नई दिल्ली, 30 मई . क्रिसिल की शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय झींगा निर्यातकों को वित्त वर्ष 2026 में राजस्व में 2-3 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिलेगी, क्योंकि बढ़ती कीमतों और मुद्रा में बढ़त के कारण प्राप्तियों में सुधार दर्ज किया गया है.
हालांकि, लो-वैल्यू एडेड झींगा निर्यात पर दबाव बढ़ने की संभावना है, लेकिन भारतीय निर्यातकों को वैल्यू-एडेड सेगमेंट में चीन, वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे अन्य एशियाई समकक्षों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है, जो उच्च टैरिफ का सामना करते हैं, लेकिन अमेरिका में एक तिहाई से अधिक बाजार हिस्सेदारी रखते हैं.
हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले उच्च टैरिफ और प्रमुख आयातक देशों में मांग में कमी के कारण निर्यात की मात्रा स्थिर रहेगी, क्योंकि सुस्त आर्थिक विकास से डिस्पोजेबल आय प्रभावित होती है.
भारत अपने उत्पादन का लगभग 48 प्रतिशत अमेरिका को निर्यात करता है. अमेरिका द्वारा घोषित रेसिप्रोकल टैरिफ, हालांकि फिलहाल रोक दिए गए हैं, लेकिन इससे दुनिया के सबसे बड़े झींगा निर्यातक इक्वाडोर जैसे दक्षिण अमेरिकी निर्यातकों को लाभ होगा.
भारतीय निर्यातकों को रॉ फ्रोजन और पील्ड फ्रोजन कैटेगरी में उनसे अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिनमें कम वैल्यू एडिशन होता है और जो कम पारिश्रमिक वाले होते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, परिचालन मार्जिन दबाव में रहेगा क्योंकि टैरिफ का बोझ केवल आंशिक रूप से और धीरे-धीरे ही डाला जाएगा, जैसा कि अतीत में देखा गया है, जबकि निर्यातक अन्य बाजारों की तलाश करते हैं और वैल्यू एडिशन के माध्यम से पेशकश में सुधार करते हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि कैपिटल स्ट्रक्चर बेहतर स्थिति में रहने की उम्मीद है.
क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक हिमांक शर्मा ने कहा, “पिछले वित्त वर्ष में भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए अमेरिका से 5.77 प्रतिशत के प्रतिपूरक शुल्क लगाने के बाद कीमतें और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई.”
इस वित्त वर्ष में, अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए जाने के साथ जहां यूरोपीय संघ और चीन जैसे अन्य प्रमुख बाजारों में आर्थिक गतिविधि सुस्त है, हमारे निर्यातकों को मांग में स्थिरता देखने को मिलेगी.
पिछले कुछ वित्त वर्षों में वैश्विक झींगा की मांग 4 मिलियन टन (एमटी) पर स्थिर रही है और इस वित्त वर्ष में भी यह कम रहने की संभावना है.
भारतीय निर्यातकों के पास अभी वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का लगभग पांचवां हिस्सा है, जबकि घरेलू उत्पादन 1.2 मीट्रिक टन पर स्थिर देखा जा रहा है, क्योंकि गैर-लाभकारी वैश्विक कीमतें झींगा संस्कृति और विकास को प्रभावित कर रही हैं.
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एसकेटी/एबीएम
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