रेखा गुप्ता, नई दिल्ली: आज का युग असंतुलन का है। गति है, लेकिन स्थिरता नहीं - सुविधा है, मगर संतोष नहीं। तनाव, अकेलापन और जीवनशैली संबंधी बीमारियां आधुनिक समाज को भीतर से खोखला कर रही हैं। ऐसे में योग वह 'संजीवनी' है, जो शरीर को पुष्ट करने के साथ ही मन को शांत और आत्मा को प्रबुद्ध करता है।
सांस्कृतिक शक्ति
आज विश्व योग दिवस है। 2014 में दुनिया ने तब राष्ट्र नीति का आध्यात्मिक आयाम देखा, जब वर्ष 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव का 177 देशों ने समर्थन किया। इतिहास में यह सबसे तेजी से पारित होने वाले प्रस्तावों में से एक था। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक शक्ति की गूंज थी, बल्कि इस बात का प्रमाण भी था कि योग अब किसी एक देश या संस्कृति की संपत्ति नहीं, समस्त मानवता की साझी विरासत है।
सॉफ्ट पावर
पीएम मोदी ने जब संयुक्त राष्ट्र में योग को विश्व मंच पर प्रस्तुत किया, तो वह भारत की सभ्यतागत चेतना का उद्घोष था। अमेरिका से अफ्रीका, यूरोप से जापान तक - आज योग भारत का सबसे बड़ा निर्यात बन चुका है। विश्व योग दिवस अब केवल सरकारों या भारतीय दूतावासों तक सीमित नहीं रहा, विश्वभर में फैले लाखों भारतीय सांस्कृतिक संगठनों, योग संस्थानों, आश्रमों और विचार-परंपराओं से जुड़ी संस्थाओं ने इसे एक जीवंत जन आंदोलन में बदल दिया है। यही भारत की सच्ची 'सॉफ्ट पावर' है।
विश्व गुरु की भूमिका
विश्व योग दिवस भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। यह वो शक्ति है, जो भारत को विश्वगुरु की भूमिका में स्थापित करती है। योग भारत की सांस्कृतिक मुद्रा या कल्चरल करंसी बन चुका है। मोदी सरकार ने योग को उत्सव से आगे बढ़ाकर नीति और व्यवहार का अंग बनाया है। स्कूलों से लेकर सैनिकों तक, कारागारों से लेकर कक्षा-कक्षों तक, हर स्तर पर योग का प्रसार किया गया है। mYoga ऐप, विश्व स्वास्थ्य संगठन की साझेदारी और 'योग लोकेटर' जैसे डिजिटल टूल्स ने योग को सुलभ, सस्ता और सर्वसुलभ बना दिया है। आज पूरी दुनिया कह रही है कि 'योग से ही समाधान है।'
चिंतन का आधार
योग सदियों से भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग रहा है। ऋषियों ने कहा था, 'सत्त्वे स्थिता न सस्यन्ते दुःखेन न विचालयन्।' योग वह स्थिति है जहां मन, बुद्धि और आत्मा समरस हो जाएं। उपनिषदों से लेकर गीता तक, योग भारतीय चिंतन की धुरी रहा है। यह जीवन की कला है - जैसे तुलसीदास की साधना, विवेकानंद की चेतना, गांधी जी का आत्मनियंत्रण या दीनदयाल जी की करुणा।
योग से ताकत । मेरे लिए योग कोई कार्यक्रम नहीं, आंतरिक स्थिरता की पूंजी है। निर्णायक क्षणों में, जब दिमाग थक जाता है और निर्णय कठिन हो जाते हैं, तब योग मुझे धीरज की ढाल और दृष्टि की दीपशिखा देता है। यही अनुभव मैं दिल्ली के हर नागरिक तक पहुंचाना चाहती हूं।
जोड़ने वाला पुल
राष्ट्रीय राजधानी में योग एक नया जन आंदोलन बन रहा है। मेरा स्पष्ट संकल्प है कि योग किसी विशेष वर्ग की परिधि में न बंधे, वह घर के आंगनों से सरकारी दफ्तरों तक - हर जगह पहुंचे। हमारा लक्ष्य ऐसी संस्कृति विकसित करना है, जिसमें योग दिल्ली की दिनचर्या का हिस्सा बन जाए, तभी दिल्ली 'स्वस्थ राजधानी' बन पाएगी। आज जब समाज वैचारिक विघटन और मानसिक असंतुलन के दौर से गुजर रहा है, तब योग वह साझी भूमि है, जहां विचार, धर्म, वर्ग या जाति की कोई दीवार नहीं। दिल्ली जैसे विविधता भरे महानगर में योग लोगों को जोड़ने वाला भावनात्मक सेतु बन सकता है।
आत्मा का अनुशासन
जहां पश्चिमी सभ्यता ने 'I think, therefore I am' को जीवन का आधार माना, वहीं भारत ने हजारों वर्षों पहले कह दिया था - 'योगः कर्मसु कौशलम्'। योग जीवन के हर कर्म में संतुलन और सटीकता का नाम है। आज दुनिया योग सीख रही है और भारत के भीतर छुपे उस शाश्वत विज्ञान को सम्मान दे रही है, जो न तो समय से बंधा है, न सीमा से। यह 'सांस्कृतिक पुनर्जागरण' का समय है और योग उसकी मशाल है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस 'One Earth, One Health' का आह्वान किया है, वह भारत की आध्यात्मिक दृष्टि का वैश्विक अनुवाद है।
