New Delhi, 27 जुलाई . लिवर को प्रभावित करने वाली बीमारी हेपेटाइटिस को चिकित्सा जगत में ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है. इसी बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और समय रहते इससे लड़ने के उपाय करने के उद्देश्य से हर साल 28 जुलाई को ‘विश्व हेपेटाइटिस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
साल 2025 की थीम है: ‘हेपेटाइटिस: लेट्स ब्रेक इट डाउन’, अब वक्त आ गया है कि हेपेटाइटिस से जुड़ी हर बाधा को तोड़ा जाए. यह एक वैश्विक अपील है कि हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए अब हमें सतही नहीं, जमीनी स्तर पर काम करना होगा.
डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य है कि 2030 तक हेपेटाइटिस को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की सूची से बाहर किया जाए. दुनिया भर में करोड़ों लोग हेपेटाइटिस ‘बी’ या ‘सी’ के साथ जी रहे हैं. हर साल यह बीमारी 13 लाख से अधिक लोगों की जान लेती है. यह संख्या एचआईवी, मलेरिया और टीबी जैसी बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की संख्या से भी अधिक है. हेपेटाइटिस के बचाव और इलाज के उपाय मौजूद हैं. खासकर हेपेटाइटिस बी और सी लंबे समय तक शरीर को प्रभावित करके लिवर सिरोसिस, लिवर फेल्योर और लिवर कैंसर जैसे जानलेवा मामलों की संख्या को बढ़ा देते हैं.
विश्व हेपेटाइटिस दिवस डॉ. बारुच ब्लमबर्ग के जन्मदिवस पर मनाया जाता है. उन्होंने 1967 में हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज की और दो साल बाद इसकी पहली वैक्सीन बनाई. इस अद्भुत योगदान के लिए उन्हें 1976 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आज जब दुनिया उनकी इस खोज की बदौलत करोड़ों लोगों की जान बचा पा रही है, तो इस दिन को उनके सम्मान और प्रेरणा के रूप में देखा जाता है.
हेपेटाइटिस कई प्रकार के होते हैं- ए, बी, सी, डी और ई. हेपेटाइटिस ए और ई दूषित भोजन और पानी से फैलते हैं, जबकि बी, सी और डी खून और शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क से. संक्रमित सिरिंज, असुरक्षित यौन संबंध और संक्रमित रक्त से ट्रांसफ्यूजन जैसी स्थितियों में इसके फैलने की आशंका अधिक होती है. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस बीमारी के कई मरीज वर्षों तक किसी लक्षण के बिना ही जीते रहते हैं. जब तक थकावट, बुखार, भूख की कमी, पेट दर्द, गहरे रंग का पेशाब और त्वचा व आंखों का पीला होना जैसे लक्षण दिखते हैं, तब तक संक्रमण खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका होता है. हेपेटाइटिस का समय पर पता चलना और इलाज मिलना बेहद जरूरी है, वरना यह लिवर को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है.
हालांकि, राहत की बात यह है कि हेपेटाइटिस ए और बी की वैक्सीन मौजूद है और हेपेटाइटिस सी अब पूरी तरह से इलाज योग्य है. लेकिन ज्यादातर लोग जांच कराने तक नहीं पहुंच पाते. जागरूकता की कमी, संसाधनों की अनुपलब्धता और सामाजिक कलंक जैसी बाधाएं अभी भी इसकी रोकथाम में रोड़े अटका रही हैं.
भारत जैसे देश में, जहां ग्रामीण और वंचित समुदायों में स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं, वहां इस बीमारी की रोकथाम एक बड़ी चुनौती है. डब्ल्यूएचओ की रणनीति 2022–2030 के तहत लक्ष्य है कि 2030 तक नए संक्रमणों को 90 फीसदी और मौतों को 65 फीसदी तक कम किया जाए. लेकिन अगर तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हेपेटाइटिस अकेले 2030 तक 95 लाख नए संक्रमण, 21 लाख लिवर कैंसर और 28 लाख मौतों की वजह बन सकता है.
हेपेटाइटिस से लड़ाई लड़ना सिर्फ डॉक्टरों या सरकारों का काम नहीं है; यह हम सभी की जिम्मेदारी है. जागरूक बनें, दूसरों को जागरूक करें, समय पर जांच कराएं और जरूरत पड़ने पर इलाज शुरू करें.
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पीएसके/एएस
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