नई दिल्ली: कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार के रवैये को देखते हुए यह साफ है कि वह दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने या इन्हें दोबारा पटरी पर लाने के बिल्कुल मूड में नहीं है। जिस तरह से बिना कोई ठोस सबूत मुहैया कराए वह भारत पर लगाए अपने आरोपों का दायरा बढ़ाती जा रही है, उसे द्विपक्षीय रिश्तों की बेहतरी की किसी भी भावना से जोड़ना मुश्किल है। बेतुके आरोप यह काफी हद तक साफ तभी हो गया था जब पिछले साल महज सूचनाओं के आधार पर जस्टिन ट्रूडो ने अपने देश की संसद में यह आरोप लगा दिया था कि वहां हुई एक खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है। तब भी भारत ने यही कहा था कि उनके पास अगर कोई ठोस सबूत हैं तो मुहैया कराएं, मामले की जांच कराई जाएगी। लेकिन उधर से कोई सबूत नहीं दिए गए। हुआ यह कि पिछले दिनों खुद ट्रूडो को एक समिति के सामने कबूल करना पड़ा कि उनके पास कोई सबूत नहीं थे। दायरा बढ़ाया दिलचस्प है कि इस सार्वजनिक शर्मिंदगी के बाद भी उनकी सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। वह अभी तक कोई सबूत नहीं दे पा रही है, लेकिन अलग-अलग तरीकों से आरोपों का दायरा बढ़ाती जा रही। पहले कनाडा में भारत के उच्चायुक्त को ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित कर दिया और फिर अमेरिकी अखबार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ में स्टोरी प्लांट करवाई कि इस हत्या के पीछे भारत के गृहमंत्री का हाथ है। घरेलू राजनीति का दबाव ऐसे में स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि आखिर कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार इस तरह की हरकतें क्यों कर रही है जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तय मानकों में कहीं से फिट नहीं बैठतीं। घटनाओं और हालात के जरिए इसे समझने की कोशिश करें तो यह जाहिर हो जाता है कि वह घरेलू राजनीतिक दबावों और चुनावी फायदों से निर्देशित हो रही है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मानक और द्विपक्षीय रिश्तों की बेहतरी कम से कम फिलहाल उसकी प्राथमिकता में नहीं हैं। आम लोगों पर असर अफसोस की बात यह है कि इस स्थिति का प्रभाव न सिर्फ दोनों के रिश्तों पर बल्कि कनाडा में रह रहे या वहां पढ़ाई के लिए जाने की सोच रहे छात्रों और युवाओं पर पड़ रहा है। इन पहलुओं को देखते हुए ही इन हालात में भी भारत ने यह दोहराया है कि द्विपक्षीय रिश्तों के संदर्भ में आज भी उसकी मुख्य चिंता उन खालिस्तान समर्थक तत्वों की गतिविधियां ही हैं जिन्हें अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बेलगाम छोड़ दिया गया है। देखना होगा कि कब कनाडा में अंदरूनी राजनीति के समीकरण बदलते हैं या कब वहां की सरकार अंतरराष्ट्रीय मामलों को घरेलू राजनीति के दबावों से अलग रखने का अनुशासन दिखा पाती है।
You may also like
अल्लाह गजनफर ने 6 विकेट लेकर बरपाया कहर, अफगानिस्तान ने बांग्लादेश को पहले वनडे मे 92 रन से रौंदा
मप्रः जम्मू-कश्मीर में बलिदान हुए जवान का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
पीएम मोदी ने की ट्रंप से बात, कहा – 'फिर मिलकर काम करने के लिए उत्सुक हूं'
Sriganganagar मूंग खरीद को लेकर किसानों ने किया प्रदर्शन
Sriganganagar शहर में 3051 करोड़ रुपए का निवेश होगा