New Delhi, 8 अगस्त . एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में Friday को कहा गया है कि भारत के साथ वस्तु व्यापार पर 25 प्रतिशत जुर्माना लगाना, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने का प्रस्ताव है, अमेरिका और उसके लोगों के लिए एक गलत नीतिगत फैसला हो सकता है.
रिपोर्ट ने जोर दिया, दूसरी ओर, भारत को अपनी संप्रभुता की रणनीतिक रूप से रक्षा करते हुए अपने किसानों को वैश्विक समूहों की इस तरह की प्रवृत्तियों से बचाना जारी रखना चाहिए, जो सस्टेनेबल मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में निवेश किए बिना, एग्री वैल्यू चेन फाइनेंसिंग को बढ़ावा दिए बिना और हमारे कृषक समुदाय के लिए ‘जीवन की सुगमता’ को प्रभावित करने वाली कल्याणकारी योजनाओं में भागीदार बने बिना, आकर्षक ‘देसी’ हिस्सेदारी के लिए होड़ कर सकते हैं.
गौरतलब है कि भारत ने 2015-2024 के बीच दूध उत्पादन में वैश्विक दिग्गजों को पछाड़ दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 तक, वर्ष 2015 में, भारत का कुल दूध उत्पादन लगभग 155.5 मिलियन टन (यूरोपीय संघ 154.6 मीट्रिक टन और अमेरिका 94.6 मीट्रिक टन) था. भारत का हिस्सा बढ़कर 211.7 मीट्रिक टन (36 प्रतिशत की वृद्धि) हो गया, जबकि यूरोपीय संघ (ब्रिटेन सहित) का हिस्सा बढ़कर 165.9 मीट्रिक टन और अमेरिका का 102.5 मीट्रिक टन हो गया.
फार्मास्युटिकल मार्केट की बात करें तो, भारत किफायती, उच्च-गुणवत्ता वाली, आवश्यक दवाओं, विशेष रूप से जीवन रक्षक कैंसर दवाओं, एंटीबायोटिक दवाओं और पुरानी बीमारियों के उपचारों की ग्लोबल सप्लाई चेन का आधार रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “जेनेरिक दवा बाजार में, भारत अमेरिका की लगभग 35 प्रतिशत दवा आवश्यकताओं की सप्लाई करता है. अगर अमेरिका मैन्युफैक्चरिंग और एपीआई उत्पादन को अन्य देशों या घरेलू सुविधाओं में शिफ्ट करता है तो सार्थक क्षमता हासिल करने में कम से कम 3-5 वर्ष लगेंगे.”
अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष स्वास्थ्य व्यय लगभग 15,000 डॉलर है और इसलिए जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ में भारत की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत होने के कारण, अमेरिकी नागरिकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत के फार्मा निर्यात पर टैरिफ लगाने से सामान्य सरकार के आकार को कम करने के अमेरिकी उद्देश्य को नुकसान पहुंचता है और यह डीओजीई के उद्देश्यों के विरुद्ध है. अमेरिका का राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 17.6 प्रतिशत है और सरकार द्वारा प्रायोजित मेडिकेयर और मेडिकेड कुल व्यय का 36 प्रतिशत है.”
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सस्ती दवाओं की ऊंची कीमतें मेडिकेयर और मेडिकेड के अंतर्गत व्यय और आम नागरिकों की जेब से होने वाले खर्च, दोनों को बढ़ाती हैं.
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