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2 साल बाद हिमालय से अचानक लौटे थे नरेंद्र मोदी, मां को थैले में मिला था ये

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Narendra Modi Janmdin: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था और 17 साल की उम्र में ही उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया. जैसा एक साधु ने कुंडली देखकर बताया था, कुछ वैसा ही हुआ. 17 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने ने घर और पढ़ाई दोनों छोड़कर आध्यात्मिक ज्ञान हासिल करने के लिए हिमालय का रास्ता चुना. उनके इस निर्णय से घरवालों को गहरा आघात लगा. एक ओर नरेंद्र मोदी ने घर छोड़ने का दृढ़ निश्चय कर लिया था, दूसरी ओर माता-पिता के सामने बड़ी असमंजस की स्थिति थी. अंत में उन लोगों ने यही निर्णय लिया कि यदि जाना ही चाहते हैं तो उन्हें जाने दिया जाए.

एक शुभ दिन मां ने नरेंद्र मोदी का मुंह मीठा कर मस्तक पर तिलक लगाया. उसके बाद नरेंद्र मोदी ने सभी बड़ों के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लिया और घर छोड़कर निकल पड़े अध्यात्म की खोज में. नरेंद्र मोदी घूमते-फिरते साधु-संन्यासियों से मिलते हुए हिमालय की पहाड़ियों में पहुंचे. घर छोड़ते समय उनके पास एक भी पैसा नहीं था. कई प्रकार के लोगों से मिलकर और उनसे बातें करके वे मानव-स्वभाव के बारे में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर रहे थे, किंतु कुछ समय बाद उन्हें लगा कि इस तरह घूमते रहने से किसी मंजिल पर नहीं पहुंचा जा सकता है.

नरेंद्र मोदी कहते हैं, ‘मैं कुछ करना चाहता था, लेकिन मुझे स्वयं समझ में नहीं आ रहा था कि करना क्या है.’ निरुद्देश्य घूमते हुए उन्होंने दो वर्ष बिता दिए. अंततः उन्होंने वापस लौटने का निश्चय किया. दो वर्ष तक नरेंद्र मोदी के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. सबसे पहले वह राजकोट में रामकृष्ण मिशन पहुंचे.

उनकी निष्ठा से प्रभावित होकर मिशन के प्रमुख ने उन्हें मिशन में रहने के लिए स्थान दे दिया, किंतु नरेंद्र मोदी एक सप्ताह से ज्यादा वहां रुके नहीं। वास्तव में वहां उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हुई. नरेंद्र मोदी वडनगर लौट आए.

बहन चिल्लाकर दौड़ी, मां भाई आ गए

उस घटना को याद करते हुए मां हीरा बा छलछलाती आंखों से कहती हैं, ‘दो वर्ष तक तो हमें उसका कोई समाचार नहीं मिला, मैं तो बस पागल हो गई थी. अचानक एक दिन वह घर वापस आ गया. उसके हाथ में एक थैला था. उस समय मैं रसोईघर में थी, मेरी बेटी वासंती बाहर थी. अचानक वह जोर से चिल्लाई, ‘भाई आ गए, भाई आ गए!’ नरेंद्र मोदी को देखकर मैं रो पड़ी. मैंने उससे पूछा, अब तक तू कहां था? क्या खाता-पीता था ? उसने बताया कि वह हिमालय की ओर गया था.

मां ने थैले में क्या देखा

मैंने उससे खाने के लिए पूछा और उसे बताया कि रोटी और सब्जी बनाई है. मैं तुम्हारे लिए कुछ मीठा बना देती हूं. उसने कहा, ‘मैं रोटी और सब्जी ही खा लूंगा, कुछ और बनाने की जरूरत नहीं है.’ उस समय घर में मैं, मेरी बेटी वासंती एवं नरेंद्र के अतिरिक्त कोई नहीं था. खाना खाकर नरेंद्र गांव की ओर चला गया. उसके जाने के बाद मैंने उत्सुकतावश उसका थैला खोला, जिसमें एक जोड़ी कपड़े, भगवा रंग की एक शॉल और सबसे नीचे मेरी फोटो थी. मुझे पता नहीं कि मेरी फोटो उसने कहां से ली थी. उसने मुझे कुछ बताया भी नहीं. एक दिन और एक रात घर में रहने के बाद वह यह कहकर फिर घर छोड़कर चला गया कि मैं जा रहा हूं.’ नरेंद्र मोदी उस दिन वडनगर से निकले तो आज तक वापस नहीं गए.

17 सितंबर 2025 को पीएम नरेंद्र मोदी 75 साल के हो रहे हैं. देशभर में कई आयोजन होंगे. पीएम खुद एमपी जाएंगे. भाजपा के कई नेता उनकी खासियत और अपने निजी अनुभव सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. ऐसा ही एक अनुभव गृह मंत्री अमित शाह ने ढाबे पर खाना खाने का शेयर किया है.

शाह ने राजकोट की यात्रा का वह प्रसंग सुनाया जब मोदी ने यह संवेदनशील सीख दी कि संगठन में स्वयं से पहले कार्यकर्ताओं का ध्यान रखना चाहिए. गृह मंत्री ने कहा कि उनकी (मोदी) वह सीख आज मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है. विश्वास, अपनापन और समर्पण, यही संगठन की आत्मा है और यही मोदी जी की सबसे बड़ी शिक्षा है.

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