वाराणसी, 16 अक्टूबर . धर्मनगरी काशी में दीपावली की तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं और इस मौके पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों की मांग भी तेजी से बढ़ गई है. खास बात यह है कि इन मूर्तियों को पवित्र गंगा की मिट्टी से बनाया जाता है, जिससे लोग इन्हें बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने घरों में स्थापित करते हैं.
इस वर्ष विशेष रूप से ‘तीली वाली मूर्तियों’ की मांग सबसे अधिक देखी जा रही है. ये मूर्तियां अपनी अनोखी कारीगरी, बारीकी और आकर्षक सजावट के कारण ग्राहकों का ध्यान खींच रही हैं. पारंपरिक और मनमोहक ये मूर्तियां केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अब इनकी मांग दिल्ली, Maharashtra समेत देश के कई अन्य राज्यों में भी काफी बढ़ गई है.
कारीगर महीनों पहले से ही गंगा की मिट्टी लाकर मूर्तियों की तैयारी में जुटे हुए हैं. मिट्टी की सफाई, उसे तैयार करना, मूर्तियों को सांचे में ढालना, फिर उन्हें सुखाना, पकाना और अंत में आकर्षक रंगों व तारों से सजाना, हर एक चरण में कारीगरों की कड़ी मेहनत और कलात्मक प्रतिभा झलकती है. इन मूर्तियों में गंगा की मिट्टी की पवित्रता और स्थानीय संस्कृति की छाप साफ दिखाई देती है.
बनारस के कारीगर अपनी मेहनत और गंगा की मिट्टी का आशीर्वाद मिलाकर इन मूर्तियों को समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक बनाते हैं. यही वजह है कि हर घर में ये मूर्तियां विशेष सम्मान और श्रद्धा के साथ स्थापित की जाती हैं.
मूर्तियों की बढ़ती मांग ने कारीगरों के लिए रोजगार के नए अवसर भी बनाए हैं, जिससे वे अपनी कला को और बेहतर बनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. इस प्रकार, दीपावली के दौरान बनारस की यह पारंपरिक कला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक तौर पर भी क्षेत्र के लिए लाभकारी साबित हो रही है.
गंगा की मिट्टी से बनी ये मूर्तियां न केवल काशी की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रख रही हैं, बल्कि पूरे देश में दीपावली के त्योहार को एक नई चमक और रंगीनता भी दे रही हैं.
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पीआईएम/एबीएम
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