नई दिल्ली, 6 नवंबर . इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी का वैश्विक बाजार 2023 में 700 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2035 तक 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा. क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी में सौर पीवी, पवन टर्बाइन, इलेक्ट्रिक कार, बैटरी, इलेक्ट्रोलाइजर और हीट पंप के वैश्विक बाजार में यह बढ़ोतरी देखी जाएगी.
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की ऊर्जा प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य 2024 (ईटीपी-2024) रिपोर्ट क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के भविष्य का विश्लेषण प्रदान करती है.
रिपोर्ट के अनुसार, चीन, यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने इस क्षेत्र में बड़ा निवेश किया है. ये सभी देश इस बड़े व्यापारिक अवसर से भविष्य में लाभ लेंगे. आईईए का कहना है कि क्लीन टेक्नोलॉजी में वैश्विक व्यापार में तेजी से वृद्धि होने की उम्मीद है और एक दशक में यह तिगुने से अधिक बढ़कर 575 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो आज प्राकृतिक गैस के वैश्विक व्यापार से 50 प्रतिशत अधिक है.
2023 में क्लीन टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग में वैश्विक निवेश 50 प्रतिशत से बढ़कर 235 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. 2023 में क्लीन टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग निवेश का 80 प्रतिशत हिस्सा सौर पीवी और बैटरी विनिर्माण में चला गया. इसमें कहा गया है कि चीन निकट भविष्य में क्लीन टेक्नोलॉजी के निर्माण में दुनिया की महाशक्ति बना रहेगा और इसका क्लीन टेक्नोलॉजी निर्यात 2035 में 340 बिलियन डॉलर से अधिक होने की राह पर है.
आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की तुलना में, संयुक्त राज्य अमेरिका में सौर पीवी मॉड्यूल, पवन टर्बाइन और बैटरी टेक्नोलॉजी का उत्पादन करने के लिए इन क्लाइमेट टेक्नोलॉजी की लागत औसतन 40 प्रतिशत अधिक है, यूरोपीय संघ में 45 प्रतिशत अधिक और भारत में 25 प्रतिशत अधिक है.
भारत में 2020 से विनिर्माण निवेश में पांच गुना वृद्धि दर्ज की गई है, जिसमें भारत की वैश्विक हिस्सेदारी 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 3 प्रतिशत हो गई है. उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसी पहलों के माध्यम से, भारत का लक्ष्य 2035 तक क्लीन टेक्नोलॉजी का शुद्ध निर्यातक बनना है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग शून्य उत्सर्जन के साथ इस्पात, एल्युमीनियम और अमोनिया का उत्पादन करने के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों पर काम चल रहा है और इन प्रौद्योगिकियों के क्रियान्वयन के लिए 2050 तक प्रति वर्ष औसतन 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी.
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एसकेटी/एबीएम
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