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Jharkhand Chunav: मात्र ₹75 में परिवार चलाते थे 9 बार के विधायक! 400 रुपये और साइकिल से लिखी गई राजनीतिक सफलता की कहानी

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जामताड़ाः 1947 से 1962 तक लोकप्रिय फिजिसियन के रूप में खति अर्जित करने वाले डॉ. विशेश्वर खां ने पहली बार 1962 में नाला विधानसभा सीट से सीपीआई उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। साइकिल और पैदल चलकर मात्र 400 रुपये खर्च कर पहला चुनाव जीतने वाले विशेश्वर खां ने 9 बार नाला सीट से जीत हासिल की। विधायक बनने के बाद आर्थिक स्थिति में गिरावटविशेश्वर खां एक डॉक्टर के रूप में पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध थे, लेकिन विधायक बनने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में गिरावट आने लगी। पहली बार विधायक बनने के बाद उन्हें 250 रुपया वेतन मिलता था, यह राशि पार्टी कोष में जमा हो जाती थी और इसके एवज में घर-परिवार चलाने के लिए इन्हें मात्र 75 रुपये दिए जाते थे। 23 अप्रैल 1923 को नाला विधानसभा क्षेत्र के कुंडहित प्रखंड के लायकापुर गांव में एक साधारण किसान राधाकृष्ण खां और मां कुटीला खां के घर जन्मे विशेश्वर खां को राजनीति विरासत में नहीं मिली। दुमका जिले के रानेश्वर प्रखंड के अमजोरा हाईस्कूल में 1942 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने बांकुड़ा मेडिकल कॉलेज में एल.एम.एफ. में नामांकन करवाया। वर्ष 1947 में डॉक्टरी की परीक्षा पास करने के बाद पैतृक गांव लौट आए और मेडिकल प्रैक्टिस प्रारंभ की। कुछ ही साल में एक कुशल चिकित्सक के रूप में इनकी ख्याति संपूर्ण क्षेत्र में फैल गई। भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर राजनीति में कदमडॉ. विशेश्वर खां ने महात्मा गांधी के अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर राजनीति में कदम रखा। लेकिन बाद में उन्हें बापू की आर्थिक विचार धारा पसंद नहीं आई,क्योंकि वह नीति समाजवाद का पोषण नहीं करती थी। इसलिए विशेश्वर खां ने मार्क्सवादी रास्ते पर चलना मंजूर किया। नाला विधानसभा सीट से 9 बार मिली जीतविशेश्वर खां ने 1962, 1967, 1969, 1972, 1977, 1980 और 1985 में लगातार सात बार जीत हासिल की। लेकिन 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की राजकुमारी हिम्मतसिंहका से पराजय का मुंह देखना पड़ा। लेकिन इसके बाद फिर 1995 और 200 के चुनाव में बिशेश्वर खां विजयी रहे। इस तरह से दस में से नौ चुनाव में विशेश्वर खां को नाला विधानसभा सीट से जीत मिली। वर्ष 2005, 2014 और 2019 में जेएमएम के रबिंद्रनाथ महतो और 2009 में बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल को नाला से जीत मिली।
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