नई दिल्ली, 28 जून . केंद्र सरकार ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम के तहत अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इसका उद्देश्य भारत में जैव अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजना के लिए अधिक कुशल, पारदर्शी और प्रदर्शन आधारित इकोसिस्टम को बढ़ावा देना है.
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने कहा कि प्रक्रियाओं को सरल बनाने, वित्तीय सहायता में तेजी लाने और प्लांट के प्रदर्शन के साथ समर्थन को जोड़कर नए दिशा-निर्देश निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के लिए ईज-ऑफ-डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किए गए हैं.
नए फ्रेमवर्क के तहत, मंत्रालय ने कई प्रक्रियाओं को सरल बनाया है, जैसे कागजी कार्रवाई में कटौती और अनुमोदन आवश्यकताओं को आसान बनाना.
ये बदलाव पराली, औद्योगिक कचरे सहित अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के भारत के व्यापक लक्ष्य से जुड़े हैं.
संशोधित दिशा-निर्देशों का एक प्रमुख आकर्षण केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) जारी करने की बेहतर प्रणाली है.
मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, “डेवलपर्स द्वारा 80 प्रतिशत उत्पादन हासिल करने के लिए उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर विचार करते हुए, प्लांट के प्रदर्शन के आधार पर सीएफए जारी करने की योजना में फ्लेक्सिबल प्रावधान किए गए हैं.”
पहले, कंपनियों को सहायता प्राप्त करने के लिए पूरे अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजना के 80 प्रतिशत उत्पादन तक पहुंचने तक इंतजार करना पड़ता था.
संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, दो चरणों में सीएफए जारी करने का प्रावधान है.
परियोजनाओं के प्रदर्शन के आधार पर, बैंक गारंटी के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संचालन प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बाद कुल सीएफए का 50 प्रतिशत जारी किया जाएगा, जबकि शेष सीएफए निर्धारित क्षमता का 80 प्रतिशत या अधिकतम सीएफए पात्र क्षमता, जो भी कम हो, प्राप्त करने के बाद जारी किया जाएगा.
सरकार के अनुसार, “विशेष रूप से, अगर कोई प्लांट प्रदर्शन निरीक्षण के दौरान दोनों स्थितियों के लिए 80 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त नहीं करता है, तो प्रतिशत उत्पादन के आधार पर आनुपातिक आधार पर वितरण का प्रावधान किया गया है. हालांकि, अगर पीएलएफ 50 प्रतिशत से कम है तो सीएफए नहीं दिया जाएगा.”
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एसकेटी/
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