नई दिल्लीः कुछ साल पहले तक, सरकारी कंपनियां और विदेशों से आई टेक्नोलॉजी ही भारत की रक्षा प्रणाली का हिस्सा थीं। लेकिन अब प्राइवेट कंपनियां नया बदलाव ला रही हैं। वे सिर्फ कमियों को नहीं भर रहीं, बल्कि नई चीजें बना रही हैं। टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स (TAS), अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज (ADTL), पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज, आइडिया फोर्ज और आईजी ड्रोन जैसी कंपनियां अब छोटी नहीं रहीं। वे आधुनिक युद्ध के लिए जरूरी चीजें बनाने में महत्वपूर्ण भागीदार बन गई हैं।TAS कंपनी हवाई और रक्षा क्षेत्र में बहुत समय से काम कर रही है। यह कंपनी रडार, मिसाइल और UAV सिस्टम जैसे कई समाधान भारतीय सेना को देती है। UAV का मतलब है, बिना पायलट के उड़ने वाले विमान। TAS कंपनी एयरबस स्पेन के साथ मिलकर C-295 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट बनाती है। यह एयरक्राफ्ट गुजरात के वडोदरा में भारत के पहले प्राइवेट मिलिट्री एयरक्राफ्ट प्लांट में बनता है। पारस डिफेंस कंपनी स्वदेशी डिजाइन, डेवलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग के लिए जानी जाती है। यह इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, ऑप्टिक्स और ड्रोन के क्षेत्र में नए मानक स्थापित कर रही है। इसी तरह, अल्फा डिजाइन कंपनी रडार से लेकर टैंक के पार्ट्स और सैटेलाइट पेलोड तक कई तरह के सिस्टम बनाती है।I बड़े ग्रुप ने डिफेंस सेक्टर में भागीदारी बढ़ाई लार्सन एंड टुब्रो (L&T), अडानी ग्रुप और भारत फोर्ज जैसे बड़े ग्रुप ने भी रक्षा क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ा दी है। L&T को हाई-पावर्ड रडार सिस्टम और क्लोज-इन वेपन सिस्टम के लिए 13,369 करोड़ रुपये के कॉन्ट्रैक्ट मिले हैं। अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने उत्तर प्रदेश डिफेंस कॉरिडोर में दो गोला-बारूद और मिसाइल बनाने की फैक्ट्रियां खोली हैं। इनका लक्ष्य हर साल 150 मिलियन छोटे कैलिबर के गोला-बारूद बनाना और भारत की जरूरत का 25% हिस्सा पूरा करना है। भारत खुद बनाने लगा ड्रोनड्रोन टेक्नोलॉजी में प्राइवेट सेक्टर का योगदान सबसे ज्यादा दिख रहा है। भारत की सेना ने 1990 के दशक में इजरायली UAV जैसे IAI सर्चर और हेरॉन का इस्तेमाल करना शुरू किया था। इनकी उपयोगिता को देखते हुए, भारत ने खुद भी इन्हें बनाने की क्षमता विकसित करना शुरू कर दिया। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान रियल-टाइम जानकारी की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद DRDO और प्राइवेट कंपनियों ने UAV डेवलपमेंट को और तेज कर दिया। सेना के पास UAV का एक बड़ा बेड़ा है मई 2025 तक भारतीय सेना के पास UAV का एक बड़ा बेड़ा है और कई और UAV डेवलपमेंट के प्रोसेस में हैं। ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी ड्रोन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन ड्रोन को प्राइवेट कंपनियों ने बनाया है। ये ड्रोन सामरिक और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जानकारी जुटाने और निगरानी करने में मदद करते हैं। आइडिया फोर्ज का SWITCH UAV और NETRA V2 क्वाडकॉप्टर, जिसे DRDO के साथ मिलकर बनाया गया है, सेना में शामिल हो चुका है। अल्फा डिजाइन ने इजरायल की एल्बिट सिस्टम्स के साथ मिलकर स्काईस्ट्राइकर जैसे एडवांस सिस्टम बनाए हैं। इसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सटीक हमले करने में मदद की। सोलर इंडस्ट्रीज के नागस्त्र-1 ने भारत की सामरिक हमले करने की क्षमता को बढ़ाया है। वहीं, न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज ने IAF को ड्रोन स्वार्म क्षमताएं दी हैं। भारतीय स्टार्टअप रक्षा क्षेत्र में नए ट्रेंड सेट कर रहेअभी कई और चीजें डेवलपमेंट के प्रोसेस में हैं। इनमें लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित करने वाले प्लेटफॉर्म जैसे गरुड़ एयरोस्पेस का जटायु शामिल है। यह एक हैवी लिफ्ट ड्रोन है। इसके अलावा, स्काईपॉड सियाचिन जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में सामान पहुंचाने के लिए बनाया गया है। थ्रॉटल एयरोस्पेस का रेवेन और