नई दिल्ली, 2 जुलाई . कितने ही वीरों ने हिंदुस्तान की इस मिट्टी के लिए अपने रक्त और पराक्रम से गर्व की गाथाएं लिखी हैं. ऐसे ही वीरों में शुमार हैं मोहम्मद उस्मान और कैप्टन मनोज कुमार पांडेय. मौके अलग-अलग, काल अलग-अलग, लेकिन वीरता एक जैसी जो हर भारतीय को प्रेरित करती है.
भारत-पाकिस्तान युद्ध के महानायक ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान “नौशेरा का शेर” नाम से प्रसिद्ध हैं. उनकी वीरता और बलिदान की गाथा पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है. आजादी के तुरंत बाद 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी सेना और आदिवासी हमलावरों से लड़ते हुए वह शहीद हो गए थे. उनकी शहादत को, खासतौर पर 3 जुलाई को, पूरा देश नमन करता है.
मोहम्मद उस्मान का 15 जुलाई 1912 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर में हुआ था. रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में करियर शुरू किया. विभाजन के दौरान जब कई मुस्लिम अधिकारी पाकिस्तान चले गए, उस समय मोहम्मद उस्मान ने भारत में रहकर देशभक्ति की मिसाल पेश की.
हिंदुस्तान की आजादी के बाद 1947-48 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ, जिसमें मोहम्मद उस्मान को जम्मू कश्मीर मोर्चे पर 50 पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेड कमांडर के रूप में तैनात किया गया था. उन्होंने झांगर और नौशेरा की रक्षा में निर्णायक भूमिका निभाई. फरवरी 1948 में उन्होंने झांगर पर फिर से कब्जा किया, जबकि नौशेरा की लड़ाई में उनकी रणनीति और नेतृत्व के चलते भारतीय सेना को बड़ी सफलता मिली. इसी अदम्य साहस और वीरता के कारण उन्हें “नौशेरा का शेर” उपनाम मिला.
कहा जाता है कि उस दौर में पाकिस्तान ने उनके सिर पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया था. यहां तक कि उन्हें पाकिस्तान का सेना प्रमुख बनाने की भी बात सामने आई थी, लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान अपने कर्तव्य और संकल्प से नहीं डिगे. वह 3 जुलाई 1948 को युद्धभूमि में पाकिस्तानी सेना और कबायली हमलावरों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. उनके अद्वितीय साहस, नेतृत्व और देशभक्ति के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया जो उस समय युद्ध भूमि में वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान था.
कुछ इसी तरह की वीरता की कहानी कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की है. संयोगवश 3 जुलाई को ही कारगिल युद्ध के दौरान वह वीरगति को प्राप्त हुए.
सन् 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ा था. इस ऐतिहासिक विजय में कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें कैप्टन मनोज कुमार पांडेय भी शामिल थे. महज 24 साल की उम्र में उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया.
कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुद्र गांव में हुआ. कारगिल युद्ध के दौरान वह 11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन (1/11 जीआर) में कैप्टन थे. उन्होंने 11 जून 1999 को बटालिक सेक्टर में दुश्मन के ठिकानों पर हमला बोलते हुए जुबार टॉप पर कब्जा कर लिया. इस दौरान उन्होंने अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी साहस नहीं छोड़ा.
कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद कैप्टन मनोज पांडेय दुश्मन के बंकर में घुस गए और हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में दो दुश्मन सैनिकों को मार गिराया. उन्होंने अगले 22 दिनों तक दुश्मन के चार ठिकानों पर लगातार हमले जारी रखे. चौथे बंकर पर कब्जा करते समय वह गंभीर रूप से घायल हो गए.
वह 3 जुलाई 1999 को शहीद हो गए. उनके अतुलनीय साहस, वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया.
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डीसीएच/एकेजे
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