New Delhi, 24 जुलाई . राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने एक नई बायोफिल्म तकनीक विकसित की है, जो फेनेंथ्रीन नामक जहरीले पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) को 95 प्रतिशत तक पांच दिनों में नष्ट कर सकती है.
यह तकनीक औद्योगिक तेल रिसाव और रासायनिक कचरे से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करने में मददगार है.
पीएएच हानिकारक कार्बनिक यौगिक हैं, जो जीवाश्म ईंधन के जलने, औद्योगिक उत्सर्जन और तेल रिसाव से मिट्टी और पानी को दूषित करते हैं. परंपरागत रूप से, इनका उपचार रासायनिक ऑक्सीकरण या मिट्टी खोदकर किया जाता है, जो महंगा है और इससे प्रदूषण भी होता है.
ऐसे में एनआईटी राउरकेला की नई बायोफिल्म तकनीक पर्यावरण-अनुकूल, प्रभावी और कम लागत वाली है. यह बायोफिल्म बैक्टीरिया कोशिकाओं और एक विशेष मैट्रिक्स से बनी है, जो फेनेंथ्रीन को तेजी से नष्ट करती है.
शोधकर्ता डॉ. कुमारी उमा महतो ने बताया, “यह तकनीक औद्योगिक तेल रिसाव से होने वाले नुकसान को कम कर सकती है, जहां समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन खतरा हैं. यह उन क्षेत्रों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, जहां औद्योगिक गतिविधियां ज्यादा हैं और प्रदूषण नियंत्रण की सुविधाएं कम हैं.”
यह बायोफिल्म लूरिया बर्टानी ब्रोथ, एक पोषक तत्वों से भरपूर माध्यम, का उपयोग करके बनाई गई है. इसकी संरचना और बढ़ी हुई माइक्रोबियल घनत्व इसे तेजी से पीएएच नष्ट करने में सक्षम बनाती है.
लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर सुरजीत दास ने बताया, “यह बायोफिल्म मौजूदा बायोफिल्म रिएक्टरों में आसानी से इस्तेमाल की जा सकती है, खासकर उन सुविधाओं में जो हाइड्रोकार्बन आधारित प्रदूषकों का उपचार करती हैं.”
उन्होंने बताया कि यह पेटेंट तकनीक पेट्रोकेमिकल उद्योग के साथ साझेदारी की संभावनाएं खोलती है, जिससे टिकाऊ प्रदूषण नियंत्रण को बढ़ावा मिलेगा.
बायोफिल्म में मौजूद एक्स्ट्रासेलुलर पॉलीमेरिक सब्सटेंस (ईपीएस) की परत हानिकारक अणुओं को घोलती और अवशोषित करती है, साथ ही बैक्टीरिया को विषाक्त प्रभावों से बचाती है. यह तकनीक अपशिष्ट जल उपचार और दूषित जलवायु क्षेत्रों में जैविक प्रदूषकों को नष्ट करने के लिए प्रभावी है. यह इनोवेशन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है.
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एमटी/केआर
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