बेंगलुरु के बांदीपल्या में रहने वाली हरिणी (बदला हुआ नाम) को एक व्हाट्सएप ग्रुप में एक संदेश प्राप्त हुआ। इस ग्रुप में देशभर के प्रशिक्षक शामिल थे, जो अक्सर नौकरी के अवसरों की जानकारी साझा करते थे। एक दिन, ग्रुप में सूचना आई कि बेंगलुरु के आर्मी पब्लिक स्कूल (एपीएस) में अनुशासन और संचार कौशल के लिए एक प्रशिक्षक की आवश्यकता है। साथ ही, एक फोन नंबर भी दिया गया था।
हरिणी ने उत्सुकता से उस नंबर पर कॉल किया। दूसरी ओर से एक व्यक्ति ने खुद को एपीएस का प्रशासनिक कर्मचारी बताया। उसने नौकरी की आवश्यकताओं को समझाया और हरिणी की फीस पर चर्चा की, जिसमें दो घंटे के काम के लिए प्रति घंटे 5,000 रुपये की बात की गई। उसने आश्वासन दिया कि स्कूल का प्रभारी जल्द ही उनसे संपर्क करेगा। हरिणी को यह अवसर बहुत आकर्षक लगा।
कुछ समय बाद, एक अन्य नंबर से व्हाट्सएप वॉयस कॉल आई। कॉल करने वाले ने कहा कि वह एमजी रोड पर स्थित एपीएस कैंपस से बोल रहा है। उसने हरिणी की प्रोफाइल की सराहना की और कहा कि स्कूल उनकी सेवाएं लेना चाहता है। लेकिन उसने एक 'प्रोटोकॉल' का उल्लेख किया। चूंकि यह एक सैन्य संस्थान था, हरिणी को वेंडर के रूप में पंजीकरण कराना होगा। विश्वास में आकर, हरिणी ने अपनी आधार संख्या साझा कर दी। इसके बाद ठग ने डिजिटल भुगतान पंजीकरण की प्रक्रिया बताई। उसने कहा कि हरिणी को अपना यूपीआई आईडी लिंक करना होगा और एक ओटीपी प्रक्रिया पूरी करनी होगी। हरिणी ने निर्देशों का पालन किया और ओटीपी के साथ अपना पिन डाला। कुछ ही सेकंड में उनके खाते से 26,000 रुपये निकाल लिए गए।
जब हरिणी ने विरोध किया, तो ठग ने उन्हें कॉल पर बनाए रखा। अपनी बात को विश्वसनीय बनाने के लिए उसने एक नकली सैन्य आईडी भेजी और बार-बार देशभक्ति का सहारा लिया। 'जय हिंद', 'जय इंडियन आर्मी' जैसे शब्दों ने हरिणी को उस व्यक्ति पर पूरा भरोसा दिला दिया। इसके बाद ठग ने एक वैकल्पिक फोन नंबर मांगा। हरिणी ने अपने पति दिनेश का नंबर दे दिया। लेकिन ठगों ने वही चाल दिनेश के साथ भी दोहराई। देशभक्ति की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए, उन्होंने दिनेश को भी उसी प्रक्रिया में फंसाया। इस बार चार लेनदेन में उनके खाते से लगभग 1.9 लाख रुपये निकाल लिए गए।
एक घंटे के भीतर, दंपति ने 2.1 लाख रुपये से अधिक खो दिए। सदमे में डूबे दिनेश ने शुक्रवार को बांदीपल्या पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। दंपति ने अपने बैंक और राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन (1930) से भी संपर्क किया। पुलिस ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत मामला दर्ज किया और ठगों के खातों को फ्रीज करने की प्रक्रिया शुरू की।
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