाएगी।
एलेरा सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में घरेलू बचत दर ग्रॉस डिस्पोजेबल इनकम के प्रतिशत के रूप में कई अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। यह ऊंची बचत दर निवेश के लिए पूंजी का महत्वपूर्ण घरेलू स्रोत है। आर्थिक विकास को बनाए रखने में यह अहम भूमिका निभाती है। सालों से बचत की संरचना पारंपरिक रूपों जैसे बैंक डिपॉजिट और करेंसी से हटकर कैपिटल मार्केट्स, बचत योजनाओं और पेंशन योजनाओं की ओर बढ़ रही है।
सेविंंग पैटर्न को आकार दे रहे हैं ये फैक्टर
इस बदलाव का श्रेय बदलते उपभोक्ता व्यवहार और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार को दिया गया है। इसने फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट को अधिक सुलभ और सुविधाजनक बना दिया है। रिपोर्ट में भारत के बचत पैटर्न को आकार देने वाले कई प्रमुख रुझानों पर प्रकाश डाला गया है। वित्तीय वर्ष 71-80 के दौरान कुल बचत में जमाओं का हिस्सा 50% से ज्यादा था, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 तक घटकर 40% से नीचे आ गया है। यह बैंकों के लिए एक चुनौती पेश कर रहा है। वहीं, पिछले चार दशकों से करेंसी की हिस्सेदारी लगभग 10% के आसपास बनी हुई है। रिपोर्ट का कहना है कि यह डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी के बावजूद नकदी को मूल्य के भंडार के रूप में रखने की व्यवहारिक प्राथमिकता को दर्शाता है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऊंचा रिटर्न और लंबी अवधि की संपत्ति बनाने की चाहत के कारण बचत को तेजी से पूंजी बाजारों और पेंशन योजनाओं की ओर निर्देशित किया जा रहा है। ये साधन पारंपरिक बैंक जमाओं की तुलना में बेहतर रिटर्न देते हैं। साथ ही, ये टैक्स बेनिफट और सॉवरेन सिक्योरिटी भी प्रदान करते हैं।
इसलिए रिपोर्ट में यह बताया गया है कि घरेलू बचत के बदलते पैटर्न भारत की आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इन बचतों को उत्पादक संपत्तियों में लगाने पर अधिक फोकस करने से यह तय होगा कि देश अपने विकास और विकास लक्ष्यों को कितनी प्रभावी ढंग से प्राप्त करता है। यह बदलाव भारत को एक बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करेगा।
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