FIIs का प्रभावशाली लौटना
भारतीय शेयर बाजार के लिए अक्टूबर का महीना राहत भरा साबित हुआ है। पिछले तीन महीनों में विदेशी निवेशकों द्वारा की गई बिकवाली ने बाजार पर दबाव डाला था, लेकिन अब स्थिति बदलती नजर आ रही है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने अक्टूबर में भारतीय शेयरों में 14,610 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया है। यह आंकड़ा बाजार की धारणा में सकारात्मक बदलाव का संकेत देता है। सवाल यह है कि जो निवेशक जुलाई से सितंबर तक बिकवाली कर रहे थे, उनका मन अचानक कैसे बदला?
77,000 करोड़ की निकासी के बाद बदलाव का कारण?अक्टूबर से पहले की स्थिति चिंताजनक थी। विदेशी निवेशकों ने लगातार तीन महीनों में भारतीय बाजार से भारी निकासी की थी। आंकड़ों के अनुसार, सितंबर में 23,885 करोड़ रुपये, अगस्त में 34,990 करोड़ रुपये और जुलाई में 17,700 करोड़ रुपये निकाले गए थे। कुल मिलाकर, इन तीन महीनों में लगभग 77,000 करोड़ रुपये बाजार से बाहर चले गए थे, जिससे निवेशकों में घबराहट का माहौल बना था।
लेकिन अक्टूबर में यह स्थिति बदल गई। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के प्रिंसिपल रिसर्च मैनेजर, हिमांशु श्रीवास्तव के अनुसार, इस बदलाव के पीछे कई सकारात्मक कारण हैं। उन्होंने बताया कि हालिया गिरावट के बाद कई मजबूत कंपनियों के शेयरों का मूल्यांकन आकर्षक स्तर पर आ गया था। इसके अलावा, भारतीय कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजे भी उम्मीद से बेहतर रहे हैं, जिसने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया। महंगाई में कमी और ब्याज दरों में स्थिरता की उम्मीद ने भी माहौल को सकारात्मक बना दिया है।
क्या अमेरिकी नरमी और व्यापार वार्ता हैं मुख्य कारण?विशेषज्ञ इस निवेश को केवल सस्ते मूल्यांकन से नहीं, बल्कि कुछ बड़े घरेलू और वैश्विक संकेतों से भी जोड़कर देख रहे हैं। एंजल वन के सीनियर एनालिस्ट, वकार जावेद खान ने बताया कि FPIs की वापसी के पीछे कई ठोस कारण हैं, जैसे कंपनियों के शानदार Q2 FY26 नतीजे, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में कटौती, और भारत-अमेरिका के बीच संभावित व्यापार वार्ता की उम्मीदें।
सरल शब्दों में, जब अमेरिका में ब्याज दरें घटती हैं, तो विदेशी निवेशक तेजी से बढ़ते बाजारों की ओर रुख करते हैं। जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के मुख्य निवेश रणनीतिकार, वी.के. विजयकुमार का मानना है कि कंपनियों की कमाई में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। यदि बाजार में मांग मजबूत बनी रहती है, तो कंपनियों के तिमाही नतीजे और भी बेहतर होंगे। जब कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है, तो उनके शेयरों की कीमतें भी बढ़ती हैं, जिससे विदेशी निवेशक फिर से खरीदार बन गए हैं।
क्या नवंबर में भी जारी रहेगी यह खरीदारी?अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह तेजी केवल अक्टूबर तक सीमित रहेगी या नवंबर में भी FPIs की खरीदारी जारी रहेगी? अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सकारात्मक रुझान आगे भी जारी रह सकता है। वकार जावेद खान के अनुसार, जुलाई से सितंबर के बीच हुई भारी निकासी का मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक दबाव था। अब चूंकि ये दबाव कम हो रहे हैं, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि नवंबर में भी विदेशी निवेश का यह प्रवाह बना रहेगा।
हालांकि, यह सब कुछ संभावनाओं पर निर्भर है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रुझान तभी जारी रहेगा जब भारत की आर्थिक स्थिरता बनी रहे, वैश्विक माहौल अनुकूल हो, और कंपनियों के मुनाफे में सुधार जारी रहे। आने वाले समय में निवेश की मात्रा इस बात पर भी निर्भर करेगी कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौता कब तक होता है और बाकी कंपनियों के Q2 FY26 नतीजे कैसे आते हैं।
2025 में अब भी 1.4 लाख करोड़ की निकासीअक्टूबर के आंकड़ों से उत्साहित होना स्वाभाविक है, लेकिन पूरी तस्वीर को देखना भी जरूरी है। यह सच है कि अक्टूबर में FPIs ने ₹14,610 करोड़ का निवेश किया, लेकिन यह भी सच है कि 2025 की शुरुआत से अब तक FPIs ने भारतीय बाजार से कुल मिलाकर लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं। इस बड़े घाटे के संदर्भ में, अक्टूबर का यह निवेश वापसी की दिशा में पहला कदम है।
केवल शेयर बाजार ही नहीं, बल्कि बॉंड बाजार में भी अक्टूबर में हलचल देखने को मिली। FPIs ने जनरल लिमिट के तहत लगभग 3,507 करोड़ रुपये का निवेश किया, हालांकि वॉलंटरी रिटेंशन रूट (VRR) से 427 करोड़ रुपये की निकासी भी की। कुल मिलाकर, अक्टूबर का महीना विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजारों में वापसी का एक मजबूत संकेत दे रहा है। यदि आर्थिक संकेतक स्थिर रहते हैं और वैश्विक परिस्थितियां अनुकूल बनी रहती हैं, तो आने वाले महीनों में भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों की रुचि और बढ़ सकती है।
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