Hindu Succession Act: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) के तहत उत्तराधिकार संबंधी कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की. यह मामला कानून के उस प्रावधान को चुनौती देता है जिसके अनुसार अगर कोई निःसंतान हिंदू विधवा बिना वसीयत किए मर जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके अपने माता-पिता के बजाय उसके पति के परिवार को मिलेगी. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार , सुप्रीम कोर्ट की महिला न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अदालत को हिंदू रीति-रिवाजों की याद दिलाई. उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में कन्यादान का अर्थ है कि विवाह के बाद एक महिला अपने पति के वंश में शामिल हो जाती है. इसके साथ ही उसका गोत्र या वंशक्रम बदल जाता है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि विवाह अनुष्ठान, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, गोत्र के इस स्थानांतरण पर जोर देते हैं, जो महिला के अपने पति के परिवार में स्थानांतरण का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि न्यायालय को हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं को खत्म करने के प्रति सतर्क रहना चाहिए.
विधवा महिला के पास होता पुनर्विवाह करने का विकल्प
अदालत के सामने मुख्य मुद्दा यह है कि बिना वसीयत के और बिना बच्चों के मर जाने वाली हिंदू विधवा की संपत्ति किसे मिलेगी. एचएसए की धारा 15(1)(बी) के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, पति के उत्तराधिकारियों को उसके मायके वालों से ऊपर रखा गया है. पीठ को एक ऐसे मामले के बारे में बताया गया जिसमें एक युवा दंपत्ति की कोविड-19 महामारी के दौरान मृत्यु हो गई. अब पति-पत्नी दोनों की माताएं दंपत्ति की संपत्ति को लेकर झगड़ रही हैं. एक और मामले में एक निःसंतान दंपत्ति की मृत्यु के बाद, उस व्यक्ति की बहन ने पीछे छोड़ी गई संपत्ति पर दावा किया. वकीलों ने तर्क दिया कि ये मामले जनहित के प्रश्न उठाते हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि एक बार जब एक महिला विवाह कर लेती है तो उसके पति और उसके परिवार को उसके कल्याण की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. उन्होंने कहा कि एक विवाहित महिला अपने भाई के खिलाफ भरण-पोषण की याचिका दायर करने वापस नहीं जाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि एक महिला के पास अपने जीवनकाल में वसीयत बनाने या चाहे तो पुनर्विवाह करने का विकल्प भी होता है.
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