(लेखिका दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं)
सांस्कृतिक शक्ति
आज विश्व योग दिवस है। 2014 में दुनिया ने तब राष्ट्र नीति का आध्यात्मिक आयाम देखा, जब वर्ष 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव का 177 देशों ने समर्थन किया। इतिहास में यह सबसे तेजी से पारित होने वाले प्रस्तावों में से एक था। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक शक्ति की गूंज थी, बल्कि इस बात का प्रमाण भी था कि योग अब किसी एक देश या संस्कृति की संपत्ति नहीं, समस्त मानवता की साझी विरासत है।
सॉफ्ट पावर
पीएम मोदी ने जब संयुक्त राष्ट्र में योग को विश्व मंच पर प्रस्तुत किया, तो वह भारत की सभ्यतागत चेतना का उद्घोष था। अमेरिका से अफ्रीका, यूरोप से जापान तक - आज योग भारत का सबसे बड़ा निर्यात बन चुका है। विश्व योग दिवस अब केवल सरकारों या भारतीय दूतावासों तक सीमित नहीं रहा, विश्वभर में फैले लाखों भारतीय सांस्कृतिक संगठनों, योग संस्थानों, आश्रमों और विचार-परंपराओं से जुड़ी संस्थाओं ने इसे एक जीवंत जन आंदोलन में बदल दिया है। यही भारत की सच्ची 'सॉफ्ट पावर' है।
विश्व गुरु की भूमिका
विश्व योग दिवस भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। यह वो शक्ति है, जो भारत को विश्वगुरु की भूमिका में स्थापित करती है। योग भारत की सांस्कृतिक मुद्रा या कल्चरल करंसी बन चुका है। मोदी सरकार ने योग को उत्सव से आगे बढ़ाकर नीति और व्यवहार का अंग बनाया है। स्कूलों से लेकर सैनिकों तक, कारागारों से लेकर कक्षा-कक्षों तक, हर स्तर पर योग का प्रसार किया गया है। mYoga ऐप, विश्व स्वास्थ्य संगठन की साझेदारी और 'योग लोकेटर' जैसे डिजिटल टूल्स ने योग को सुलभ, सस्ता और सर्वसुलभ बना दिया है। आज पूरी दुनिया कह रही है कि 'योग से ही समाधान है।'
चिंतन का आधार
योग सदियों से भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग रहा है। ऋषियों ने कहा था, 'सत्त्वे स्थिता न सस्यन्ते दुःखेन न विचालयन्।' योग वह स्थिति है जहां मन, बुद्धि और आत्मा समरस हो जाएं। उपनिषदों से लेकर गीता तक, योग भारतीय चिंतन की धुरी रहा है। यह जीवन की कला है - जैसे तुलसीदास की साधना, विवेकानंद की चेतना, गांधी जी का आत्मनियंत्रण या दीनदयाल जी की करुणा।
योग से ताकत । मेरे लिए योग कोई कार्यक्रम नहीं, आंतरिक स्थिरता की पूंजी है। निर्णायक क्षणों में, जब दिमाग थक जाता है और निर्णय कठिन हो जाते हैं, तब योग मुझे धीरज की ढाल और दृष्टि की दीपशिखा देता है। यही अनुभव मैं दिल्ली के हर नागरिक तक पहुंचाना चाहती हूं।
जोड़ने वाला पुल
राष्ट्रीय राजधानी में योग एक नया जन आंदोलन बन रहा है। मेरा स्पष्ट संकल्प है कि योग किसी विशेष वर्ग की परिधि में न बंधे, वह घर के आंगनों से सरकारी दफ्तरों तक - हर जगह पहुंचे। हमारा लक्ष्य ऐसी संस्कृति विकसित करना है, जिसमें योग दिल्ली की दिनचर्या का हिस्सा बन जाए, तभी दिल्ली 'स्वस्थ राजधानी' बन पाएगी। आज जब समाज वैचारिक विघटन और मानसिक असंतुलन के दौर से गुजर रहा है, तब योग वह साझी भूमि है, जहां विचार, धर्म, वर्ग या जाति की कोई दीवार नहीं। दिल्ली जैसे विविधता भरे महानगर में योग लोगों को जोड़ने वाला भावनात्मक सेतु बन सकता है।
आत्मा का अनुशासन
जहां पश्चिमी सभ्यता ने 'I think, therefore I am' को जीवन का आधार माना, वहीं भारत ने हजारों वर्षों पहले कह दिया था - 'योगः कर्मसु कौशलम्'। योग जीवन के हर कर्म में संतुलन और सटीकता का नाम है। आज दुनिया योग सीख रही है और भारत के भीतर छुपे उस शाश्वत विज्ञान को सम्मान दे रही है, जो न तो समय से बंधा है, न सीमा से। यह 'सांस्कृतिक पुनर्जागरण' का समय है और योग उसकी मशाल है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस 'One Earth, One Health' का आह्वान किया है, वह भारत की आध्यात्मिक दृष्टि का वैश्विक अनुवाद है।
(लेखिका दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं)
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