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कम रेट और लेट पेमेंट पर अड़े अस्पताल, दिल्ली में आयुष्मान अटका

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना को दिल्ली में लागू हुए दो महीने से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन बड़े और नामचीन निजी अस्पताल अब भी इस योजना से दूरी बनाए हुए हैं। 10 अप्रैल को दिल्ली में इस योजना की शुरुआत हुई थी, मगर अब तक महज 93 अस्पताल ही जुड़ सके हैं। दिल्ली जैसे शहर में, जहां सैकड़ों निजी अस्पताल हैं, वहां यह आंकड़ा काफी कम है।



अस्पताल प्रबंधन को सता रहा डर


सूत्रों के मुताबिक, योजना के तहत इलाज और मेडिकल प्रोसीजर की तय दरें निजी अस्पतालों को मंजूर नहीं हैं। अस्पताल प्रबंधन को डर सता रहा है कि पहले की तरह इस बार भी समय पर पेमेंट नहीं होगा, जिससे उनका खर्च निकालना मुश्किल हो जाएगा।



विदेशों से भी आते हैं लोग

डॉक्टरों के अनुसार, योजना में जो दरें तय की गई हैं। वह मार्केट रेट का केवल 30 से 40 प्रतिशत हैं। यही कारण है कि फोर्टिस, गंगाराम, मैक्स, अपोलो, बीएलके जैसे बड़े अस्पताल अभी इससे नहीं जुड़ना चाहते। इन अस्पतालों में पहले से ही मरीजों की कोई कमी नहीं। विदेशों से भी लोग इलाज के लिए यहां आते हैं। ऐसे में अस्पतालों का कहना है कि वे अपने खर्च के मुकाबले बेहद कम रेट पर सेवाएं कैसे दें?



पेमेंट में देरी सबसे बड़ी चिंता

एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) के डायरेक्टर जनरल डॉ. गिरिधर जे. ज्ञानी ने माना, दरें कम हैं, इसमें कोई दोराय नहीं, लेकिन असली चिंता पेमेंट में देरी को लेकर है। पिछली सरकार की योजनाओं में यही सबसे बड़ा मुद्दा रहा। अगर वर्तमान सरकार यह भरोसा दे कि एक महीने के भीतर पेमेंट मिलेगा, तो मिड-साइज अस्पताल जुड़ सकते हैं। लेकिन बड़े अस्पतालों के लिए मौजूदा दरों पर जुड़ना संभव नहीं है।



आयुष्मान योजना 2018 में शुरू हुई

उन्होंने सुझाव दिया कि अगर सरकार भुगतान में देरी करे, तो 1 पर्सेंट ब्याज जोड़कर पेमेंट किया जाए, ताकि जिम्मेदार अधिकारियों पर प्रेशर बना रहे। सीजीएचएस की रेट लिस्ट 2014 में अपडेट हुई थी, जबकि आयुष्मान योजना 2018 में शुरू हुई। ऐसे में जरूरी है कि रेट को महंगाई दर के साथ दोबारा तय किया जाए और नए रेट तय करने के लिए नई साइंटिफिक स्टडी की जाए। जब तक यह स्टडी नहीं होती, तब तक अस्थायी दरें लागू की जा सकती हैं।



कोपेमेंट मॉडल का प्रस्ताव

डॉ. ज्ञानी ने एक और समाधान सुझाया। उन्होंने कहा कि कोपेमेंट मॉडल अपनाया जा सकता है। इसके तहत, मान लिया जाए कि किसी प्रोसीजर की कुल लागत 130 रुपये है, तो उसमें से 100 रुपये सरकार आयुष्मान योजना के तहत पेमेंट करे और बाकी 30 रुपये मरीज वहन करे। विदेशों में यह मॉडल सफल रहा है। इससे मरीज को विकल्प मिलेगा और बड़े अस्पताल भी इस शर्त पर योजना से जुड़ सकते हैं।



सरकार को करनी होगी पहल

निजी अस्पतालों की तरफ से यह स्पष्ट संकेत है कि मौजूदा दरों और पेमेंट प्रक्रिया के साथ आयुष्मान भारत योजना बड़ी सफलता नहीं पा सकती। जब तक रेट्स रियलिस्टिक नहीं होंगे और पेमेंट समय पर नहीं होगा, तब तक बड़े अस्पताल जुड़ने से हिचकते रहेंगे।



  • 10 अप्रैल को यह योजना लागू की गई थी।
  • अब तक 3,63,524 कार्ड बनाए जा चुके हैं।
  • अब तक अस्पतालों में 17,318 एडमिशन किए जा चुके हैं।
  • इस योजना में दिल्ली के 93 प्राइवेट और सरकारी अस्पताल रजिस्टर्ड हैं।


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