हल्द्वानी, 14 जुलाई . उत्तराखंड के मीठे सेबों की धमक देश ही नहीं, विदेशों में भी रही है, लेकिन अब इसकी धीरे-धीरे पहचान खत्म हो रही है. कुमाऊं मंडल के नैनीताल और अल्मोड़ा जनपद क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सेब की बागवानी की जाती है. मौसम परिवर्तन के कारण और मंडियों में विदेशी सेब की आवक से पहाड़ के सेब की डिमांड नहीं है. इसके चलते किसान परेशान हैं.
मंडी व्यापारियों की मानें तो अमेरिका, तुर्की व ईरान से आने वाले सस्ते और स्वादिष्ट सेब ने नैनीताल जिले के रामगढ़ के सेब का स्वाद बिगाड़ दिया है. बड़े स्तर पर विदेशी सेब की आवक से स्थानीय उत्पादकों की स्थिति खराब हो चुकी है. पहले मौसम की मार पड़ी और अब विदेशी सेब से व्यापार ही प्रभावित हो गया है.
सेब की खेती में लगातार घाटा होने से मजबूर उत्पादक अब बागवानी से विमुख होने लगे हैं. पहाड़ के किसानों को अपने उत्पादन के लिए ग्रेडिंग भी मिल नहीं पा रही है, जिसके चलते सेब के दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
कश्मीर व हिमाचल के बाद सेब उत्पादन में उत्तराखंड का नाम आता है. यहां नैनीताल सहित कई जिलों में बड़े स्तर पर सेब का उत्पादन किया जा रहा है. लेकिन, बारिश, ओलावृष्टि के चलते सेब की गुणवत्ता खराब हो गई है. मौसम की मार के चलते बीते कई वर्षों से किसानों को नुकसान हो रहा है.
ललित कुमार ने बताया कि मौसम की मार के चलते पहाड़ के सेब की फसल खराब हो चुकी है. फसल के लिए कोई ग्रेडिंग व्यवस्था नहीं है, जिसके चलते उत्पादन को अलग-अलग दामों में नहीं बेच पाते हैं. मंडियों में भी पहाड़ के सेब की डिमांड नहीं है. वर्तमान समय में पहाड़ के सेब की कीमत 10 रुपए किलो भी नहीं मिल रही है, जिसके चलते भारी नुकसान हो रहा है.
फल आढ़ती एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की ने बताया कि विदेशी सेब ने बाजारों में अपना कब्जा जमा लिया है. पहाड़ के सेब की क्वालिटी नहीं होने के चलते बाहर की मंडियों में डिमांड नहीं है. इसके चलते किसानों को उत्पादन का दाम नहीं मिल पा रहा है. सरकार को चाहिए कि पहाड़ के सेब का समर्थन मूल्य घोषित कर इसकी खरीद करे.
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एएसएच/एबीएम
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