करनाल, हरियाणा में अब आलू की खेती एक नई दिशा में बढ़ने जा रही है। यहाँ के आलू प्रौद्योगिकी केंद्र ने एरोपोनिक तकनीक का विकास किया है, जिसके माध्यम से आलू की पैदावार 10 से 12 गुना बढ़ने की उम्मीद है। इस तकनीक के तहत, आलू के पौधों को बिना मिट्टी के हवा में उगाया जाएगा।
इस प्रक्रिया में, आलू के पौधों को बड़े-बड़े बॉक्स में लटकाया जाता है, जहाँ उन्हें आवश्यकतानुसार पानी और पोषक तत्व प्रदान किए जाते हैं।
- हरियाणा के करनाल जिले में आलू प्रौद्योगिकी केंद्र ने एरोपोनिक तकनीक से एक पौधे से 40 से 60 छोटे आलू प्राप्त करने की संभावना जताई है, जिन्हें खेत में बीज के रूप में रोपित किया जा सकेगा।
- इस तकनीक में आलू के पौधों को बड़े-बड़े बॉक्स में लटकाया जाता है।
- आवश्यकतानुसार पानी और पोषक तत्वों का समावेश किया जाता है।
एरोपोनिक तकनीक की विशेषताएँ
- इस तकनीक में जड़ें विकसित होने पर आलू के छोटे ट्यूबर बनने लगते हैं।
- आलू के पौधों को बड़े-बड़े बॉक्स में लटकाया जाता है।
- आवश्यकतानुसार पानी और पोषक तत्वों का समावेश किया जाता है।
- जड़ें बढ़ने पर आलू के छोटे ट्यूबर बनने लगते हैं।
डॉ. सतेंद्र यादव, जो करनाल के आलू प्रौद्योगिकी केंद्र में कार्यरत हैं, ने बताया कि इस केंद्र ने इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर के साथ एक समझौता किया है। इसके बाद भारत सरकार ने एरोपोनिक तकनीक के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। पहले, आलू का बीज उत्पादन ग्रीन हाउस तकनीक से किया जाता था, जिसमें पैदावार कम होती थी।
एरोपोनिक तकनीक से पैदावार में 12 गुना वृद्धि की उम्मीद है। इस तकनीक से बिना मिट्टी के आलू का बीज उत्पादन शुरू किया जाएगा, जिससे पैदावार दोगुनी हो गई है। अब एक पौधे से 40 से 60 छोटे आलू प्राप्त होंगे, जिन्हें खेत में बीज के रूप में रोपित किया जा सकेगा।

एरोपोनिक तकनीक में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती। इसमें आलू के माइक्रोप्लांट को बड़े प्लास्टिक और थर्माकोल के बॉक्स में रखा जाता है। समय-समय पर पौषक तत्व दिए जाते हैं, जिससे जड़ों का विकास होता है। इस तकनीक से उत्पन्न बीज में कोई बीमारी नहीं होती और सभी न्यूट्रिएंट्स प्रदान किए जाते हैं, जिससे आलू की गुणवत्ता में सुधार होता है।