पटना, 7 अगस्त . बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और सभी राजनीतिक दल जमीनी समीकरणों को साधने में जुटे हैं. किशनगंज जिले की बहादुरगंज विधानसभा सीट, जो कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र मानी जाती है, इस बार भी राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है. पिछली बार के नतीजों और वर्तमान समीकरणों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बहादुरगंज में इस बार का मुकाबला सिर्फ सीट जीतने का नहीं, बल्कि सियासी वर्चस्व और जनविश्वास को वापस पाने का भी है.
बहादुरगंज विधानसभा सीट पर 1952 से अब तक 16 चुनाव हो चुके हैं और इनमें से 10 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि इस सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है. खासकर 2005 से 2015 तक कांग्रेस के मोहम्मद तौसीफ आलम ने जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी. लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में इस परंपरा को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने तोड़ दिया.
मोहम्मद अंजार नईमी ने 2020 के चुनाव में कांग्रेस को हराकर इस सीट पर एआईएमआईएम का झंडा गाड़ दिया. हालांकि, बाद में उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का दामन थाम लिया, जिससे समीकरण फिर बदलते नजर आए. उस चुनाव में एआईएमआईएम, कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था.
कांग्रेस के अलावा इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी), जनता दल और जनता पार्टी भी एक-एक बार जीत हासिल कर चुकी हैं. इसके अतिरिक्त कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी बहादुरगंज की जनता का भरोसा जीता है. इससे स्पष्ट होता है कि भले ही यहां एकतरफा वर्चस्व लंबे समय तक रहा हो, लेकिन समय-समय पर राजनीतिक परिवर्तन और जनता की पसंद में बदलाव देखने को मिला है.
2024 के आंकड़ों के अनुसार, बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 510,164 है, जिनमें 2,59,165 पुरुष और 2,50,999 महिलाएं शामिल हैं. इस सीट पर कुल 3,07,148 मतदाता हैं, जिनमें 1,58,638 पुरुष, 1,48,496 महिला और 14 थर्ड जेंडर हैं. मुस्लिम आबादी का अनुपात अधिक होने के कारण यह सीट धार्मिक और सामाजिक समीकरणों से गहराई से प्रभावित रहती है.
2025 के चुनाव में बहादुरगंज सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने की पूरी संभावना है. एआईएमआईएम से राजद में शामिल हो चुके मोहम्मद अंजार नईमी दोबारा मैदान में उतरते हैं तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे अपने पुराने मतदाताओं का भरोसा बनाए रख पाएंगे या कांग्रेस इस बार बिखरे मुस्लिम वोटों को फिर से एकजुट कर वापसी करेगी.
दूसरी ओर, भाजपा और अन्य दल भी इस सीट पर सांकेतिक उपस्थिति के जरिए अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं.
बहादुरगंज की सियासत में धार्मिक समीकरण के साथ-साथ विकास, शिक्षा, रोजगार और स्थानीय मुद्दे भी अहम हैं.
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पीएसके/एबीएम
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