वक्फ संशोधन बिल पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति की उम्मीद तो किसी को नहीं, लेकिन गतिरोध को कम से कम करने का प्रयास जरूर होना चाहिए। इस बिल का असर एक बड़ी आबादी पर पड़ेगा। अगर उसकी चिंताओं को दूर नहीं किया गया तो बिल का मकसद अधूरा रह जाएगा। विपक्ष की बात: सरकार ने पिछले साल अगस्त में वक्फ संशोधन से जुड़ा नया बिल लोकसभा में पेश किया था। तब विपक्ष के विरोध के चलते इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेज दिया गया। इस साल फरवरी में कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दी, फिर केंद्रीय कैबिनेट ने उसे मंजूरी दी। सरकार का कहना है कि उसने विपक्ष की बात भी सुनी है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि उसके सुझाए बदलावों को स्वीकार नहीं किया गया। बेहतर होगा प्रबंधन: वक्फ को लेकर विवाद कोई नया नहीं है और इसके कामकाज में सुधार होना चाहिए। वहीं, यह बड़ी संपत्ति का मालिक भी है। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि फिलहाल वक्फ बोर्ड के पास देशभर में 8.7 लाख संपत्तियां हैं। भारतीय सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। संशोधन बिल से इनके मैनेजमेंट में आसानी होगी। महिलाओं को अधिकार: सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों के होने के प्रावधान पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन महिला सदस्यों को लेकर हंगामा समझ से परे है। इससे मुस्लिम महिलाओं को अपनी बात रखने और अधिकार हासिल करने का मौका मिलेगा। इसी तरह, बोहरा और आगाखानी के लिए अलग बोर्ड बनने से इनके साथ अभी तक हुए भेदभाव को दूर किया जा सकेगा। भरोसे की कमी: विपक्ष के साथ ही एक वर्ग को डर है कि यह बिल कानून बन गया तो इसके जरिये सरकार धार्मिक मामलों में दखल देगी। हालांकि वक्फ संशोधन विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ बोर्ड किसी भी धार्मिक संस्था की व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस तरह की बात सरकार की तरफ से पहले भी कही जा चुकी है। इसके बावजूद अगर गतिरोध कायम है, तो इसकी वजह है संवाद और भरोसे की कमी। सुधार का स्वागत: वक्फ बिल असल में धर्म से ज्यादा प्रॉपर्टी से जुड़ा मसला है। यह भी सच है कि वक्फ संपत्तियों की बदइंतजामी से जुड़ी खबरें आती रही हैं। ऐसे में सुधार की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन सुधार संवाद और सहमति के जरिए हो, टकराव का माहौल न बने, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
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