सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित पर्व है। हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाई जाती है। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और आखिरी दिन उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होती है। वहीं, छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा से जीवन का परम सत्य भी जुड़ा हुआ है, जिसे कलियुग में हर किसी को जानना बहुत जरूरी है। इससे पहले जान लेते हैं कि उगते हुए सूर्य को अर्घ्य क्यों देते हैं। छठ पूजा पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व सूर्यदेव को जीवनदाता माना जाता है। धरती पर सूर्य और नदियों के बिना जीवन संभव नहीं है। यही कारण है कि किसी नदी या घाट पर खड़े होकर ही सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। नदी या घाट पर जाने की व्यवस्था न होने पर किसी संग्रह किए हुए जल में भी खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जल का स्पर्श जरूरी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहों का राजा होता है। सूर्य को भाग्य, सफलता और निरोगी काया से जोड़कर देखा जाता है इसलिए जिस तरह सूर्योदय होने से प्रकाश होता है, उसी तरह जीवन के प्रकाशमय होने की कामना की जाती है। छठ पूजा में डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने का महत्वजीवन में संतुलन और ऊर्जा के लिए सूर्य को अर्घ्य देना महत्वपूर्ण माना जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है जीवन के उतार-चढ़ाव को समझना। जैसे सूर्य हर दिन डूबता है और फिर उगता है, वैसे ही जीवन में भी सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं। इसके साथ ही अगर इसे जीवन के एक अन्य पहलु से जोड़कर देखा जाए, तो सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि हर अंत एक नई शुरुआत लेकर आता है। वरिष्ठजनों को नमन करने का प्रतीक है डूबते सूर्य को अर्ध्य देनाडूबते हुए सूर्य को जीवनकाल की जमा-पूंजी यानी अनुभव से जोड़कर देखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि वरिष्ठजन जो प्रकृति चक्र से गुजरते हुए जीवन के हर चरण को देख चुके हैं। वे धीरे-धीरे अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन यह उनका अंत नहीं है बल्कि एक नए जीवन, एक नए सवेरे का आरंभ है। संघर्षों से गुजरते हुए जीवन जीते चले जाना भी एक उपलब्धि है इसलिए ढलता सूर्य यानी हमारे वरिष्ठजन भी नमन के अधिकारी हैं।
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