न्यूस्पेस और 114AI के AI-ड्रिवन स्वार्म कंट्रोल सिस्टम दिखाते हैं कि कैसे भारतीय स्टार्टअप रक्षा क्षेत्र में नए ट्रेंड सेट कर रहे हैं। भारत को 2030 तक ग्लोबल ड्रोन हब बनाने का लक्ष्य ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया में 550 से ज्यादा कंपनियां और 5,500 पायलट शामिल हैं। यह भारत को 2030 तक ग्लोबल ड्रोन हब बनाने का लक्ष्य रखता है। आईजी ड्रोन यह दिखाता है कि कैसे नई डिफेंस टेक कंपनियां R&D, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस में विशेषज्ञता हासिल कर रही हैं। आर्मी और दूसरी सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर यह प्राइवेट सेक्टर की विशेषज्ञता को डिफेंस प्लानिंग और एग्जीक्यूशन में शामिल कर रही है। भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 24,000 करोड़ रुपये पहुंचाFY25 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट लगभग 24,000 करोड़ रुपये ($2.9 बिलियन) तक पहुंच गया। इसमें प्राइवेट कंपनियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकार का लक्ष्य 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट करना है। यह प्राइवेट सेक्टर की लगातार ग्रोथ पर निर्भर करता है। अकेले भारतीय ड्रोन बाजार 2030 तक $11 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। यह ग्लोबल शेयर का 12% से ज्यादा होगा। इससे प्राइवेट कंपनियों के लिए अवसर बढ़ेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।हाल ही में, पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए सैन्य आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। इसके बाद डिफेंस स्टॉक, पब्लिक और प्राइवेट दोनों में 4% तक की तेजी आई। उन्होंने कहा, "हमने नई तरह की लड़ाई में अपनी ताकत साबित कर दी है। हमें स्वदेशी टेक्नोलॉजी के माध्यम से डिफेंस इनोवेशन में आगे बढ़ना चाहिए।"ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का कारण प्राइवेट डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को सपोर्ट करने वाली नीतियां हैं। 2021 से इम्पोर्टेड ड्रोन पर बैन और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम, जिसमें 120 करोड़ रुपये का प्रावधान है, ने लोकल इनोवेशन को बढ़ावा दिया है। FY24 में स्वदेशी डिफेंस प्रोडक्शन 1.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिसमें प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ रही है। iDEX (Innovations for Defence Excellence) और SRIJAN (इम्पोर्ट सब्स्टिट्यूशन के लिए) जैसे प्रोग्राम ने स्टार्टअप और स्थापित कंपनियों दोनों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। ऑटोनॉमस, AI-ड्रिवन सिस्टम पर फोकसप्राइवेट सेक्टर की भूमिका लगातार बढ़ रही है। भविष्य में ऑटोनॉमस, AI-ड्रिवन सिस्टम पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। प्राइवेट कंपनियां टैलेंट और तेजी के मामले में बेहतर हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि प्राइवेट इनोवेशन, पब्लिक सेक्टर सपोर्ट और सैन्य विजन मिलकर भारत को एक हाई-टेक सैन्य शक्ति बना सकते हैं। स्पेस-बेस्ड क्षमताएं इस भविष्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होंगी। हालांकि भारत सैन्य सैटेलाइट के मामले में अमेरिका और चीन से पीछे है, लेकिन यह दिगंतरा (स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस), पिक्सेल (पृथ्वी अवलोकन), ध्रुव स्पेस (सैटेलाइट और ग्राउंड सिस्टम) और अनंत टेक्नोलॉजीज जैसी कंपनियों के साथ आगे बढ़ रहा है।इस साल की शुरुआत में, दक्षिण भारत की तीन प्राइवेट कंपनियों को स्पेस-बेस्ड सर्विलांस-3 (SBS-3) प्रोग्राम के तहत 31 सैटेलाइट को-डेवलप करने के लिए चुना गया था। यह पहली बार है जब प्राइवेट कंपनियां रणनीतिक उपयोग के लिए सैटेलाइट बना रही हैं। यह प्रोग्राम कार्टोसैट और रिसैट लॉन्च पर आधारित है। यह GEO (जियोस्टेशनरी) और LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) में 52 सैटेलाइट के साथ भारत की स्पेस सर्विलांस क्षमता को बढ़ाएगा। इसरो 21 सैटेलाइट डेवलप करेगा, जबकि प्राइवेट सेक्टर 31 सैटेलाइट देगा।
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