नई दिल्ली, 21 अप्रैल . बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था आध्यात्मिक प्रमुख महंत स्वामी महाराज ने पोप फ्रांसिस के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि पोप फ्रांसिस ने विभिन्न धर्मों के बीच सेतु निर्माण का प्रयास किया.
पोप फ्रांसिस का निधन सोमवार (21 अप्रैल) सुबह वेटिकन के कासा सांता मार्टा स्थित उनके निवास स्थान पर हुआ वह 88 वर्ष के थे.
स्वामी महाराज ने कहा, ‘पोप फ्रांसिस को आशा, करुणा और एकता के प्रतीक के रूप में सदैव स्मरण किया जाएगा. सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और विश्व शांति हेतु उनके प्रयास अविस्मरणीय हैं. वंचितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और वैश्विक एकता का उनका आह्वान, हमारे अपने परंपरागत मूल्यों से गहराई से मेल खाता है.’
बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के प्रमुख ने कहा, “पोप फ्रांसिस ने विभिन्न धर्मों के बीच सेतु निर्माण का जो प्रयास किया, विशेषकर हिंदू समुदाय और अन्य धार्मिक परंपराओं के प्रति सम्मान को बढ़ावा दिया, वह प्रशंसनीय है.” उन्होंने कहा उनका सपना – एक अधिक न्यायसंगत और सामंजस्यपूर्ण विश्व – हम सभी को प्रेरित करता रहेगा.
पोप फ्रांसिस के निधन पर दुनिया भर के नेताओं ने शोक जताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर अपने शोक संदेश में कहा, “परम पावन पोप फ्रांसिस के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ. दुख और स्मरण की इस घड़ी में, वैश्विक कैथोलिक समुदाय के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं.” उन्होंने कहा, “पोप फ्रांसिस को दुनिया भर में लाखों लोग करुणा, विनम्रता और आध्यात्मिक साहस के प्रतीक के रूप में हमेशा याद रखेंगे.”
प्रधानमंत्री ने कहा, “छोटी उम्र से ही उन्होंने प्रभु ईसा मसीह के आदर्शों को साकार करने में खुद को समर्पित कर दिया. उन्होंने गरीबों और वंचितों की लगन से सेवा की. जो लोग पीड़ित थे, उनके लिए उन्होंने आशा की उम्मीद जगाई. मुझे उनके साथ हुई मुलाकातें बहुत अच्छी तरह याद हैं और मैं समावेशी और सर्वांगीण विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से बहुत प्रेरित हुआ. भारत के लोगों के प्रति उनका स्नेह हमेशा याद रहेगा. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.”
पोप फ्रांसिस ने मृत्यु से एक दिन पहले सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों श्रद्धालुओं को ‘हैप्पी ईस्टर’ की शुभकामनाएं दी थीं. बेसिलिका की बालकनी से 35,000 से अधिक लोगों की भीड़ को ईस्टर की शुभकामनाएं देने के बाद, फ्रांसिस ने अपने पारंपरिक ‘उर्बी एट ओर्बी’ (‘शहर और दुनिया के लिए’) आशीर्वाद को पढ़ने का काम एक सहयोगी को सौंप दिया.
उन्होंने भाषण में कहा , “धर्म की स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान के बिना शांति नहीं हो सकती है.” उन्होंने “चिंताजनक” यहूदी-विरोध और गाजा में ‘नाटकीय और निंदनीय’ स्थिति की भी निंदा की.
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