Next Story
Newszop

बाजी राउत: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे युवा शहीद की कहानी

Send Push
बाजी राउत का बलिदान

स्वतंत्रता संग्राम में लाखों सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिसके परिणामस्वरूप भारत को स्वतंत्रता मिली। आज, स्वतंत्रता आंदोलन के समय जीवित नागरिकों की संख्या बहुत कम रह गई है। भारत को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष हो चुके हैं, और हम 15 अगस्त को आजादी का 78वां वर्ष मनाने जा रहे हैं। इस अवसर पर, मैं भारत माता के एक महान सपूत, बाजी राउत के बलिदान की चर्चा करना चाहता हूँ।


बाजी राउत का जन्म 5 अक्टूबर 1926 को निलाकंठा पुर गांव, ढेंकनाल में हुआ था। उनके पिता नाव चलाने का काम करते थे, और गांव में उन्हें 'बाजिया' के नाम से जाना जाता था। वे वानर सेना के सदस्य थे। अंग्रेजी शासन के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे, और जब लोग विरोध करते थे, तो उन्हें जेल में डाल दिया जाता था।


एक बार, अंग्रेजी पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें दो आंदोलनकारियों की जान चली गई। इसके विरोध में, जनता ने पुलिस को घेर लिया। 11 अक्टूबर 1938 को, जब अंग्रेजी पुलिस नदी पार करने की कोशिश कर रही थी, बाजी राउत ने उन्हें रोक दिया। इस पर, पुलिस ने उन पर गोलियां चलाईं, और बाजी राउत शहीद हो गए।


बाजी राउत का अंतिम संस्कार ढेंकनाल जिले के खाननगर में किया गया। उनकी शहादत को आज भी लोग याद करते हैं। एक 12 वर्षीय बच्चे ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, जो हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हमें अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए और स्वतंत्रता की कीमत को समझना चाहिए।


आज, हमें मिलकर देश की स्वतंत्रता को और सुंदर बनाने के लिए कार्य करना चाहिए। हमें अपने कर्तव्यों को निभाते हुए, राष्ट्रभक्ति के साथ आगे बढ़ना चाहिए। तभी हम उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएंगे। जय हिंद, वंदे मातरम!


Loving Newspoint? Download the app now