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सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को कानून से संरक्षण नहीं... दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया

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नई दिल्ली: महरौली में एक विवादित जमीन पर ंंंंके संचालन का दावा करने वाले एक व्यक्ति को तोड़फोड़ की कार्रवाई से राहत देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकारी जमीन पर अनधिकृत रूप से कब्जा करने वालों को कानून से संरक्षण मांगने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कुणाल कुमार नाम के व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट से की थी तोड़फोड़ न करने की मांग दिल्ली सरकार, डीडीए और एमसीडी को यह निर्देश देने का कोर्ट से अनुरोध किया गया कि वे महरौली, सतबरी में गौशाला रोड पर मौजूद जमीन के एक टुकड़े पर तोड़फोड़ की कार्रवाई न करे, जहां वह 'साईं जीव आश्रम' के नाम से डॉग और एनिमल शेल्टर चलाता है। अथॉरिटीज पर आरोप लगाया कि वे सड़क को चौड़ा करने के बहाने परिसर में तोड़फोड करना चाहते, जबकि इसके लिए उन्होंने जरूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन तक नहीं किया। सरकारी जमीन पर संरक्षण मांगने का अधिकार नहीं सिंगल जज की बेंच ने याचिका ठुकराते हुए अपने फैसले में कहा कि रिकॉर्ड देखने से जाहिर है कि विवादित जमीन सरकारी है, जो वन भूमि का हिस्सा है। जमीन को अधिगृहित कर डीडीए को सौंप दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी जमीन पर अनधिकृत कब्जा करने वालों को कानून से संरक्षण मांगने का कोई अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने दोहराया कि सरकार को ऐसी जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराते हुए अपने कब्जे में लेने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने साफ किया कि अवैध तरीके से जमीन कब्जाने वालों का उस जमीन पर कोई अधिकार नहीं होता और उनकी स्थिति अतिक्रमणकारी और घुसपैठिए की होती है। हाई कोर्ट को विवादित जमीन से जुड़े खसरा नंबर को लेकर याचिकाकर्ता के दावे में भी कुछ अंतर नजर आया। इस पर भी गौर किया कि डीडीए ने याचिकाकर्ता को विस्तार से सुनने के बाद ही 28 नवंबर, 2023 को अपना आदेश सुनाया था कि विवादित जमीन सरकारी है। याचिकाकर्ता का कहना था कि ट्रस्ट की शुरुआत उसके स्वर्गवासी पिता ने 2003 में की थी। दावा किया कि जमीन के मूल मालिकों के साथ रेंट अग्रीमेंट के आधार पर उसने इसे हासिल किया और पिता की मृत्यु के बाद उनके वारिस के तौर पर ट्रस्ट की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।
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